[ संजय गुप्त ]: राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के साथ ही नागरिकता संशोधन विधेयक ने कानून का रूप ले लिया। मोदी सरकार ने इस विधेयक को पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा से जिस तरह पारित कराने में सफलता प्राप्त की उससे उसके राजनीतिक कौशल का पता चलता है। इस विधेयक को कानून का रूप देकर मोदी सरकार ने अपने एक और अहम वादे को पूरा किया। इसके पहले वह अनुच्छेद 370 को हटा चुकी है और अयोध्या मामले का समाधान सुप्रीम कोर्ट ने कर दिया।

मोदी सरकार समस्याओं के समाधान के लिए ही सत्ता में आई- शाह

नागरिकता विधेयक पर बहस के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने स्पष्ट किया कि यह एक समस्या का निराकरण करने के लिए लाया गया विधेयक है और मोदी सरकार समस्याओं के समाधान के लिए ही सत्ता में आई है, न कि सत्ता सुख भोगने के लिए। जैसा पहले से स्पष्ट था, कांग्रेस और कुछ अन्य दलों ने इस विधेयक का विरोध किया, फिर भी राज्यसभा में सरकार को इसलिए आसानी हुई, क्योंकि बीजद जैसे दलों ने विधेयक का समर्थन किया। शिवसेना का रवैया अजीब रहा। उसने लोकसभा में समर्थन किया, लेकिन राज्यसभा में उसके बहिष्कार पर उतर आई।

कानून बन जाने के बाद भी विरोध जारी

इस विधेयक के कानून बन जाने के बाद भी उसका विरोध जारी है। विपक्षी दल अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों के बीच अंतर करने के कारणों को समझने के लिए तैयार नहीं। हालांकि गृहमंत्री ने इन कारणों को बार-बार स्पष्ट किया, लेकिन विपक्ष इसी पर अड़ा है कि यह कानून संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों और खासकर अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है।

गृहमंत्री के बयान से विपक्ष संतुष्ट नहीं

साफ है कि वह इसकी अनदेखी कर रहा है कि नागरिकता कानून तीन पड़ोसी देशों के प्रताड़ित धार्मिक अल्पसंख्यकों और वहां के बहुसंख्यकों में भेद करता है, न कि हिंदू-मुसलमानों के बीच। विपक्ष यह समझने को तैयार नहीं कि अनुच्छेद 14 तर्कसंगत विभेद आधारित कानून बनाने की अनुमति देता है। विपक्ष इस बात को भी ओझल कर रहा है कि गृहमंत्री साफ कर चुके हैं कि यदि उक्त तीन देशों के बहुसंख्यक यानी मुसलमान भारत की नागरिकता चाहेंगे तो उस पर विचार होगा।

कानून भारतीय मुसलमानों के खिलाफ- विपक्षी दल

समस्या केवल यह नहीं कि विपक्षी दल नागरिकता कानून का विरोध कर रहे हैं, बल्कि यह भी है कि वे उसे लेकर लोगों को बरगलाने और उकसाने का काम कर रहे हैं। उनकी ओर से यह प्रचारित किया जा रहा है कि यह कानून भारतीय मुसलमानों के खिलाफ है। यह प्रचार तब हो रहा है जब इस कानून का किसी भी मजहब के भारतीय नागरिकों से कोई संबंध नहीं। जाहिर है कि एक संवेदनशील मसले पर दुष्प्रचार के कारण लोगों में गलत संदेश जा रहा है और वे आशंकित हो रहे हैं। इस आशंका को भुनाया जा रहा है।

असम और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में लोग उतरे सड़कों पर

नागरिकता कानून पर गलत और उकसावे वाले प्रचार के कारण ही असम और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में लोग सड़कों पर उतर आए हैैं। इस विरोध का आधार यह अंदेशा है कि बाहरी लोगों को नागरिकता देकर उनके यहां बसा दिया जाएगा। असम के लोगों को लगता है कि इससे उनकी संस्कृति के लिए खतरा पैदा हो जाएगा। असम आजादी के बाद से ही पहले पूर्वी पाकिस्तान, फिर बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ का शिकार है। बांग्लादेश के करोड़ों लोग असम में बस चुके हैैं। उनके चलते असम का सामाजिक और राजनीतिक माहौल बदल गया है। इसी कारण असमी लोग बांग्लादेश से आए बांग्ला भाषी हिंदुओं को भी स्वीकार करने को तैयार नहीं।

क्षेत्रीयता का राष्ट्रीयता पर हावी होना एक विडंबना

असम में बाहरी लोगों के खिलाफ उग्र आंदोलन का एक लंबा इतिहास रहा है। उग्रवादी संगठन उल्फा इसी आंदोलन की उपज था। आज असम और अन्य पड़ोसी राज्यों में नागरिकता कानून के विरोध में जो आक्रोश देखने को मिल रहा है वह क्षेत्रवाद की राजनीति का ही परिचायक है। क्षेत्रीयता का राष्ट्रीयता पर हावी होना एक विडंबना ही है। क्षेत्रवाद को हवा देने वाली राजनीति तमिलनाडु, बंगाल और महाराष्ट्र में भी जब-तब की जाती रही है। एक समय पंजाब में भी इसी राजनीति को हवा दी गई थी।

केरल, बंगाल समेत कई राज्य नागरिकता कानून लागू नहीं करेंगे

केरल, बंगाल, पंजाब, मध्य प्रदेश आदि राज्यों की ओर से यह जो कहा गया कि वे नागरिकता कानून लागू नहीं करेंगे वह केवल क्षेत्रवाद की शर्मनाक राजनीति ही नहीं, संघीय ढांचे का निरादर भी है।

पात्र लोगों को नागरिकता देकर वहीं बसाना होगा बेहतर

नागरिकता कानून को लेकर असम में जो हिंसा जारी है उसका औचित्य इसलिए नहीं, क्योंकि यह कानून वहां के कुछ ही जिलों में लागू होगा। यही स्थिति पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों की है। कुछ राज्य तो इनर लाइन परमिट से पूरी तरह संरक्षित हैैं। पूर्वोत्तर के जो जनजातीय क्षेत्र हैैं वे भी इस कानून से बाहर हैैं ताकि उनकी मूल संस्कृति सुरक्षित रहे। पूर्वोत्तर के जो इलाके इस कानून के दायरे में हैैं वे वही हैैं जहां बाहरी लोग दशकों से रह रहे हैैं और वहां के माहौल में घुलमिल गए हैैं। केंद्र सरकार का मानना है कि इनमें से पात्र लोगों को नागरिकता देकर वहीं बसाना बेहतर होगा। ऐसे इलाकों से संबंधित राज्य सरकारें सैद्धांतिक तौर पर इससे सहमत हैैं, लेकिन राजनीतिक नुकसान के चलते वे ऐसा कहने से बच रही हैैं।

असम में भाजपा नेता विरोध कर सकते हैैं, असम गण परिषद विरोध में है

असम की भाजपा सरकार में असम गण परिषद एक प्रमुख घटक है, लेकिन उसके कुछ नेता इस कानून का विरोध कर रहे हैैं। कुछ भाजपा नेता भी इसके खिलाफ हो सकते हैैं। बेहतर होगा कि उन नेताओं से संपर्क-संवाद तेज किया जाए जो नागरिकता कानून को लेकर आशंकित हैैं। कायदे से यह काम विधेयक पेश करने के पहले ही किया जाना चाहिए था, क्योंकि यह तय था कि कुछ दल इस मसले पर राजनीतिक रोटियां सेंकने का काम करेंगे। आज यही हो रहा है, जबकि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री यह कह रहे हैैं कि इस कानून से पूर्वोत्तर की स्थानीय संस्कृति को कोई खतरा पैदा नहीं होने दिया जाएगा।

राष्ट्रीय महत्व के मसलों को हिंसा के सहारे नहीं सुलझाया जा सकता

राष्ट्रीय महत्व के मसलों को हिंसा के सहारे नहीं सुलझाया जा सकता। हिंसा से तो वैमनस्य ही बढ़ेगा, जबकि जरूरत सामंजस्य बढ़ाने की है। बाहर से आए जो लाखों लोग दशकों से पूर्वोत्तर में रह रहे हैैं उन्हें उनके हाल पर नहीं छोड़ा जा सकता। उन्हें नागरिक या शरणार्थी घोषित करने का काम करना ही होगा।

भारत के पास इतने संसाधन नहीं कि वह हर किसी को देश में रहने का अधिकार दे दे

इस मामले में एक सीमा तक ही उदारता दिखाई जा सकती है, क्योंकि भारत के पास इतने संसाधन नहीं कि वह हर किसी को देश में रहने का अधिकार दे दे। विपक्ष असम की तर्ज पर शेष देश में एनआरसी लागू करने की घोषणा का भी विरोध कर रहा है, लेकिन उसे यह समझना होगा कि हर देश को यह जानने का अधिकार है कि उसके यहां रह रहे लोगों में कौन उसके नागरिक हैैं और कौन नहीं?

अन्य देशों की तरह भारत को भी नागरिकों की पहचान करनी होगी

अन्य देशों की तरह भारत को भी अपने और दूसरे देश के नागरिकों की पहचान करनी होगी। दूसरे देशों की नागरिकों की पहचान करते समय यह भी देखना होगा कि कौन घुसपैठिया है और कौन शरणार्थी? इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि तमाम घुसपैठियों ने मतदाता पहचान पत्र, राशन कार्ड और आधार कार्ड तक बनवा लिए हैैं। वे भारतीय नागरिकों की तरह भारत के संसाधनों का लाभ उठा रहे हैैं। यह ठीक नहीं। इस सिलसिले को रोकना ही होगा।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं ]