[प्रदीप सिंह]। हाथरस! इस नाम को पूरा देश ही नहीं, दुनिया जान चुकी है। वहां एक दुखद घटना हुई। एक निर्दोष बेटी को जान से हाथ धोना पड़ा। उसे किसने मारा? अब सीबीआइ इसकी जांच कर रही है। सुप्रीम कोर्ट से इलाहाबाद हाई कोर्ट तक की इस घटना और उसके बाद के घटनाक्रम पर नजर है। एक बेटी की मौत को एक दलित की मौत बना दिया गया। क्यों? क्योंकि किसी बेटी की मौत या उस पर अत्याचार तो आम खबर है। दलित की मौत एजेंडा चलाने का मौका देती है। हाथरस की घटना की मीडिया कवरेज और नेताओं के दौरे देख-पढ़कर लगा कि अचानक अपना समाज कितना संवेदनशील हो गया है, पर संवेदना के पैमाने बने हुए हैं। दलित की मौत सवर्ण के कारण हो तो संवेदनशील मामला है। दलित की मौत मुसलमान के हाथों हो जाए तो यह सामान्य कानून व्यवस्था का मामला है।

संवेदना इससे उपजती है कि पीड़ित और पीड़ा पहुंचाने वाले का धर्म और जाति क्या है। इंसान महत्वपूर्ण नहीं है, जाति और धर्म हैं। जाति और धर्म कुछ लोगों की नजर में अविनाशी हैं। हाथरस में जो हुआ उसे आप किसी एक घटना पर मीडिया चैनलों की टीआरपी की होड़ और राजनीतिक दलों की मौके पर चौका मारने की कोशिश के रूप में देखेंगे तो सतह के नीचे नहीं पहुंच पाएंगे।

पुलिस, सरकार, अस्पताल और डॉक्टरों पर उठाए गए सवाल

हाथरस की घटना में युवती पर जानलेवा हमला और फिर मौत गौण विषय थे। वह किसी भी जाति और धर्म की हो सकती थी। वह दलित थी, इसलिए खबर यह बनी कि दलित युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ। किसने किया? जवाब आया कि ठाकुरों के लड़कों ने किया। अलीगढ़ के अस्पताल की जांच और फिर दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में उसका इलाज और मौत के बाद पोस्टमार्टम हुआ। उनकी रिपोर्ट एजेंडा चलाने वालों के माफिक नहीं थी, सो पुलिस, सरकार, अस्पताल और डॉक्टरों पर सवाल उठाए गए। जो सुशांत सिंह राजपूत के मामले में फोरेंसिक एक्सपर्ट बनने से चूक गए थे, उन्हें इस मामले में मौका नजर आया और उन्होंने लपक लिया।

एजेंडा वीर इच्छाधारी नागिन की तरह हुए प्रकट

चूंकि मामले की जांच सीबीआइ कर रही है इसलिए मैं अपनी विशेषज्ञता को दबा लेता हूं, पर यह एक सवाल तो है कि क्या कोई ऐसा भाई है, जिसकी बहन के साथ सामूहिक दुष्कर्म जैसा जघन्य कृत्य हुआ हो और वह पुलिस में तहरीर देने जाए तो इसका उल्लेख न करे? इस तहरीर के मुताबिक युवती की गला दबाकर हत्या का प्रयास हुआ। घटना 14 सितंबर को हुई। 16 सितंबर को कहा गया कि छेड़खानी की कोशिश हुई। उसके बाद एजेंडा वीर इच्छाधारी नागिन की तरह प्रकट हो गए और हत्या की कोशिश के केस ने सामूहिक दुष्कर्म का रूप धारण कर लिया। चूंकि जांच जारी है और हाई कोर्ट ने इस बारे में अनुमान न लगाने की सलाह दी है, इसलिए कुछ न बोलना ही ठीक है।

भाजपा सरकार के चलते मुद्दा गरमाया

क्या कभी आपने सोचा है कि दलित अत्याचार, महिला उत्पीड़न, दुष्कर्म और हत्या के मामलों में आरोपी के हिंदू होने के किसी मामले की पूरे देश में चर्चा होती है और बाकी मामलों का जिक्र भी नहीं होता। इसके दो कारण हैं। एक का जिक्र मैंने ऊपर किया। दूसरा कारण है कि किस प्रदेश में घटना हुई और वहां सरकार किसकी है? यदि हाथरस केरल, पंजाब या महाराष्ट्र में होता तो यह अपराध की एक सामान्य घटना की तरह गुजर जाता, पर हाथरस उत्तर प्रदेश में है, जहां भाजपा की सरकार है और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री हैं। एक तो भाजपाई और उस पर से भगवा वस्त्रधारी।

योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में संगठित अपराध की तोड़ दी है कमर 

उत्तर प्रदेश पिछले तीन दशकों से माफिया राज की गिरफ्त में था। सरकार से ज्यादा माफिया का सिक्का चलता था। सरकार में बैठे लोग हाथ डालने से डरते थे। इसलिए मिलकर काम करने लगे। योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में संगठित अपराध की कमर तोड़ दी है। माफिया के लोग एनकाउंटर में मारे जा रहे हैं या गिरफ्तार हो रहे हैं। नतीजतन देश के इतिहास में पहली बार हुआ कि गुंडे जमानत रद कराकर जेल जाने लगे। योगी यहीं तक नहीं रुके। माफिया की दो बड़ी ताकत होती है। एक, सरकारी/राजनीतिक संरक्षण और दूसरा आर्थिक साम्राज्य। सरकारी संरक्षण तो उनके मुख्यमंत्री बनते ही बंद हो गया। उन्होंने उनकी आर्थिक कमर भी तोड़ दी। शोहदों से परेशान लड़कियां फिर से निश्चिंत होकर स्कूल-कॉलेज जाने लगीं, लेकिन उनके इन कामों से बहुत से लोगों को परेशानी है। नागरिकता संशोधन कानून पर दंगाइयों से निपटने के उनके तरीके के प्रति भी गुस्सा अभी शांत नहीं हुआ है।

एजेंडा चलाने वालों को हिंदू धर्म को जातियों में है बांटना

उत्तर प्रदेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चुनाव क्षेत्र है। गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य में पार्टी को पुनर्जीवित किया है। योगी आदित्यनाथ के खिलाफ भ्रष्टाचार, भाई- भतीजावाद और अपराधियों को संरक्षण देने जैसा कोई आरोप लग नहीं सकता। तो बार-बार उनकी जाति का सवाल उठाया जाता है। यह जानते हुए भी किसी संन्यासी की संन्यास से पूर्व की पहचान की बात करना हिंदू धर्म में अनैतिक माना जाता है। दरअसल एजेंडा चलाने वालों को हिंदू धर्म को जातियों में बांटना है। इसलिए बार-बार दलित समाज को हिंदू धर्म से अलग करके दिखाने की कोशिश होती है।

पिछले छह सालों में हिंदू विरोधी राजनीति का विकल्प खत्म किया मोदी ने

प्रधानमंत्री के सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास के नारे और काम से भाजपा इस जातीय विभाजन को रोकने में लगातार कामयाब हो रही है। यह एजेंडा चलाने वालों को पता है कि राजनीति में धर्म विरोधी नहीं हो सकता। मोदी ने पिछले छह साल में हिंदू विरोधी राजनीति का विकल्प खत्म कर दिया है। इसलिए एजेंडा है कि हिंदू धर्म में जातियों की जो फॉल्टलाइन है, उसे बढ़ाते रहो। भीमा कोरेगांव से हाथरस तक एजेंडा एक ही है। दुर्भाग्य यह है कि इस एजेंडे के खतरे को समझे बिना कांग्रेस ने इसे अपना लिया है या फिर वह शरीके जुर्म है।

मैं संदेह का लाभ कांग्रेस को देने के लिए तैयार हूं, पर उसके व्यवहार से ऐसा लगता नहीं कि वह इस लाभ की अधिकारी है। पिछले एक महीने से आप हाथरस में पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने वालों का जो हुजूम और अभियान देख रहे हैं, वह न्याय के नाम पर पाखंड है। न्याय दिलाने की न तो किसी की मंशा है और न इच्छा, क्योंकि जो न्याय दिलाना चाहते हैं, वे सबसे पहले सत्य और तथ्य का साथ लेते हैं। फर्जी तथ्यों और झूठ से विमर्श नहीं खड़ा करते, पर सच की एक बुरी आदत है, वह हर परिस्थिति में अपना रास्ता बना ही लेता है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं स्तंभकार हैं)

[लेखक के निजी विचार हैं]