[ ब्रिगेडियर आरपी सिंह ]: मोदी सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद भारत के खिलाफ सारी तिकड़में आजमाने के बाद नाकाम पाकिस्तान अब कुछ और उपाय तलाश रहा है। इसमें वह मृतप्राय खालिस्तान आंदोलन में जान डालकर भारत में अलगाववाद की नई चिंगारी भड़काने की फिराक में है। करतारपुर कॉरिडोर के रूप में उसे एक माकूल मौका भी मिल गया है। इस पर पाकिस्तानी फौज के खतरनाक मंसूबे एकदम स्पष्ट हैं। इसके संकेत अगस्त, 2018 में तभी मिल गए थे जब पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू को बता दिया था कि पाकिस्तान करतारपुर कॉरिडोर खोलने की तैयारी में है। गौर करने वाली बात यह है कि सिद्धू पाकिस्तान के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री इमरान खान के शपथ ग्र्रहण समारोह में शामिल होने के लिए वहां गए थे। नए प्रधानमंत्री के कमान संभालने से पहले ही इतने बड़े नीतिगत निर्णय की पहल को लेकर सूचित करना वाकई किसी बड़े संकेत की ओर इशारा करता है।

ननकाना साहिब के बाद करतारपुर दरबार साहिब सिखों के लिए दूसरा सबसे पवित्र स्थल है

गुरुनानक देव के जन्मस्थान ननकाना साहिब के बाद करतारपुर स्थित दरबार साहिब सिखों के लिए दूसरा सबसे पवित्र स्थल है। गुरुनानक देव ने अपने जीवन के अंतिम 18 वर्ष वहीं बिताए। भारत विभाजन के समय ननकाना साहिब और करतारपुर दोनों पाकिस्तान में चले गए। यह कितनी बड़ी विडंबना थी कि जिन सिखों ने भारत में रहने का फैसला किया उनके दो प्रमुख तीर्थ स्थान दूसरे देश, वह भी एक बदमिजाज मुल्क के हिस्से में चले गए। भारतीय नेता भी सिखों को उनके पवित्र स्थल दिलाने को लेकर सार्थक वार्ता करने में नाकाम रहे।

ननकाना साहिब और करतारपुर भारत के हिस्से में होते

करतारपुर अंतरराष्ट्रीय सीमा से महज 4.7 किलोमीटर दूर है। वर्ष 1941 में यहां हिंदुओं-सिखों की आबादी मुसलमानों के बराबर ही थी। ऐसे में अगर विभाजन आबादी के आधार पर हुआ था, तब भी यह भारत के हिस्से में होना चाहिए था। भारतीय पक्ष ने फिरोजपुर, अमृतसर और गुरदासपुर को लेकर जिस कड़ाई से बातचीत की, यदि वही रवैया इसे लेकर भी अपनाया जाता तो नतीजा कुछ और भी हो सकता था। भारत सरकार सिखों के लिए कम से कम ननकाना साहिब और करतारपुर एनक्लेव की मांग कर ही सकती थी।

नेहरू ने अनसुनी कर दी थी जमीन अधिग्रहण की मांग

शिरोमणि अकाली दल के मास्टर तारा सिंह ने 1948 में यह मांग रखी कि भारत को ननकाना साहिब और करतारपुर गुरद्वारों की जमीन का अधिग्रहण करना चाहिए। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसे अनसुना कर दिया। विभाजन के बाद गुरुद्वारा करतारपुर साहिब मुस्लिमों के कब्जे में चला गया जिसका उन्होंने गोशाला के रूप में इस्तेमाल किया।

वाजपेयी ने नवाज शरीफ के साथ करतारपुर गुरद्वारा का मुद्दा उठाया था

वर्ष 1999 में लाहौर बस यात्रा के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नवाज शरीफ के साथ यह मुद्दा उठाया। मगर कारगिल युद्ध छिड़ने के बाद यह मसला ठंडे बस्ते में चला गया। हालांकि 2001 में आगरा शिखर सम्मेलन में पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के साथ चर्चा में वाजपेयी ने फिर यह मुद्दा उठाया। उसके बाद गुरुद्वारे का जीर्णोद्धार किया गया। मोदी सरकार ने भी इस मुद्दे पर पहल की। आखिरकार इस साल 9 नवंबर को करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन हुआ। दो अलग-अलग समारोहों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने इसका उद्घाटन किया।

भारत के साथ तल्ख संबंधों के बावजूद पाक ने करतारपुर कॉरिडोर पर तेजी से किया काम

गुरुनानक देव के 550वें प्रकाश पर्व से पहले पाकिस्तान ने इसका निर्माण पूरा कर दिया। भारत के साथ बेहद तल्ख संबंधों के बावजूद पाक ने इस पर बहुत तेजी से काम किया तो इसके पीछे सिख भावनाओं को भुनाने की इस्लामाबाद की मंशा ही झलकती है। इससे उसकी नीयत में खोट छिपता नहीं। नवंबर 2019 में भारतीय खुफिया एजेंसियों को करतारपुर से सटे नरोवाल जिले में आतंकी शिविरों के सुराग मिले हैं। इससे पहले पाकिस्तानी फौज ने गुरुद्वारा परिसर में एक बिना फटे बम को दिखाया जिसके साथ लगे बैनर पर संदेश था कि भारतीय वायुसेना ने 1971 के युद्ध में गुरुद्वारे को नष्ट करने के लिए इसे गिराया था। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने एलान किया कि करतारपुर आने वाले श्रद्धालुओं के लिए पासपोर्ट की जरूरत नहीं होगी, लेकिन पाकिस्तानी फौज ने उनके फैसले को पलट दिया। पासपोर्ट स्कैन करके आइएसआइ श्रद्धालुओं का एक बड़ा डाटाबेस तैयार करना चाहती है। इसे वह अपने कुत्सित इरादों को पूरा करने में इस्तेमाल कर सकती है।

पाक भारत की गलत तस्वीर पेश करने में जुटा

यह कुख्यात एजेंसी पंजाब में आतंकियों को भेजने, अलगाववाद को जिंदा करने, मादक पदार्थों की आपूर्ति और जाली मुद्रा भेजने में भी करतारपुर का इस्तेमाल करेगी। खालिस्तान के लिए जनमत संग्रह कराकर पाकिस्तान भारत को वैश्विक स्तर पर असहज करना चाहता है। खालिस्तान को कश्मीर से जोड़कर पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यकों को लेकर भारत की गलत तस्वीर पेश करने में जुटा है। इस साल अमेरिका और ब्रिटेन में पाकिस्तानी समर्थन से कश्मीरी और पीआइओ सिख भारत विरोधी प्रदर्शन भी कर चुके हैं। हालांकि ऐसी करतूतों से पाकिस्तान कभी सफल नहीं हो पाएगा, लेकिन इससे होने वाले नुकसान को देखते हुए भारत इसकी अनदेखी नहीं कर सकता।

पंजाब को अस्थिर करने की कोशिश

भू-सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण जगह पर स्थित पंजाब को अस्थिर करने के लिए तमाम निष्क्रिय शरारती तत्व सक्रिय हो गए हैं। दशकों पहले खालिस्तानी मुहिम ने न केवल पंजाब को तबाह किया, बल्कि देश के सामाजिक तानेबाने को छिन्न-भिन्न भी किया था जिसकी भरपाई में कई साल लगे। ऐसे में अस्थिरता की वापसी भारतीय अर्थव्यवस्था को दशकों पीछे धकेल देगी।

करतारपुर कॉरिडोर के दुरुपयोग की आशंका

करतारपुर कॉरिडोर के उद्घाटन अवसर पर पाक द्वारा जारी किया गया वीडियो भी आपत्तिजनक है। इसमें सिख श्रद्धालुओं को भिंडरांवाले, मेजर जनरल शाबेग सिंह और अमरीक सिंह खालसा जैसे अलगाववादियों के पोस्टरों के साथ दिखाया गया है जिन पर ‘खालिस्तान 2020’ लिखा था। ये तीनों 1984 में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार में मारे गए थे। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी करतारपुर कॉरिडोर के दुरुपयोग की आशंका जताई है।

सिखों में मतभेद पैदा करने के लिए पाकिस्तान ने प्रयास दोगुने कर दिए

हालांकि अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगा, लेकिन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान और नवजोत सिंह सिद्धू को बधाई देने वाले पोस्टर पंजाब में दिखाई पड़ रहे हैं। सिखों में मतभेद पैदा करने के लिए पाकिस्तान ने प्रयास दोगुने कर दिए हैं। हर साल 10 करोड़ डॉलर की कमाई के साथ करतारपुर कॉरिडोर कंगाल पाकिस्तान को मदद ही पहुंचाएगा। इन पैसों का इस्तेमाल पंजाब में आतंक को बढ़ावा देने में किया जाएगा। यानी भारत अपने ही नागरिकों के लिए दुखों को निमंत्रण दे रहा है।

पाक की करतूतों को रोकने के लिए भारत को उठाने होंगे कड़े कदम

इससे निपटने के लिए भारत को कुछ कड़े उपाय करने होंगे। जैसे अत्याधुनिक तकनीक के साथ निगरानी बढ़ाई जानी चाहिए। खुफिया सेवाओं को आवश्यक रूप से सतर्क किया जाए। वहीं करतारपुर से लौटने वाले श्रद्धालुओं को विभाजन के दौरान सिखों पर पाकिस्तानियों के जुल्मों की दास्तान सुनाना भी जरूरी है।

( लेखक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी हैं )