अभिषेक कुमार सिंह। Coronavirus origin मानव इतिहास बताता है कि इस धरती से युद्ध कभी खत्म नहीं हुए। हम शांति की जितनी अधिक कामना करते हैं, उतनी ही अधिक लड़ाइयां दुनिया के किसी न किसी हिस्से में चलती रहती हैं। कभी बम और मिसाइलें बरसाई जाती हैं, तो कभी छिपकर गोरिल्ला शैली के युद्ध छेड़े जाते हैं। इसमें विज्ञान और तकनीक की तरक्की ने नए किस्मों के हथियार बनाकर आग में और घी डालने का काम किया है। जैसे, माइक्रोवेव तरंगें, साइबर जंग और जैविक युद्ध आदि। बताया जाता है कि आज से करीब सौ साल पहले प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जर्मन सैनिकों द्वारा एंथ्रेक्स और ग्लैंडर्स के जीवाणुओं का जो प्रयोग किया गया था, वह विकसित जैविक हथियारों का ही नमूना था। अब नया मामला कोरोना वायरस की उत्पत्ति का है।

पिछले लगभग डेढ़ साल से पूरी दुनिया में इस पर चर्चा जारी है कि आखिर कोरोना वायरस आया कहां से है। शक की सूई ज्यादातर समय चीन और वुहान स्थित उसकी प्रयोगशाला पर जाकर ही अटकती रही है। इधर एक अमेरिकी रिपोर्ट में दावे के साथ कहा गया है कि जब खुद चीन ने कोरोना वायरस का पहला मामला दर्ज किया था, उससे एक महीने पहले वुहान स्थित वायरोलॉजी लैब के शोधकर्ताओं को इसी वायरस की चपेट में आने के बाद अस्पताल में भर्ती किया गया था।

इसी संदर्भ में अमेरिका का बाइडन प्रशासन इसकी जांच को लेकर अड़ गया है कि दुनिया को इसका पता चलना ही चाहिए कि इस घातक वायरस की उत्पत्ति के पीछे कहीं वास्तव में चीन ही तो नहीं है। सिर्फ अमेरिका ही नहीं, हम सभी के मन में यह सवाल उमड़-घुमड़ रहा है कि क्या सच में इस वायरस और इससे पैदा महामारी के पीछे चीन है। क्या उसी ने खुद को महाशक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए कोरोना वायरस के रूप में जैविक युद्ध की शुरुआत की, ताकि वह र्आिथक रूप से ताकतवर होकर उभरे और अपना वर्चस्व कायम कर ले। चर्चाएं और आशंकाएं कई हैं, पर इसमें ताजा बदलाव ‘वल्र्ड हेल्थ असेंबली’ की ओर से हो सकता है।

अमेरिकी रिपोर्ट के हवाले से ‘वल्र्ड हेल्थ असेंबली’ में इस पर विचार हो रहा है कि क्या ऐसी कोई वैश्विक महामारी संधि तैयार हो सकती है, जिसमें दुनिया को जैविक युद्ध छेड़ने की आशंकाओं की रोकथाम हो सके और ऐसा करने वाले गुनहगार देश को दंडित किया जा सके। अगर ऐसा हो सका तो कोविड-19 जैसी भयानक महामारी से बचने के लिए देशों को कानूनी रूप से जवाबदेह बनाया जा सकेगा। पर इस पूरी कवायद को शुरू करने के पीछे जो असली सवाल है, वह यही है कि क्या चीन ही कोरोना का जनक देश है। और क्या उसी ने अपने शातिर दिमागों का इस्तेमाल कर दुनिया पर यह जैविक युद्ध थोप दिया है।

ट्रंप ने भी जताया था संदेह : चीन पर संदेह करने वालों में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सबसे आगे थे। राष्ट्रपति रहते हुए किए गए अपने एक ट्वीट में उन्होंने कोरोना को चाइनीज वायरस कहकर सीधे तौर पर इसके लिए चीन को जिम्मेदार ठहरा दिया था। उनके अलावा, तत्कालीन विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने भी इसे ‘वुहान वायरस’ कहा था। इसे चाइनीज वायरस कहने से ट्रंप प्रशासन का आशय यह था कि चीन ने इस वायरस को अमेरिका से बदला लेने के लिए अपनी प्रयोगशाला में पैदा किया, लेकिन वह इस पर अपना नियंत्रण नहीं रख सका। ऐसे में बेकाबू चाइनीज वायरस पूरी दुनिया में फैल गया। चीन की सरकार वायरस के इस नामकरण से काफी नाराज हुई। इसके बाद चीन के तमाम इंटरनेट मीडिया प्लेटफॉर्म से ऐसी खबरें आने लगीं कि इस वायरस की पैदावार के पीछे असल में अमेरिका का हाथ है। इन आरोपों के मुताबिक कोरोना से पैदा हुई महामारी अमेरिकी मिलिट्री जर्म वॉरफेयर प्रोग्राम के जरिये फैली है। हालांकि अमेरिका और चीन के बीच कोरोना वायरस के संदर्भ में हो रही बयानबाजी को इन मुल्कों के वर्चस्व की जंग के तौर पर भी देखा गया। कहा गया कि ऐसा इन दोनों देशों में खुद को महाशक्ति के रूप बनाने या कायम रखने की जंग के चलते हुआ। लेकिन अब एक बार फिर अमेरिका ने नए दावों के आधार पर चीन को आड़े हाथों लिया है।

अमेरिकी विदेश विभाग को प्राप्त हुए खुफिया दस्तावेजों के हवाले से मीडिया रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि चीन ही कोरोना वायरस का जनक है। इन खुफिया दस्तावेजों का स्रोत ब्रिटिश अखबार ‘द सन’ है जिसने ‘द ऑस्ट्रेलियन’ के हवाले से बताया है कि चीन की वायरस में संलिप्तता की विस्फोटक जानकारी अमेरिकी विदेश विभाग के हाथ लगी है। इस जानकारी के मुताबिक पीएलए यानी चीनी सेना के कमांडर ये कुटिल पूर्वानुमान लगा रहे थे कि किस तरह कोरोना वायरस के जरिये दुनिया की र्आिथक बर्बादी तय की जा सकती है और कैसे चीन का वर्चस्व कायम किया जा सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2015 में ही चीनी सेना के कमांडर एक तीसरे विश्वयुद्ध का अंदाजा लगा रहे थे, जिसे जैविक हथियारों से लड़ा जाना है। इन कथित दस्तावेजों में यह उल्लेख भी है कि इस वायरस को कृत्रिम रूप से बदला जा सकता है और इसे इंसानों में बीमारी पैदा करने वाले जीवाणु में बदला जा सकता है। इसके बाद इसका इस्तेमाल एक ऐसे हथियार के रूप में किया जा सकता है जिसे दुनिया ने पहली बार कभी नहीं देखा है।

जैविक युद्धों का इतिहास : जैविक युद्ध की बात हवा-हवाई नहीं है। इसका एक इतिहास भी है। ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि ईसा पूर्व छठी शताब्दी में मेसोपोटामिया के अस्सूर साम्राज्य के लोगों ने पानी पीने के कुओं में एक जहरीला कवक (फंगस) डालकर दुश्मन के असंख्य सैनिकों को मौत की नींद सुला दिया था। यूरोपीय इतिहास के अनुसार तुर्की व मंगोल साम्राज्य में संक्रमित पशु शरीरों को शत्रु राज्य के जल स्रोतों में डाल कर उन्हें संक्रमित कर दिया जाता था। पहले विश्व युद्ध (1914-18) के दौरान जर्मन सैनिकों ने एंथ्रेक्स जैसे जीवाणुओं के रूप में जैविक हथियारों के इस्तेमाल से आधुनिक युग की पहली जंग लड़ी थी। ऐसे में अब अगर चीन व्यापार युद्ध (ट्रेड वॉर) में अमेरिका से पिछड़ने के बाद उसे सबक सिखाने के लिए कोरोना वायरस का इस्तेमाल कर रहा होगा, इस आशंका को लेकर ज्यादा संदेह नहीं रह जाता है। सिर्फ अमेरिका ही नहीं, लद्दाख बॉर्डर पर अपने एशियाई प्रतिद्वंद्वी भारत को भी वह कोरोना वायरस के रूप में एक अदृश्य जंग में उलझाए रखना चाहता है। पर यह सब चीन ने कहां से शुरू किया, इस सवाल के जवाब में वुहान स्थित उसकी प्रयोगशाला पर ही नजर जाती है।

क्या चीन बताएगा कि सच क्या है : वैसे तो इसकी पुष्टि चीन को ही करनी है कि इस वायरस की शुरुआत वुहान स्थित फ्रेश सी-फूड मार्केट से हुई और इसकी उत्पत्ति में चमगादड़ों और सांप के मांस से तैयार की गई डिश (भोजन) है या फिर इसमें कुछ योगदान वुहान स्थित उस प्रयोगशाला का है, जिसमें खतरनाक वायरसों पर प्रयोग किए जाते हैं। लेकिन वुहान स्थित जैव प्रयोगशाला पी 4 को लेकर दुनिया भर के शक की एक और वजह बताई जा रही है। दावा है कि वुहान में जब न्यूमोनिया का पहला मामला नजर आया था, तो उससे कुछ दिन पहले ही चीन के उपराष्ट्रपति वांग किशान चुपचाप वहां (वुहान) पहुंचे थे। दावा किया गया कि वांग वहां जैविक हथियारों की योजना की प्रगति देखने गए थे। इस संबंध में जैविक हथियारों (बायोलॉजिकल वॉरफेयर) पर अध्ययन करने वाले इजरायल के एक पूर्व मिलिट्री इंटेलिजेंस ऑफिसर का दावा है कि कोरोना वायरस को चीन की ही पी 4 लैब में तैयार किया गया। कुछ विशेषज्ञ यह भी आशंका जता रहे हैं कि हो सकता है कि चीन ने जानबूझकर कोरोना वायरस को लीक किया हो। लेकिन उसे इस लीकेज से होने वाले नुकसान का अंदाजा नहीं था, इसलिए चीन अब पूरे मामले पर पर्दा डालने की पुरजोर कोशिशें कर रहा है।

ज्यादा संहारक होते हैं अदृश्य जंग : जहां तक कोरोना वायरस जैसे जैविक हथियारों को किसी जंग का अहम हिस्सा बनाने की बात है तो ऐसे युद्धों की रूपरेखा कई बार पेश की जा चुकी है। मई, 2014 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा जिनेवा में आयोजित चार दिवसीय कॉन्फ्रेंस में बताया गया था कि जल्द ही ऐसे स्वचालित रोबोटों के जरिये युद्ध लड़े जाएंगे, जो एक बार चालू (एक्टिवेट) कर देने पर बिना किसी इंसानी दखल के अपना निशाना खुद चुन सकेंगे और उसे तबाह कर सकेंगे। ऐसी ही आशंका जैविक हथियारों के संबंध में जताई गई थी। यही नहीं, अब से चार साल पहले वर्ष 2017 में भारत के तत्कालीन रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने डीआरडीओ यानी रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के एक कार्यक्रम में यह आशंका प्रकट की थी कि पड़ोसी देश पाकिस्तान भी रासायनिक या जैविक युद्ध की तैयारी कर रहा है। उन्होंने इस बारे में एक बयान दिया था कि अफगानिस्तान और उत्तरी हिस्सों से कई ऐसी रिपोर्ट आ रही हैं, जहां स्थानीय लोग शरीर पर चकत्ते या किसी तरह के रासायनिक हथियार से प्रभावित नजर आते हैं। तत्कालीन रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर के मुताबिक, ये तस्वीरें विचलित करने वाली थीं। हालांकि पर्रिकर ने यह भी कहा कि वह इस मुद्दे की पुष्टि नहीं कर सकते, लेकिन देश को किसी भी किस्म की जंग के लिए तैयार रहना चाहिए। पर्रिकर ने तब कहा था कि भारत पर पड़ोसी मुल्कों की तरफ से परमाणु, रासायनिक या जैविक हमले का फिलहाल कोई खतरा भले न हो, लेकिन देश भविष्य में किसी भी आशंका से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार है।

उल्लेखनीय है कि इस कार्यक्रम में रक्षा मंत्री पर्रिकर ने सेना को डीआरडीओ के बनाए जो तीन उत्पाद सौंपे थे, उनमें से दो उत्पादों (एनबीसी रेकी व्हीकल और एनबीसी मेडिकल किट) का मकसद इन तीनों किस्मों के हथियारों की मौजूदगी का पता लगाना और न्यूक्लियर, बायोलॉजिकल व केमिकल हथियारों के प्रभाव से लोगों को बचाना है। आज की स्थिति में मनोहर पर्रिकर की दूरदृष्टि का पता चल रहा है। अगर जैविक हथियारों से निपटने की योजना पर गंभीरता से अमल किया गया होता, तो संभव है कि हमारे देश में कोरोना से उतना संहार नहीं होता, जितना अब हो चुका है। यदि अब भी हम इस दिशा में नहीं चेते तो भविष्य में इसका गंभीर खामियाजा हमें भुगतना पड़ सकता है।

[संस्था एफआइएस ग्लोबल से संबद्ध]