नई दिल्ली [अनंत विजय]। फिल्म ‘गुंजन सक्सेना, द कारगिल गर्ल’ की प्रशंसा हो रही है। ये फिल्म भारतीय वायुसेना की पहली महिला हेलीकॉप्टर पॉयलट गुंजन सक्सेना के जीवन पर आधारित है। फिल्म में सितारों के अभिनय आदि पर बात हो ही रही थी कि भारतीय वायुसेना ने इस फिल्म के कई दृष्यों और संवादों को लेकर आपत्ति जता दी।

वायुसेना ने अपनी आपत्तियों को लेकर केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड को एक पत्र भी लिखा जिसमें साफ तौर पर फिल्म में वायुसेना की नकारात्मक छवि पेश करने के आरोप का उल्लेख किया गया है। इस पत्र को नेटफ्लिक्स और धर्मा प्रोडक्शन को भी भेजा गया है।

धर्मा ने इस फिल्म को बनाया है और नेटफ्लिक्स पर प्रदर्शित की गई। इस फिल्म में गुंजन सक्सेना जब उधमपुर एयरबेस पर पहुंचती हैं तो उनको कदम दर कदम इस बात का एहसास होता या कराया जाता है कि वो महिला हैं, कई बार प्रत्यक्ष तो कई बार परोक्ष रूप से। उधमपुर एयरबेस में गुंजन सक्सेना के रहने के दौरान की घटनाओं और स्थितियों के फिल्म में चित्रण पर वायुसेना को आपत्ति होगी।

राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी इस विवाद पर टिप्पणी की। इसके पहले भी सेना और सैनिकों के चित्रण को लेकर विवाद खड़ा हुआ है। मुकदमे भी हुए। इन विवादों को देखते हुए 27 जुलाई 2020 को रक्षा मंत्रालय ने केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड को एक पत्र लिखा। इस पत्र में रक्षा मंत्रालय ने बोर्ड को लिखा है कि उनकी जानकारी में ऐसी बातें आई हैं कि कुछ फिल्मों और वेब सीरीज में सेना की नकारात्मक छवि दिखाई पेश की जा रही है।

इसलिए रक्षा मंत्रालय को ये अपेक्षा है कि फिल्मों और वेब सीरीज के निर्माताओं को सलाह दें कि वो अपनी फिल्मों या वेब सीरीज में सेना के बारे में दिखाने के पहले रक्षा मंत्रालय से अनापत्ति प्रमाण पत्र लें। उनको ये सलाह देने की अपेक्षा भी की गई कि सेना की नकारात्मक छवि दिखाने से बचें। सेना ने केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड को पत्र लिखकर अपनी अपेक्षाएं साझा कर लीं लेकिन रक्षा मंत्रालय से एक चूक हो गई।

रक्षा मंत्रालय से सक्षम अधिकारियों को ये पता होना चाहिए था कि वेब सीरीज या ओवर द टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म पर दिखाए जाने वाली फिल्में या अन्य सामग्रियां केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के दायरे में नहीं आती हैं। इस पत्र का कोई अर्थ है भी नहीं। 27 जुलाई को रक्षा मंत्रालय ने केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड को पत्र लिखा और 12 अगस्त को गुंजन सक्सेना को नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई जिसके कुछ दृश्यों पर भारतीय वायुसेना को आपत्ति है।

इस फिल्म पर भारतीय वायुसेना की आपत्तियों के विश्लेषण से दो बातें सामने आती हैं, पहली तो ये कि केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड ने रक्षा मंत्रालय की अपेक्षा के अनुसार सभी फिल्म और वेब सीरीज प्रोड्यूसर्स को सलाह नहीं दी कि वो सेना या वायुसेना या नौसेना के बारे में किसी भी तरह के कटेंट को सार्वजनिक करने से पहले अनापत्ति प्रमाण पत्र लें। दूसरी बात ये हो सकती है कि केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड ने सलाह दी हो लेकिन निर्माताओं को ये आवश्यक नहीं लगा हो क्योंकि ऐसा कोई कानून तो है नहीं।

ओटीटी पर दिखाई जानेवाली फिल्मों के निर्माता-निर्देशकों को इस बात के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है कि वो भारतीय सेना के बारे में कुछ भी दिखाने के पहले सक्षम अधिकारियों से अनापत्ति प्रमाण पत्र लें। कोविड की वजह से सिनेमाघर बंद हैं और तमाम फिल्मों का प्रदर्शन ओटीटी प्लेटफॉर्म पर हो रहा है। ऐसे में तो इन फिल्मों के लिए भी किसी प्रकार की प्रमाणन की कोई आवश्यकता रही नहीं।

फिल्म प्रमाणन बोर्ड तो उन फिल्मों को प्रमाणित करता है जिनका सामूहिक प्रदर्शन होना होता है चाहे वो सिनेमाघरों में हो या फिर किसी फिल्म फेस्टिवल में। फिल्मों का अगर सार्वजनिक और सामूहिक प्रदर्शन होना होता है तो रक्षा मंत्रालय या भारतीय सेना को उसके रिलीज से पहले देखने का अधिकार है।

