[जगमोहन सिंह राजपूत]। करीब एक माह पहले मोदी सरकार की ओर से अनुच्छेद 370 और 35-ए को खत्म करने के लिए जो फैसला किया गया उस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने का सिलसिला अभी भी कायम है। हालांकि इस फैसले का विरोध भी हो रहा है, लेकिन इससे इन्कार नहीं कि देश लंबे समय से इन अनुच्छेद और खासकर 370 को हटाए जाने का इंतजार कर रहा था।

इसके लिए जिस साहस की आवश्यकता थी वह मोदी सरकार दिखा सकी। इसी कारण कई विरोधी नेता भी इस फैसले का विरोध कर रहे हैं, लेकिन अन्य हमेशा की तरह उन पर निशाना साधने और उन्हें भला-बुरा कहने में लगे हुए हैं। ऐसे नेता मोदी के लिए सहायक ही साबित हो रहे हैं।

मोदी की सफलता में कुछ शब्दों का बड़ा योगदान 
यदि नरेंद्र मोदी की राजनीतिक यात्रा में उनके विरोधियों ने जो योगदान किया है उस पर कोई अध्ययन किया जाए तो यह अवश्य निकल कर बाहर आएगा कि अपने विरोधियों के एक-एक शब्द को कान-लगाकर सुनिए, उस पर विचार कीजिए और अपनी रणनीति निर्धारण में उसका उचित प्रत्युत्तर निहित करिए। मोदी की व्यक्तिगत प्रगति यात्रा में कुछ शब्दों का भारी योगदान है।

जब देश ने मोदी के द्वारा गुजरात में किए गए सफल कार्यों के संबंध में जानना और ध्यान देना आरंभ किया तब उनके विपक्षी चिंतित होकर और ‘अपनी सेकुलर छवि भुनाने के लिए’ ‘मौत का सौदागर’ का हथियार बनाकर लाए। वे भूल गए कि जनता अब जनतंत्र को पहले से अधिक गहराई से समझती है और व्यवहार में सूक्ष्म दृष्टि से उसे परखती है। मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी की उपलब्धियों का लाभ गुजरात में घर-घर पहुंच चुका था, उसकी आभा में ‘मौत का सौदागर’ उसके झंडाबरदारों की ओर ही बिना किसी प्रयास के पलटवार बन गया।

मणिशंकर अय्यर का विवादित बयान
फिर 2014 में आए मणिशंकर अय्यर। उन्होंने दया दिखाते हुए चुनावों में हार के बाद नरेंद्र मोदी को चाय की दुकान खोलने की पेशकश की और शुरू हो गई ‘चाय पर चर्चा’ जो देश के हर गांव, गली-कूचे तक पहुंची। मणिशंकर को पाकिस्तान जाकर कहना पड़ा कि मोदी को हटाने में मदद कीजिए। यह राष्ट्र के लिए लज्जाजनक था और लोगों ने इसे भुलाया नहीं। अन्य भी कई थे जो लगातार आत्माघाती गोल करते जा रहे थे, मगर ईष्र्या और सत्ता में लौटने की जल्दी में इसे समझ ही नहीं पाए।

राजनीति और दलगत राजनीति पर तीन शब्द
2019 के चुनाव परिणामों पर कई विद्वानों ने अपना-अपना विश्लेषण किया है और आगे भी करते रहेंगे, मगर मेरे जैसे लोग तो चाहेंगे कि ‘चौकीदार चोर है’ के नारे पर अनेक विद्वान और विश्वविद्यालय गहन अध्ययन करें और कराएं। जब इस शब्द या धारणा का जमकर इस्तेमाल हो रहा था तब मेरी कई वरिष्ठ लोगों से चर्चा हुई। मैंने कहा कि क्या यह बोफोर्स में चोरी के आरोपों से मानसिक निजात पाने की अभिव्यक्ति तो नहीं? भारत की राजनीति और दलगत राजनीति पर तीन शब्दों-मौत का सौदागर, चायवाला और चोर का प्रभाव स्थायी है।

दिग्विजय सिंह के विवादित बयान
मोदी-विरोधी राजनीति को समझने का सबसे सरल, सटीक और सुपरिचित उदहारण हैं दिग्विजय सिंह जिन्हें पता ही नहीं चला कि उनकी साख और स्वीकार्यता कहां तिरोहित हो गई। वह अभी मानते हैं कि उनकी पार्टी को राष्ट्रीय पटल पर पुन: उभरने और सत्ता में स्थापित होने के लिए हिंदू-मुस्लिम का भेद बढ़ाने के अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग है ही नहीं।

उन्होंने अभी सबसे नई खोज देश के सामने रखी है कि पाकिस्तान और आइएसआइ के लिए जासूसी करनेवालों में हिंदू अधिक हैं। यह समझ पाना मुश्किल है कि यह ‘दिग्विजयी सच’ सामाजिक सद्भाव और पंथिक एकता बढ़ाने में कैसे सहायक होगा?

बदले की राजनीति का रोना 
इस सारे संदर्भ में आशाजनक स्थिति यह है कि नरेंद्र मोदी के संबंध में लोगों में जो आदरभाव है वह जनमानस में उन अरबपतियों पर भारी पड़ता है जिन्होंने दूध बेचकर, बैगन उगाकर, सेव बेचकर, चंदा पाकर अरबों कमा लिए, अकूत संपत्ति के मालिक हो गए और जो अब ‘बदले की राजनीति’ का रोना रो रहे हैं। बेनामी संपत्ति क्यों जब्त नहीं होनी चाहिए? मेहुल चौकसी, नीरव मोदी, विजय माल्या जैसों को वापस लाने के प्रयास का समर्थन क्यों नहीं होना चाहिए?

तीन लाख से अधिक शेल कंपनियां बंद हुईं। क्या यह भ्रष्टाचार के विरुद्ध महत्वपूर्ण उपलब्धि नहीं है? सरकार से कभी भी कोई भी पूर्णरूपेण संतुष्ट नहीं हो सकता है, न होना चाहिए। प्रगति और गतिशीलता बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है। प्रजातंत्र के सिद्धांत और व्यवहार विपक्ष को ऐसा कोई निर्देश नहीं देते हैं कि सरकार की सजीव और सफल उपलब्धियों पर निगाह ही न डाली जाए। विपक्ष कई बार ऐसा करता ही दिखता है।

अमेरिका ने पीएम मोदी का किया भव्य स्वागत
नरेंद्र मोदी ने जब प्रारंभ में विदेश यात्राएं प्रारंभ कीं तो उनका हर देश में अभूतपूर्व स्वागत हुआ। इनमें वह अमेरिका भी था जिसने कभी मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी को भारत के मानवाधिकार संगठनों के प्रचार के कारण वीजा देने से मना कर दिया था। वही अमेरिका नरेंद्र मोदी का स्वागत करने के लिए बाहें फैलाए खड़ा था।

बाद में वहां की संसद में मोदी के भाषण पर जो उत्साह दिखा वह अद्भुत और अकल्पनीय था। कुछ लोग नरेंद्र मोदी की दूरदृष्टि को समझ नहीं पाए और विदेश यात्राओं पर किए गए ‘अनावश्यक’ खर्चे का हिसाब मांगते रहे। उनकी आंखें तब भी नहीं खुलीं जब सऊदी अरब, अफगानिस्तान, मालदीव, बहरीन जैसे देशों ने भी नरेंद्र मोदी को अपने यहां के सर्वोच्च सम्मान दिए। इसी क्रम में अभी हाल में रूस ने भी उन्हें सम्मानित किया है।

राहुल गांधी और उमर अब्दुल्ला के देश विरोधी बोल
अनुच्छेद 370 और 35-ए के हटाए जाने के बाद विश्वभर में पाकिस्तान के प्रलाप का प्रभाव नगण्य कर पाना किसी दूरगामी रणनीतिक चिंतन की ही उपलब्धि हो सकती है। आज भी जम्मू-कश्मीर की स्थिति को लेकर कुछ जाने-पहचाने लोग देशहित को भुलाकर व्यक्तिगत पसंद-नापसंद के आधार पर भ्रम फैलाने तक ही अपने को सीमित कर रहे हैं और अपने शब्दों से पाकिस्तान के खिलौना बन रहे हैं। इसका उदाहरण तब मिला जब जेनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में पाकिस्तान ने भारत पर आरोप लगाने के क्रम में राहुल गांधी और उमर अब्दुल्ला के बयानों का सहारा लिया।


(लेखक एनसीईआरटी के निदेशक रहे हैं)

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