[ रोहित कौशिक ]: चीन के वुहान शहर से फैले कोरोना वायरस के कारण पूरी दुनिया सहमी हुई है। इस वायरस के संक्रमण का दायरा लगातार फैल रहा है। कोरोना से उपजी बीमारी कोविड-19 पर काबू पाने के प्रयासों का अभी बहुत ज्यादा असर दिखाई नहीं दे रहा है। अभी तक इसके उपचार के लिए किसी टीके का निर्माण भी नहीं हो सका है। इसके लिए कोशिशें शुरू हो गई हैं, लेकिन टीका बनने में समय लगेगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना के संक्रमण की तीव्रता को देखते हुए कोविड-19 को वैश्विक महामारी घोषित कर दिया है। भारत ने भी कमर कस ली है, लेकिन यह स्पष्ट है कि चुनौती बहुत बड़ी और गंभीर है।

देश की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के बावजूद गांव के अंतिम आदमी को राहत नहीं मिल सकी

यह सही है कि हमारे देश की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हो रहा है, लेकिन यह सुधार अभी तक वह उद्देश्य प्राप्त नहीं कर पाया है जिसमें गांव के अंतिम आदमी को भी राहत मिल सके। पिछले दिनों अमेरिका के ‘सेंटर फॉर डिजीज डाइनामिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी’ द्वारा जारी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत में लगभग छह लाख डॉक्टरों और 20 लाख नर्सों की कमी है।

भारत में 10,189 लोगों पर एक सरकारी डॉक्टर है, जबकि 1000 लोगों पर एक डॉक्टर की जरूरत है

भारत में 10,189 लोगों पर एक सरकारी डॉक्टर है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक हजार लोगों पर एक डॉक्टर की सिफारिश की है। इसी तरह हमारे देश मे 483 लोगों पर एक नर्स है। भारत में एंटीबायोटिक दवाइयां देने वाले प्रशिक्षित स्टाफ की कमी है। जब गंभीर रोगों से पीड़ित मरीजों के लिए अस्पतालों में स्ट्रेचर जैसी मूलभूत सुविधाएं न मिल पाएं तो देश की स्वास्थ्य सेवाओं पर सवाल उठना लाजमी है।

यदि देश में कोरोना संक्रमण बेलगाम होता है तो गंभीर परिणाम हो सकते हैं

हाल में ऐसी अनेक खबरें आई हैं कि अस्पताल गरीब मरीज के शव को घर पहुंचाने के लिए एंबुलेंस तक उपलब्ध नहीं करा पाए। ऐसी स्थिति में यदि देश में कोरोना संक्रमण बेलगाम होता है तो गंभीर परिणाम हो सकते हैं। अपने यहां एक तरफ संक्रामक रोगों को रोकने की कोई कारगर नीति नहीं बन पाई है तो दूसरी तरफ असंक्रामक रोग भी तेजी से जनता को अपनी चपेट में ले रहे हैं।

 बढ़ता शहरीकरण असंक्रामक रोगों के बढ़ने का मुख्य कारण

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर जैसी बीमारियां भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेंगी। बढ़ता शहरीकरण और शहरों में काम और जीवनशैली की स्थितियां असंक्रामक रोगों के बढ़ने का मुख्य कारण हैं। चूंकि शहरों में आबादी तेजी से बढ़ रही है इसलिए अनियोजित विकास भी हो रहा है। यह विकास समस्याओं को और बढ़ाएगा ही। हमारे देश में व्यवस्था की नाकामी और विभिन्न वातावरणीय कारकों के कारण बीमारियों का प्रकोप ज्यादा होता है।

भारत में डॉक्टरों की कमी के कारण स्वास्थ्य सुविधाएं मिलने में देरी होती है

भारत में डॉक्टरों की उपलब्धता की स्थिति वियतनाम और अल्जीरिया जैसे देशों से भी खराब है। डॉक्टरों की कमी के कारण गरीबों को स्वास्थ्य सुविधाएं मिलने में देरी होती है। यह स्थिति पूरे देश के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। हमारे देश में आम लोगों को समय पर स्वास्थ्य सुविधाएं न मिलने के अनेक कारण हैं। स्वास्थ्य सेवाओं के मुद्दे पर भारत अनेक चुनौतियों से जूझ रहा है। हालात ये हैं कि जनसंख्या वृद्धि के कारण बीमार लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। गरीबी और गंदगी के कारण विभिन्न संक्रामक रोगों से पीड़ित लोग इलाज के लिए परेशान होते हैं। चीन, ब्राजील और श्रीलंका जैसे देश भी स्वास्थ्य के क्षेत्र में हमसे ज्यादा खर्च करते हैं।

हमारे देश में स्वास्थ्य पर होने वाला खर्च अन्य देशों की तुलना में काफी कम है

पिछले दो दशकों में भारत की आर्थिक वृद्धि दर चीन के बाद शायद सबसे अधिक रही है। शायद इसी कारण पिछले दिनों योजना आयोग की एक विशेषज्ञ समिति ने यह सिफारिश की थी कि सार्वजनिक चिकित्सा सेवाओं के लिए आवंटन बढ़ाया जाए। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे देश में स्वास्थ्य पर होने वाला खर्च अन्य देशों की तुलना में काफी कम है। इसी कारण सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति उम्मीदों के अनुरूप नहीं।

स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली का खामियाजा बच्चों, महिलाओं और बूढ़े लोगों को उठाना पड़ता है

स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली का खामियाजा ज्यादातर बच्चों, महिलाओं और बूढ़े लोगों को उठाना पड़ता है। यही कारण है कि देश के अनेक राज्यों में जहां एक ओर बच्चे विभिन्न गंभीर बीमारियों के कारण काल के गाल में समा जाते हैं वहीं दूसरी ओर महिलाओं को बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं आसानी से उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं। इस मामले में वृद्धों का हाल तो और भी दयनीय है। अनेक परिवारों में वृद्धों को मानसिक संबल नहीं मिल पाता है। साथ ही उनकी रोगप्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है। ऐसी स्थिति में उन्हें जरूरी स्वास्थ्य सेवाएं भी मुहैया न हों तो उनका जीवन नरक बन जाता है।

भारत में स्वास्थ्य योजनाएं भी लूट-खसोट की शिकार

भारत में दूसरी सरकारी योजनाओं की तरह स्वास्थ्य योजनाएं भी लूट-खसोट की शिकार हैं। दूसरी ओर निजी अस्पतालों का उचित तरीके से नियमन नहीं हो पा रहा है। पिछले दिनों भारतीय चिकित्सा परिषद ने डॉक्टरों द्वारा दवा कंपनियों से लेने वाली विभिन्न सुविधाओं को देखते हुए एक आचार संहिता के तहत डॉक्टरों को दी जाने वाली सजा की रूपरेखा तय की थी। स्पष्ट है कि बाजार की शक्तियां अपने हित के लिए मानवीय हितों की आड़ में मानवीय मूल्यों को तरजीह नहीं दे रही हैं।

1940 के बाद से संक्रामक रोगों से प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या बढ़ी

यह ध्यान रहे कि 1940 के बाद से संक्रामक रोगों से प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है। ‘नेचर’ पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार संक्रामक रोगों के बढ़ने की बड़ी वजह मानवशास्त्रीय और जनसांख्यिकीय बदलाव हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि इंसान को हो रही संक्रामक बीमारियों में से कम से कम दो तिहाई जानवरों से आई हैं। कोरोना वायरस भी पशु-पक्षियों की उपज है।

स्वास्थ्य सेवाओं का चुस्त-दुरुस्त होना सामाजिक दृष्टि से जरूरी है

मौजूदा माहौल में स्वास्थ्य सेवाओं का चुस्त-दुरुस्त होना न केवल स्वास्थ्य की दृष्टि से, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी जरूरी है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अभी तक ऐसा नहीं हो पाया है। देश के आर्थिक एवं सामाजिक विकास हेतु बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं को पटरी पर लाने के लिए एक गंभीर पहल की जरूरत है। इस समय कोरोना वायरस से डरने की नहीं, सजग रहने की जरूरत है, ताकि कोविड-19 महामारी का सफलतापूर्वक सामना किया जा सके।

( लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं )