[ डॉ. प्रदीप उपाध्याय ]: समाचार पत्रों में जब यह खबर पढ़ी कि वे पावर में आए तो सब ठीक कर देंगे तो मुझसे रहा नहीं गया। मैं तत्काल दद्दा जी के घर अलसुबह ही पहुंच गया। दद्दा जी खुद भी खटिया पर जमे हुए थे और अखबार पर अपनी नजरे गड़ाए हुए थे। वह भी वही खबर पढ़ रहे थे जिसे पढ़कर मैैं उनके पासा भागा-भागा आया था। वह सब समझ गए, फिर भी बोले, ‘क्यों भाई, आज सुबह-सवेरे?’

मैंने बिना भूमिका बनाए ही पूछ लिया, ‘दद्दा जी क्या पावर में आकर ही सब कुछ ठीक-ठाक किया जा सकता है! उसके बिना नहीं।’

उन्होंने मंतव्य समझ लिया था, इसीलिए तुरंत बोले, ‘अरे भाई, पावर हो तो अच्छे-अच्छों को ठीक किया जा सकता है। मजाल है कि कोई चूं भी बोल जाए!’

‘लेकिन दद्दा अभी जो पावर मे हैं, वे भी तो यह कह रहे हैैं कि उन्हें हटाने की सोच रखने वालों को ही ठीक कर देंगे।’

‘हां भाई, अब जब उन्होंने कहा है तो यह भी ठीक ही होगा। अभी तक वे सबको ठीक करते आए हैं और यदि फिर से पावर में आ गए तो इस तरह की सोच को ही ठीक कर देंगे। वे जो भी चाहें कर सकते हैं।’ दद्दा जी ने कहा। ‘लेकिन दद्दा, बहुतेरे लोग हैं जो कहते हैं कि हमने तो अच्छे-अच्छों को ठीक कर दिया है तो तुम्हारी क्या बिसात है! उनके कहने का क्या मतलब?’

‘देखो यह पुलिसिया भाषा है। इसका प्रयोग जो भी पावर में आता है या आने की उम्मीद रखता है, खुलकर करने लगता है। हमें परेशान नहीं होना चाहिए, क्योंकि वे जब एक-दूसरे को ठीक करने की बात करते हैं तो हमें इसे ठीक-ठीक समझना होगा, क्योंकि कई बार इधर के लोग उधर चले जाते हैैं और कई बार उधर के इधर। आमजन तो चुनाव के बाद अपने आप ही ठीक हो जाता है। जितना भाव उसे खाना होता है, चुनाव के पहले ही खा सकता है।’ दद्दा जी ने मेरे ज्ञान चक्षु खोले।

‘लेकिन दद्दा ,यह समझ नहीं आया कि जब हम किसी से पूछते हैं कि और भाई, कैसा चल रहा है तो वह यही कहता है कि सब कुछ ठीक चल रहा है, किंतु जब उसकी दुखती रग पर हाथ रखकर पूछते हैं तो वह कह उठता है कि अरे यार, कहां सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है। सभी जगह तो गड़बड़ है। यहां तो कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है।’ मैंने अपनी शंका का समाधान कराना चाहा।

‘तुम ठीक कह रहे हो। वे क्या सब कुछ ठीक करना चाह रहे हैं या फिर सब कुछ ठीक कर देने की सोच को ही ठीक कर देने के पीछे उनकी क्या सोच है, यह वे ही जानें, क्योंकि अभी तक तो यह सब धमकियों में ही चलता था कि मैं तुम्हें ठीक कर दूंगा, लेकिन किसी एक को ठीक करना हो तब तो बात समझ में आती है, किंतु यहां तो सारा बाड़ा ही बिगड़ा हुआ है या फिर यह कहें कि हर तरफ गड़बड़झाला है। ऐसी स्थिति में ही शायद यह कह दिया गया हो कि सब कुछ ठीक-ठाक कर देंगे।’ दद्दा जी ने पलटी मारते हुए कहा।

‘लेकिन दद्दा, यह भी सोचने वाली बात है कि आज तक कहां सब कुछ ठीक-ठाक हुआ जो ये लोग ठीक कर देंगे! वैसे भी यदि किसी एक व्यक्ति के लिए कोई बात सही है तो वह कह सकता है कि हां, सब कुछ ठीक-ठाक है। यही बात किसी दूसरे को रास नहीं आती तो वह यही कहेगा कि कहां सब कुछ ठीक चल रहा है।’ मैंने फिर सशंकित होते हुए कहा।

‘तुमने सही कहा। लोग भाग्य को कोसते हुए हमेशा ही दुखी देखे गए हैं और कहते फिरते हैं कि हमारा तो भाग्य ही फूटा है। जीवन भर कुछ भी ठीक नहीं चला, न कल ठीक-ठाक था और न आज ठीक-ठाक है और फिर कल का भी क्या भरोसा! यह तो भाग्य का खेला है कि किसी की पांचों अंगुलियां घी में रहती हैं और किसी को सूखी रोटी भी नहीं मिलती। देखो, बिल्ली के भाग्य से छींका टूटता है वरना तो माल छींके में ही धरा रह जाता है और बिल्ली उस तक पहुंच ही नहीं पाती। अब जब चुनावी जंग लड़ी जा रही है तो देखना यही है कि जो पावर में हैं वे पुन: पावर में बने रहकर सब कुछ ठीक-ठाक कर देने की सोच रखने वालों पर ही ठीकरा फोड़ देंगे या फिर दूसरा पक्ष पावर में आकर सब कुछ ठीक-ठाक कर देने के अपने दावे पर कायम रहकर कुछ कर दिखाने का माद्दा दिखाएगा? यह सब समय ही बताएगा। समय से ज्यादा किसमें दम है जो दावे-प्रतिदावे को सिद्ध कर पाए।’

‘बिल्कुल सही दद्दा’, मैंने कहा। दद्दा जी अब पूरी लय में अपनी बात कहे जा रहे थे और इधर मुझे देर हो रही थी। वह बोलते रहे और मैं यह सोचकर खिसक आया कि जो कुछ होगा, सब ठीक ही होगा।

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार हैं ]