संतोष त्रिवेदी

हमारे मित्रों की सूची में उनका नाम हमेशा सबसे ऊपर रहा है। अफसोस की बात है कि अब वह हमारे मित्र नहीं रहे। बीती रात सोने के वक्त तक सब कुछ ठीक-ठाक था, लेकिन न मालूम इस बीच कौन से गृह की कुदृष्टि हमारी बरसों पुरानी दोस्ती पर पड़ गई कि अब हमारी जुबान पर न चाहते हुए भी वही गाना ही चढ़ा हुआ है कि ‘दोस्त-दोस्त न रहा....’ बीती रात बड़ी सुकून वाली बातचीत के बाद हमने बड़े इत्मीनान से नींद ली थी कि उनके फेसबुकिया दिल में अपन पूरी तरह सुरक्षित हैं। सुबह उठे तो देखा कि ठुकराए प्रेमी के गुलदस्ते की तरह अपन उनके फेसबुकिया दरवाजे पर मुरझाए पड़े हैं। दरवाजा अंदर से कसकर बंद है। धूल झाड़कर अंदर जाने की कोशिश की तो यह जानकर दिल और बैठ गया कि दरवाजा लॉक है और हम ब्लॉक!
मित्र गहरे थे इसलिए हम भी गहराई में डूब गए। भूकंप की तरह फेसबुक में भी ब्लॉक हो जाने का पूर्वानुमान अभी तक नहीं लग सका है। हमने तुरंत इस हादसे की खबर दूसरे मित्र से फोन पर साझा की। सुनते ही वह टूट पड़े-गलती तुम्हारी है। तुम दो दिन पहले देशभक्ति और नैतिकता पर उनसे खूब बहसियाये थे। उनसे तार्किक जवाब पाने की अशिष्ट कोशिश भी की थी। अब भुगतो।’ मैंने कहा, ‘हालांकि कल तक तो वह मेरी इसी अशिष्टता के घनघोर प्रशंसक हुआ करते थे। अचानक ऐसा क्या हुआ?’ उदासी को फोन में टैग कर हमने मित्र की ओर सवाल उछाल दिया। मित्र तैयार थे। पलटकर बोले-पहले मैं भी चेक कर लूं कि इस वक्त उनका मित्र हूं कि नहीं।’ दो मिनट बाद ही राहत की सांस लेते हुए उन्होंने बताया कि फिलहाल वह इस अनिष्ट से बच गए हैं। साथ ही इसके समर्थन में उन्होंने यह तर्क भी जोड़ दिया कि उनका शनि बहुत मजबूत स्थान पर बैठा हुआ है और वह खुद भी पहुंचे हुए सनीचर हैं। हम अवाक् रह गए। इस कोण से तो हमने सोचा ही नहीं। संयोग से यह वाकया शनिवार को ही घटित हुआ था। शायद इसीलिए वह बच गए और गाज हम पर गिर गई, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह कि अब हमारा क्या होगा? इसी उधेड़बुन में दुनिया में अपनी मुंह-दिखाई के तमाम विकल्पों पर हम विचार करने लगे।
मित्र ने इसका भी फौरी समाधान निकाल दिया। बोले-ऐसा करो कि कुछ दिनों के लिए तुम भूमिगत हो जाओ। मेरा मतलब मित्रता का खाता ही बंद कर दो। इसकी वजह से ब्लॉक होने के कारण पड़ने वाले विपरीत प्रभाव से बचा जा सकता है। उसने तुम्हें ब्लॉक किया है,तुम सबके लिए ब्लॉक हो जाओ।’ तिस पर मेरा जवाब यूं रहा, ‘लेकिन अभी कल ही तो हमने साहित्य-महोत्सव की अपनी ढेरों फोटो फेसबुक को समर्पित की हैं, उन पर ठीक तरह से लाइक और कमेंट तो आ जाने दो। यह मौका हाथ से निकल गया तो साहित्यकार बनने की अंतिम संभावना भी समय से पहले दम तोड़ देगी।’ हम आर्तनाद कर उठे। उन्होंने हमें गहरे संकट से उबारने की कोशिश जारी रखी। कहने लगे, ‘फिर ठीक है। अब तुम अपने अनब्लॉक होने की प्रतीक्षा करो। ऐसे लोग प्रतिक्रिया जानने के लिए ज्यादा देर तक इंतजार नहीं करते। किसी दूसरी पहचान से तुम्हारी गतिविधि अभी भी देख रहे होंगे। तुम्हें रणनीति बनानी होगी तभी तुम्हारी मित्रता फिर से ऐक्टिवेट हो सकती है। तुम मुझे अपना गुरु मानते हो, इसलिए इसका गुर तुम्हें बता रहा हूं। तुम उनकी किताब पर झटपट एक समीक्षा लिख दो। अब यह मत पूछना कि कौन-सी टाइप की। तुम इसमें कुशल हो और तुम्हारे इसी हुनर का मैं भी कायल हूं। इस समीक्षा को फेसबुक पर प्रसारित कर दो। फिर देखना जल्द ही तुम्हें संपूर्ण निर्वाण की प्राप्ति होगी। मरी हुई मित्रता संजीवनी पाकर चहक उठेगी।’ ऐसे परम शुभचिंतक मित्र से बात करने के बाद मैं काफी हल्का हो गया। फेसबुक की मेरी मित्रता सूची पहले से ही हल्की होकर पांच हजार से सीधे चार हजार नौ सौ निन्यानवे पर आ चुकी थी। लग रहा था जैसे एक ही कारोबारी सत्र में निफ्टी-सूचकांक एकदम से बैठ गया हो! उस मित्र के एक क्लिक ने मुझे शीर्ष पायदान से नीचे धकेल दिया था। मित्रता की सारी मेमोरी एक ही बटन से डिलीट हो गई थी। मैं स्मृति शून्य हो चुका था। यह काम घुप्प अंधेरे में हुआ था। इससे नैतिकता भी बेदाग बनी रहती है।
मैं अभी इस दुर्घटना से पूरी तरह उबरा भी नहीं था कि श्रीमती जी ने पूछताछ शुरू कर दी-‘ये सुबह से क्या ब्लॉक-ब्लॉक लगाए हो? हम तो अभी वॉशरूम से आए हैं। फ्लश भी सही ढंग से काम कर रहा है।’ मैंने निवेदन किया,‘दरअसल बात यह है कि मेरे एक मित्र ने मुझे फेसबुक पर ब्लॉक कर दिया है।’ इतना सुनते ही
श्रीमती जी मुझे धिक्कारने लगीं-तुमसे एक भी काम ठीक से नहीं सधता! एक मित्र को साधने में भी तुम सफल नहीं हो पाए। इस मुए ब्लॉक से हम पर दुखों का पहाड़ टूट सकता है। अगर यह बात खुल गई तो सामने दुकान वाला रग्घू भी उधारी देना बंद कर देगा। मुझे तो अभी यही चिंता खाए जा रही है।’
इस घोर संकट की ओर हमारा ध्यान ही नहीं गया था। एक ब्लॉक ऐसे दुर्दिन भी दिखा सकता है कि ऐसा कभी सपने में भी नहीं सोचा था। बहरहाल उनकी किताब की समीक्षा लिखने में मैं अपनी संभावना देखने लगा कि अब वही समीक्षा मेरे जीवन की हिचकोले खाती नैया का बेड़ा पार लगा सकती है।

[ हास्य-व्यंग्य ]