नई दिल्ली [कौशलेंद्र कुमार]। देशव्यापी तालाबंदी के कारण लगभग सभी स्कूल प्रबंधन ने छात्रों के लिए ऑनलाइन शिक्षा पद्धति को अपनाया। भारतीय शिक्षा प्रणाली में यह नया प्रयोग है। पिछले करीब चार महीने से यह चल रहा है और इसके परिणाम भी कुछ कुछ दिखने शुरू हो गए हैं। तकनीकी रूप से कुछ व्यवधान के बावजूद बच्चों के शिक्षण को सतत क्रियाशील रखने के लिए ऑनलाइन शिक्षण पद्धति कोरोना संकट के निराशा भरे माहौल में एक आशा की किरण है, एक राहत भरी खबर है।

परंतु जब ऑनलाइन शिक्षण पद्धति का प्रयोग करते हुए चार-पांच महीने का अनुभव हो चुका है, इसमें इसके कुछ स्याह पक्ष भी देखने को मिल रहे हैं या भविष्य में देखने को मिल सकते हैं। शिक्षण की इस नवीन पद्धति में सबसे बड़ा खतरा बच्चों का स्क्रीन टाइम बढ़ना है। अमेरिकन अकादमी ऑफ पीडियाटिक्स ने बच्चों के स्क्रीन टाइम  पर एक शोध रिपोर्ट प्रस्तुत की है जिसके अनुसार बच्चों का स्क्रीन टाइम सीमित रखें तथा खेलने या अन्य गतिविधियों के लिए पर्याप्त समय दें।

आजकल दिन का एक बड़ा समय वे स्मार्टफोन पर खर्च करते हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि कोरोना संकट में ऑनलाइन शिक्षा की इस नवीन पद्धति से बच्चों की आंखों पर दुष्प्रभाव तो अवश्य ही पड़ेगा। इससे बच्चों को कुछ शारीरिक और मानसिक परेशानियां हो सकती हैं। सिर दर्द, आंखों में दर्द, नींद का ठीक से नहीं आना, चिड़चिडापन, एकाग्रता में कमी, उदासीनता जैसी परेशानियां बच्चों में हो सकती है। ऐसा भी देखा जा रहा है कि शिक्षण संस्थान अपने पाठ्यक्रम को पूरा करवाने के दबाव में ऑनलाइन शिक्षण की अवधि को बढ़ा भी दे रहे हैं।

ऑनलाइन शिक्षण की अवधि को बढ़ाना बच्चों की शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए बिल्कुल भी उचित नहीं है। हालांकि बाल मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि चूंकि ऑनलाइन शिक्षा ही वर्तमान समय में शिक्षण का एकमात्र विकल्प है, इसलिए फिलहाल यह आवश्यक है। बच्चों के स्क्रीन टाइम को संतुलित रखने के लिए उन्हें कुछ रचनात्मक कार्यो में संलग्न कराने पर विचार करना चाहिए। स्कूलों को हर क्लास के बाद कम से कम 15-20 मिनट का अवकाश देना चाहिए। इससे दिमाग व आंखों पर निरंतर पड़ने वाला दबाव काफी हद तक कम होगा। भारत सरकार ने भी इस मामले की गंभीरता को संज्ञान में लेते हुए इस मामले में हस्तक्षेप किया है।

हाल ही में मानव संसाधन विकास मंत्रलय ने ऑनलाइन माध्यम से डिजिटल शिक्षा पर दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इसमें नर्सरी स्तर की कक्षाओं के लिए बच्चों के माता-पिता को उचित मार्गदर्शन दिया जाएगा ताकि वे खुद ही छोटे बच्चों को उनके स्तर की शिक्षा दे सकें। इस दिशा-निर्देश के अनुसार पहली से आठवीं कक्षा तक के बच्चों के लिए प्रत्येक दिन 45 -45 मिनट तक के दो ऑनलाइन सेशन और कक्षा नौ से बारह तक के लिए चार सेशन हैं। कई माध्यमिक बोर्डो ने पाठ्यक्रम को काफी हद तक कम भी कर दिया है, ताकि बच्चों को पाठ्यक्रम के कारण पड़ने वाले दबाव से बचाया जा सके।

जैसे-जैसे ऑनलाइन शिक्षा की गतिविधि आगे बढ़ती जाएगी, इसकी चुनौतियां भी सामने आती जाएंगी और फिर हम सभी इन चुनौतियों के समाधान भी तलाशते जाएंगे। लॉकडाउन के दिनों में अभिभावकों के लिए यह कार्य सरल था, परंतु अब सबकुछ खुल चुका है और अभिभावकों के लिए कई तरह की व्यावसायिक चुनौतियां बढ़े हुए रूपों में दस्तक दे रही होंगी। ऐसे में एक नए कार्य के लिए समय निकालना निश्चित ही मुश्किल होगा।

परंतु आज जब यह कटु सत्य विदित है कि कोरोना लंबे वक्त तक हमारे साथ रहने वाला है, तो ऑनलाइन शिक्षा को लेकर एक गंभीर विमर्श की जरूरत है। एक जैसी शिक्षा की सर्व-सुलभता, बच्चों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य की चिंता, निजता व शांति के साथ पढ़ाई जैसी चुनौतियों को समझ व इनका समाधान कर के ही ऑनलाइन शिक्षा का सवरेत्तम लाभ उठाया जा सकता है। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)