रक्षा मंत्रालय को अगर कोई शिकायत हो तो उसको इलेक्ट्रानिक और प्रोद्योगिकी मंत्रालय को लिखना चाहिए था।

इस पूरे प्रकरण से एक बार फिर से स्पष्ट होता है कि ओटीटी पर चलनेवाले कंटेंट को लेकर नियमन की आवश्यकता है। कोरोना काल में ओटी प्लेटफॉर्म मनोरंजन का एक अनिवार्य अंग हो गया है। सिनेमा हॉल के खुलने की अनिश्चितता के बीच इस माध्यम की अनिवार्यता स्थायित्व लेती नजर आ रही है। सभी बड़े बजट की फिल्में यहां रिलीज हो रही हैं। इस उपक्रम का आकार भी दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। इस स्तंभ में पहले भी कई बार संकेत दिया जा चुका है कि मुनाफे के लिए ओटीटी प्लेटफॉर्म पर दिखाए जानेवाले कंटेंट में मर्यादा की सारी सीमाएं तोड़ी जा रही हैं।

अश्लीलता और मनोरंजन का भेद मिट सा गया है। अभी हाल ही में आए आंकड़ों ने इस बात की पुष्टि भी की है। एक वेब सीरीज है जिसका नाम है मस्तराम। एक एजेंसी के आंकड़ों के मुताबिक इस वेब सीरीज को तीन जुलाई को एक दिन में एक करोड़ दस लाख से अधिक दर्शकों ने देखा। इसके मुताबिक इसको उस दिन तक छत्तीस करोड़ से अधिक लोग देख चुके हैं।

ये वेब सीरीज तमिल, तेलुगू और हिंदी में उपलब्ध है और ये संख्या इन तीन भाषाओं के दर्शकों को मिलाकर है। निर्माता इस वेब सीरीज को भले ही वयस्क की श्रेणी में डालकर पेश कर रहे हों लेकिन ये है तो अश्लील ही। मस्तराम के नाम से कुछ वर्षों पूर्व पीली पन्नी में लपेटकर इरोटिक पुस्तकें बेची जाती थीं लेकिन अब ये खेल खुलकर चल रहा है। कहीं न कहीं दर्शक संख्या मुनाफे से जुड़ता है।

एक और आंकड़े पर गौर करना चाहिए। मैंने एक दिन नेटफ्लिक्स के कस्टमर केयर पर फोन किया तो बातों बातों में कस्टमर केयर एक्जीक्यूटिव ने बताया कि कोरोना काल में पिछले तीन महीनों में नेटफ्लिक्स के डेढ करोड़ एप डाउनलोड हुए हैं। ये इतनी बड़ी संख्या है,जिसकी कल्पना नेटफ्लिक्स के कैलिफोर्निया में बैठे कर्ताधर्ताओं ने सपने में भी नहीं की होगी।

इस संख्या में उनको व्यापक संभावना नजर आ रही है, बहुत बड़ा बाजार नजर आ रहा है और इसके साथ ही मुनाफे का एक ऐसा फॉर्मूला भी उनके हाथ लग गया है जिसमें जोखिम कम है। अगर हम सिर्फ इस डेढ़ करोड़ की संख्या को ही लें और उसको सबसे कम यानि 199 रु प्रतिमाह की सदस्यता शुल्क के आधार पर गणना करें तो करीब तीन अरब रुपए प्रतिमाह का कारोबार होता दिखता है।

ये तो सिर्फ इन तीन महीनों में बने नए ग्राहकों के न्यूनतम सदस्यता शुल्क के आधार पर कारोबार का टर्न ओवर है। अगर इसमें पुराने ग्राहकों की संख्या भी जोड़ लें तो सालभर में अरबों का टर्नओवर हो जाता है। अगर कारोबार इतना बड़ा है तो मुनाफा की कल्पना भी की ही जा सकती है। ये तो सिर्फ एक प्लेटफॉर्म का आंकड़ा है। अगर सभी को जोड़ दिया जाएगा तो इसका कारोबार हिंदी फिल्मों के सालाना कारोबार से कहीं अधिक होगा।

देश में सभी व्यवसाय को नियंत्रित करने के लिए अलग अलग तरह के नियमन हैं लेकिन ये एक ऐसा कारोबार है जहां मुनाफा कमाने के लिए कुछ भी करने की छूट अबतक प्राप्त है चाहे वो सामाजिक तानेबाने को तोड़ने वाले संवाद हों, सांप्रदायिकता को बढ़ाने वाले बोल हों या फिर भारतीय सेना की नकारात्मक छवि पेश करने वाले दृश्य हों। जबकि भारतीय सेना को भी इस अराजकता ने अपनी जद में ले लिया है तब तो अपेक्षा करनी चाहिए कि इसके नियमन को लेकर प्रक्रिया आगे बढ़ेगी।