[ संजय गुप्त ]: नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए को लेकर विपक्षी दल दिल्ली के साथ देश के विभिन्न हिस्सों में आम लोगों और खासकर मुस्लिम समुदाय को जिस तरह छल-कपट के सहारे उकसाकर सड़कों पर उतारने में लगे हुए हैैं वह भारतीय राजनीति के विकृत होते जाने का ही प्रमाण है। विपक्षी दलों के इस शरारत भरे हथकंडे के बीच सरकार ने इस कानून को अधिसूचित कर अपने अडिग इरादे का परिचय दिया है। जहां सरकार अडिग है वहीं विपक्षी दल भी टकराव की राह पर बढ़ते दिख रहे हैैं। केरल सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है और पंजाब सरकार ने विधानसभा में सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया है।

विपक्षी दलों के अड़ियल रवैये के बीच सरकार एनपीआर पर आगे बढ़ रही 

विपक्षी दलों के इस अड़ियल रवैये के बीच सरकार राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर तैयार करने की दिशा में बढ़ रही है। यह जनगणना के तहत एक संवैधानिक दायित्व है, फिर भी बंगाल सरकार इस प्रक्रिया में शामिल होने से इन्कार कर रही है। यह तब है जब एनपीआर तैयार करने का काम 2010 में भी हो चुका है।

विपक्षी दलों ने एनपीआर को लेकर भी भ्रम फैलाना शुरू कर दिया 

यह देखना दुर्भाग्यपूर्ण है कि विपक्षी दलों ने एनपीआर को लेकर भी जनमानस में भ्रम फैलाना शुरू कर दिया है। वे इस तरह की अफवाहों को हवा दे रहे हैैं कि एनपीआर के बाद एनआरसी की तैयारी की जाएगी। इस तरह की झूठी अफवाहें किस सुनियोजित तरीके से फैलाई जा रही हैैं, इसका उदाहरण है दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में एक माह से जारी धरना।

दिल्ली के शाहीन बाग में एक माह से जारी धरने से लाखों लोग परेशान

नोएडा को दिल्ली से जोड़ने वाली इस सड़क पर काबिज होकर दिए जा रहे धरने के कारण हर दिन लाखों लोग परेशान हो रहे हैैं, लेकिन इस परेशानी को दरकिनार करके भीड़ को बरगलाया जा रहा है। इस काम में विपक्षी नेताओं के साथ कुछ वामपंथी एक्टिविस्ट, फिल्मकार और मीडिया के लोग भी शामिल हैैं। यह देखना दुखद है कि स्वार्थी तत्वों की ओर से प्रायोजित इस धरने को जारी रखने के लिए छल-छद्म के साथ प्रलोभन का भी सहारा लिया जा रहा है। विपक्षी दल इस तरह के धरने देश के अन्य हिस्सों में भी शुरू करते दिख रहे हैैं। वे ऐसा तब कर रहे जब खुद उन्होंने सीएए को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी हुई है। आखिर यह कितना उचित है कि जिस मसले पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाए उसी को लेकर सड़कों पर उतरा जाए?

सीएए के साथ ही एनपीआर का विरोध असंवैधानिक कृत्य है

सीएए के साथ ही एनपीआर का विरोध असंवैधानिक कृत्य ही है। संसद से पारित कानून का इस तरह का विरोध संवैधानिक अराजकता को ही जन्म देगा। इस अराजकता का परिचय तब दिया जा रहा है जब नागरिकता पूरी तौर पर केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र का विषय है। ऐसे विषय पर भी केंद्र सरकार को सीधी चुनौती देना सस्ती राजनीति के अलावा और कुछ नहीं। आखिर भारतीय लोकतंत्र की दुहाई देने वाले दुनिया भर के तमाम देश क्या सोच रहे होंगे? यह ठीक है कि अतीत में संवैधानिक ढांचे से छेड़छाड़ हुई है और कोई भी नहीं भूल सकता कि 1975 में देश में किस तरह आपातकाल थोप दिया गया था, लेकिन इसके बाद भी भारतीय लोकतंत्र की मिसाल दी जाती है।

लोकतंत्र की मिसाल को छिन्न-भिन्न किया जा रहा है

अब इस मिसाल को छिन्न-भिन्न करने का काम किया जा रहा है। शर्मनाक यह है कि इसमें बंगाल, केरल के अलावा कांग्रेस शासित राज्य सरकारें भी शामिल हैं। आखिर कांग्रेस किस मुंह से संविधान और लोकतंत्र की दुहाई दे रही है? कांग्रेस शासित राज्य सरकारें केरल और बंगाल की तरह संविधान की शपथ का उल्लंघन ही कर रही हैैं। इस मामले में ममता बनर्जी सारी हदें लांघ रही हैैं।

बैठक का बहिष्कार करके ममता ने अपनी क्षुद्रता भरी राजनीति पर नए सिरे से मुहर लगाई

केंद्र सरकार की ओर से जनसंख्या रजिस्टर और जनगणना की प्रारंभिक तैयारियों को लेकर बुलाई गई बैठक का बहिष्कार करके ममता ने अपनी क्षुद्रता भरी राजनीति पर नए सिरे से मुहर लगाई है। राष्ट्रीय महत्व के जरूरी कामों में इस तरह की अडं़गेबाजी संवैधानिक तौर-तरीकों का अनादर ही नहीं, संघीय ढांचे को सीधे तौर पर दी जाने वाली चुनौती है। ममता केंद्र सरकार के प्रति अंध विरोध से इतनी अधिक ग्रस्त हैैं कि कई जनकल्याणकारी योजनाओं से भी बंगाल को बाहर किए हुए हैैं।

विधानसभा चुनाव करीब देख ममता जुटीं वोट बैैंक की राजनीति को मजबूत करने में

वह अंध विरोध की राजनीति इसीलिए कर रही हैैं, क्योंकि बंगाल में भाजपा एक बड़ी राजनीतिक ताकत के रूप में उभर रही है। चूंकि विधानसभा चुनाव करीब आ रहे हैैं इसलिए वह वोट बैैंक की राजनीति को मजबूत करने में जुट गई हैैं। वह बीते कुछ समय से बांग्लादेशी घुसपैठियों को निकालने की मांग का भी विरोध करने लगी हैैं। एक समय वह इससे कुपित थीं कि इन घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें बंगाल से निकाला क्यों नहीं जा रहा है?

सीएए-एनपीआर का विरोध करके मुस्लिम वोट बैैंक को साधने में लगीं ममता

वह शायद इस नतीजे पर पहुंच गई हैैं कि सीएए और एनपीआर के विरोध में आगे दिखकर वह अपने मुस्लिम वोट बैैंक को आसानी से सुरक्षित रख सकेंगी। कुछ ऐसे ही नतीजे पर अन्य विपक्षी दल भी पहुंच गए लगते हैैं और यही कारण है कि सीएए के विरोध में मुस्लिम समुदाय को आगे किया जा रहा है।

हर विपक्षी दल मुसलमानों का अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करना चाह रहा है

चूंकि हर दल मुसलमानों का अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करना चाह रहा है इसलिए उनकी ओर से सीएए को मुस्लिम विरोधी बताने की होड़ मची है। मुस्लिम समाज को भ्रमित और भयभीत करने के फेर में ही एनपीआर का विरोध किया जा रहा है। विपक्षी दलों को मुसलमानों को बरगलाने में आसानी इसलिए हो रही है, क्योंकि वे पहले से ही मुसलमानों को भाजपा का भय दिखाते चले आ रहे हैैं।

मोदी सरकार ने मुसलमानों के लिए सर्वाधिक काम किया

इस भय का कोई आधार नहीं, क्योंकि बीते पांच सालों में अल्पसंख्यक कल्याण की योजनाओं को जितनी सफलता से मोदी सरकार ने लागू किया है उतना शायद ही किसी सरकार ने किया हो। यह एक दुष्प्रचार ही है कि अनुच्छेद 370 हटाकर मुस्लिम हितों के खिलाफ काम किया गया? क्या भारत के मुसलमानों का हित देश हित से अलग है? इस अनुच्छेद को हटाकर तो कश्मीर के मुसलमानों को देश की मुख्यधारा में लाने की ठोस पहल की गई है। साफ है कि विपक्षी दल अपने संकीर्ण राजनीतिक हितों के लिए मुसलमानों से छल कर रहे हैैं।

मुस्लिम समाज को विपक्ष के छल को समझना चाहिए

अच्छा होगा कि खुद मुस्लिम समाज इस छल को समझे और यह देखे कि उसे किस तरह इस्तेमाल किया जा रहा है? आखिर जब सुप्रीम कोर्ट सीएए के खिलाफ दायर याचिकाओं को सुनने के लिए तैयार है और 22 जनवरी से सुनवाई तय भी हो गई है तब फिर उचित यही होगा कि उसके फैसले की प्रतीक्षा की जाए। जो ऐसा नहीं कर रहे वे एक तरह से सुप्रीम कोर्ट की अनदेखी ही कर रहे हैैं।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं ]