मनीषा सिंह। महिलाओं को सेना में अब लड़ाकू की भूमिका भी दी जानी चाहिए। कहा जाता रहा है कि कुछ ऐसी बाधाएं हैं, जिनके रहते सेना में महिलाओं को लड़ाकू भूमिका नहीं दी जा सकती है, लेकिन यहां कुछ सवाल उठते हैं। क्या सेना में पुरुष जवानों का काम आसान होता है। उन्हें बेहद कम संसाधनों वाले इलाकों

में तैनात किया जाता है, हर परिस्थिति का सामना करना पड़ता है और इसका अहसास उन्हें सेना में भर्ती होने से पूर्व ही होता है।

महिलाएं ऐसे दुर्गम इलाकों में तैनाती नहीं चाहेंगी : गर्मी में तपते रेगिस्तान से लेकर हड्डियां जमा देने वाले सियाचिन जैसे इलाकों में तैनात होने वाले ये पुरुष जवान अपने किसी कर्तव्य से पीछे नहीं हटते हैं। ऐसे में यह भला क्यों मान लिया जाता है कि महिलाएं ऐसे दुर्गम इलाकों में तैनाती नहीं चाहेंगी, वे हमेशा पीस- पोस्टिंग की ही मांग करेंगी। यह असल में एक किस्म का मानसिक भेदभाव है जिसमें महिलाओं को कोई चुनौती देने और उसमें अपना पराक्रम साबित करने से पहले ही पुरुषों के मुकाबले कमजोर और कमतर ठहराने की कोशिश की जाती है और फिर उनके बारे में एक अलग राय बना ली जाती है।

ऐसी ही धारणाओं पर फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह सवाल उठाया है कि आखिर मौका देने से पहले से महिलाओं को किसी चुनौती की कसौटी पर खरा उतरने का विकल्प क्यों छीना जा रहा है? गौरतलब है कि महिलाएं अभी सेना में हैं, पर लड़ाकू भूमिका में नहीं। हालांकि यह सच है कि हर साल सशस्त्र सुरक्षाबलों की तीनों शाखाओं में करीब 3300 महिलाओं की भर्ती होती है, लेकिन वे चिकित्सा, लीगल, शिक्षा, सिग्नल और इंजीनियरिंग शाखाओं में काम करती हैं, सीधे दुश्मन से नहीं भिड़ती हैं।

उल्लेखनीय है कि लड़ाकू जवान के रूप में एक सैनिक की भूमिका छावनी क्षेत्र और सैन्य प्रतिष्ठानों में पुलिसिंग की होती है। सैनिकों को नियम कायदों को तोड़ने से रोकना, सैन्य मूवमेंट, युद्ध बंदियों को संभालना और जरूरत पड़ने पर सिविल पुलिस की मदद का काम भी सेना के जवानों को करना होता है। हालांकि इससे इतर भूमिकाएं महिलाओं को हमारे देश में दी जा चुकी हैं। जैसे वर्ष 2016 में इंडियन एयरफोर्स ने तीन महिलाओं को फाइटर पायलट के रूप में शामिल किया था।

ये तीन महिलाएं- अवनी चतुर्वेदी, भावना कांत और मोहना सिंह फाइटर पायलट के रूप में काम कर रही हैं। इसके अलावा बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (बीएसएफ) में भी महिला अफसरों की नियुक्ति की पहलकदमी की जा चुकी है। अभी भी महिलाओं को सीआरपीएफ और सीआइएसएफ में अफसर की वर्दी पहनने का मौका मिलता है, लेकिन वहां भी वे मोर्चे पर दुश्मन फौज का सीधा मुकाबला नहीं करतीं, क्योंकि इन दोनों सुरक्षा बलों की जिम्मेदारी आंतरिक सुरक्षा की होती है।

जहां तक लड़ाकू सैनिक के रोल की बात है तो फिलहाल जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन, डेनमार्क, फिनलैंड, फ्रांस, नॉर्वे, स्वीडन और इजरायल में ही महिलाएं इस भूमिका में काम कर रही हैं। अब समय आ गया है जब भारत भी अपने महिला सैनिकों को लड़ाकू भूमिका दे।

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं)