अवधेश कुमार। यह बात सही है कि आर्थिक सुस्ती के कारण देश भर में आर्थिक गतिविधियों में कमी आई है, विकास दर लगातार छह तिमाही में गिरता रहा है, कर संग्रह उम्मीद से कम है, विनिवेश भी लक्ष्य से काफी दूर है और खुदरा महंगाई दर पांच वर्षो में सबसे ऊपर चला गया है। वर्ष 2019-20 के बजट में 24.59 लाख करोड़ रुपये के कर संग्रह का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन नवंबर तक केवल 20.8 लाख करोड़ हो पाया है। दिसंबर महीने में खुदरा महंगाई दर साढ़े पांच वर्ष के उच्चतम स्तर 7.35 फीसद पर पहुंच गई है। अगर अर्थव्यवस्था को गति देना है तो बाजार में मांग बढ़ाना जरूरी है। मांग बढ़ने से ही उत्पादों की बिक्री होती है, फिर उत्पादन होता है जिसमें रोजगार भी मिलता है, निर्यात होता है तथा बैंकों का कर्ज और वापसी का चक्र चलता है।

निर्मला की समस्‍या 

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की समस्या यह थी कि यदि उन्होंने उपभोक्ता मांग बढ़ाने के लिए बोल्ड कदम उठाए तो राजकोषीय घाटा और बढ़ जाएगा। कर संग्रह इतना है नहीं कि सार्वजनिक खर्च में बढ़ोतरी हो। इसके लिए करों में वृद्धि होगी तो महंगाई बढ़ेगी। इनमें संतुलन बनाने की चुनौती थी।

उठते कई प्रश्‍‍‍न 

इन परिप्रेक्ष्यों में यदि आप बजट को देखें तो कई प्रश्न पैदा होंगे, पर निराश होने का कारण नहीं दिखेगा। ना इसे शानदार बजट कहा जा सकता है, ना उम्मीदों को नकारने वाला। वित्त मंत्री ने कठिन परिस्थितियों में चुनौतियों का सामने करने का साहस जरूर दिखाया है, कई स्तरों पर जोखिम मोल लिया है। वर्ष 2020-21 में विकास दर को 6 से 6.5 प्रतिशत तक रखने का लक्ष्य व्यावहारिक कहा जा सकता है।

पांच टिलियन डॉलर की अर्थव्यवसथा का लक्ष्य

सर्वेक्षण में देश को पांच टिलियन डॉलर की अर्थव्यवसथा का लक्ष्य बनाने के प्रति प्रतिबद्धता थी तो बजट में इस दिशा में कदमों की घोषणा है। हालांकि इस समय हमारी अर्थव्यवस्था 2.9 टिलियन डॉलर की है। इसमें 2.1 टिलियन डॉलर जोड़ने के लिए व्यापक आर्थिक सुधारों की आवश्यकता थी। आप कह सकते हैं कि बजट में वित्त मंत्री ने इस दिशा में थोड़ा साहस दिखाया है।

वित्त मंत्री का फोकस सुस्ती पर

आर्थिक सर्वेक्षण में इस बात का संकेत मिल गया था कि वित्त मंत्री का फोकस सुस्ती को धक्का देकर विकास गति को तेज करना होगा जिसके लिए वे बचत, निवेश और निर्यात बढ़ाने वाला बजट पेश करेंगी। आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक पूरी दुनिया में जब भी कोई देश लंबे समय तक तेज आर्थिक विकास दर हासिल करता है तो उसके लिए निवेश, बचत और निर्यात में लगातार होने वाली वृद्धि ही प्रमुख कारक रही है। निवेश और बचत के लिए कॉरपोरेट एवं आम आदमी के हाथों में धन का रहना जरूरी है। पिछले वर्ष कॉरपोरेट को कर के मोर्चे पर राहत दिए जाने के बाद मध्यमवर्ग भी राहत की उम्मीद कर रहा था। विशेषज्ञ भी कह रहे थे मांग को बढ़ावा देने के लिए आयकर में कटौती होनी चाहिए। हालांकि अभिजीत बनर्जी जैसे अर्थशास्त्री का मानना है कि कर घटाने की जगह बढ़ना चाहिए।

बजट की तीन थीम 

वित्त मंत्री ने बजट भाषण के आरंभ में बजट की तीन थीम बताई। आकांक्षी भारत, सभी के लिए आर्थिक विकास करने वाला भारत और सभी की देखभाल करने वाला भारत। बजट को इन्हीं थीम पर केंद्रित करने की कोशिश है। वित्त मंत्री ने कहा कि इस बजट का लक्ष्य लोगों की आय और खरीद क्षमता बढ़ाना, रोजगार उपलब्ध कराना, कारोबार को मजबूत करना, अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जाति-जनजाति और हर वर्ग की महिलाओं की आकांक्षाओं को पूरा करना है।

चुनौतियों की ओर ध्यान देने की कोशिश

उपरोक्त सभी चुनौतियों की ओर ध्यान देने की वित्त मंत्री ने कोशिश की है। साथ ही बजट की थीम को सबके साथ संतुलन बनाने का भी प्रयास किया है। इसमें वह कितना सफल हुई हैं, यह तो आने वाला समय बताएगा। लेकिन लोगों की जेब में पैसे आएं, उनकी खरीदने की शक्ति बढ़े इसके लिए करों में कमी और रियायत जितना अधिक हो सकता है, वह दिया है। जैसे आयकर में छह श्रेणियां बन गई हैं। इससे नौकरीपेशा व मध्यवर्ग की जेब में धन बचेंगे। कंपनी लाभांश कर को खत्म कर दिया गया है। यह केवल व्यक्तिगत आधार पर रहेगा।

ग्रामीणों की बढ़ेगी खरीदेगी ताकत 

ग्रामीण आबादी की खरीद की ताकत को बढ़ाए बगैर मांग में वृद्धि अपेक्षित स्तर पर नहीं जा सकती। इसमें कृषि की मुख्य भूमिका है। कृषि हमारे अर्थव्यवस्था की रीढ़ हो सकती है। किसानों की आय बढ़ाने पर पिछले करीब तीन वर्षो से जोर दिया जा रहा है। बजट में इसका उल्लेख है। किसानों के लिए कुछ अहम घोषणाएं हैं। किसान सम्मान निधि जारी है। मनरेगा के मद में आवंटन बढ़ाया गया है। कृषि के लिए अभी तक का सबसे बड़ा बजट आवंटन दो लाख 83 हजार करोड़ का दिया गया है।

कृषि कर्ज के लिए सबसे अधिक रकम

कृषि कर्ज के लिए आज तक की सबसे अधिक रकम 15 लाख करोड़ रुपये दी गई है। कृषि और ग्रामीण विकास के क्षेत्र पर फोकस करने से देश की बड़ी आबादी की आर्थिक दशा मजबूत हो सकती है। वर्ष 2017 से मोदी सरकार किसानों की आय दोगुना करने की बात कर रही है। इस बजट में भी उसकी घोषणा हुई है। इसे दोहराने की जरूरत नहीं कि गांव की आय तब बढ़ेगी, जब उनकी क्रय क्षमता बढ़ेगी, और तभी देश के आर्थिक विकास को छलांग लगाने का धक्का लगेगा और वह तेज गति पकड़ेगी।

एमएसएमई के लिए इसमें काफी कुछ 

इसी तरह लघु, मध्यम एवं सूक्ष्म उद्योगों यानी एमएसएमई के लिए इसमें काफी कुछ किया गया है। इनमें कर्ज की उपलब्धता बढ़ाना, प्रौद्योगिकी उन्नयन, कारोबारी सुगमता व बाजार तक पहुंच शामिल हैं। ये काफी रोजगार देते हैं। उनकी मान्य सीमा को एक करोड़ से बढ़ाकर पांच करोड़ कर दिया गया है। सरकार ने लघु व मध्यम उद्योगों के लिए एक करोड़ रुपये की कर्ज राशि कुछ ही मिनटों के अंदर स्वीकृत करने की जो घोषणा की थी उस पर ईमानदारी से अमल करना होगा। अगर हमारा एमएसएमई सेक्टर गति पकड़ लेगा तो विकास दर को गति पकड़ने में समस्या नहीं होगी। हालांकि इनकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वित्त मंत्री ने जैसी उम्मीद की है उसके अनुसार ही आगे की घटनाएं घटित हों। उदाहरणस्वरूप आधारभूत संरचना के लिए 100 लाख करोड़ रुपये। ग्रामीण आधारभूत संरचना के लिए 25 लाख करोड़ रुपये।

अपेक्षा से कम आ रहे कर

चूंकि जब कर अपेक्षा से कम आ रहे हैं, आपने करों में कटौतियां की हैं तो इतनी ज्यादा राशि आएगी कहां से? इतनी अधिक राशि के लिए बाजार से कर्ज लेना पड़ेगा। विश्व बाजारों में पैसे उपलब्ध हैं, लेकिन उसकी व्यवस्था कैसे होगी, कहां होगी इसकी चर्चा नहीं है। आधारभूत संरचना का विकास हर दृष्टि से आवश्यक है। यह रोजगार तो देता ही है, विकास की गति को भी बढ़ावा मिलता है। निवेश आकर्षित होता है। तो हम कामना कर सकते हैं कि जो कुछ घोषणाएं हुई हैं, वे सब अमल में आएं और लोगों की अपेक्षाएं पूरी हों।

सुस्ती और दबावों से घिरी अर्थव्यवस्था 

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वर्ष 2020-21 का बजट ऐसे समय में पेश किया जब भारतीय अर्थव्यवस्था चतुर्दिक सुस्ती और दबावों से घिरी है। तो बजट का मूल्यांकन इस आधार पर होगा कि इसमें जो घोषणाएं की गई हैं, वे मौजूदा चुनौतियों का मुकाबला करने में सफल होंगी या नहीं? इस सवाल का जवाब तभी मिलेगा जब हम यह समझ लेंगे कि अर्थव्यवस्था के समक्ष वास्तविक चुनौतियां क्या हैं? कहा जा सकता है कि वित्त मंत्री ने कठिन समय में और तमाम चुनौतियों के बीच देश के विकास को गति देने के साथ आम आदमी को राहत देने के लिए कई जोखिम उठाए हैं

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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