आलोक मिश्रा, छत्तीसगढ़। देश में प्याज के ठाठ, हैदराबाद में मुठभेड़, उन्नाव कांड, झारखंड के चुनाव, मंदी की बहस के बीच छत्तीसगढ़ भी खासी चर्चा में आ गया है। नक्सलियों से मुकाबले के लिए तैनात जवानों की बंदूकें उन पर चलने के बजाए अपनों पर चल रही हैं। सप्ताह भर में तीन जगह गोलियां चलीं और छत्तीसगढ़ में तैनात नौ जवानों की जानें चली गईं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ, पहले भी अपनों पर इस तरह गोलियां चल चुकी हैं जिसकी वजह है तनाव। तनाव इनमें ही नहीं है। यह इस समय हर जगह दिख रहा है। सरकार के लिए अभी धान तनाव है। कांग्रेस व भाजपा के लिए निकाय चुनाव तनाव है और जनता में इनके तनाव से तनाव है।

एक जवान ने साथी की एके-47 छीनकर 5 जवानों को मार डाला

नारायणपुर शहर से 30 किमी दूर नक्सली क्षेत्र कड़ेनार में चार दिसंबर की सुबह अचानक गोलियों की तड़तड़ाहट गूंज उठी। आसपास के आदिवासी सहम गए यह सोचकर कि कहीं नक्सली हमला हुआ है। थोड़ी देर में साफ हो गया कि गोलियां चली हैं इंडो-तिब्बत सीमा बल के कैंप में जिसमें एक जवान ने साथी की एके-47 छीनकर पांच जवानों को मार डाला। वह भी जिंदा नहीं बचा। पहले बात आई कि उसने खुद को गोली मार ली, लेकिन सीने व कमर में लगी गोलियों ने बताया कि खुद मारना संभव नहीं। हालांकि अधिकारी यह कहकर अभी बोलने से बच रहे हैं कि यह जांच में ही स्पष्ट हो सकेगा। इस तड़तडा़हट की गूंज थोड़ी ही देर में देश भर में सुनाई दे गई। लेकिन यह गूंज अभी थम भी नहीं पाई थी कि झारखंड चुनाव कराने गई कांकेर जिले में तैनात सीआरपीएफ की 10वीं बटालियन के एक जवान ने सोमवार को सुबह-सुबह अपने कमांडर को गोली मार दी और खुद को भी।

परिवार से दूर जंगली जीवन जीने को मजबूर

जवान इतने गुस्से में था कि 20 गोलियों से भरी मैग्जीन खाली कर दी। दूसरी घटना ने सभी को हैरान कर दिया, लेकिन यहीं बस नहीं हुआ। दोपहर को दंतेवाड़ा में बस में सवार होकर आ रहे जवान जब एक होटल पर रुके तो एक ने अपनी बंदूक खुद पर ही चलाकर जान दे दी। इन घटनाओं की वजह उनमें व्याप्त तनाव के रूप में सामने आ रही है। परिवार से दूर जंगली जीवन, कम संख्या होने के कारण छुट्टियों के लिए तरसना और रूखा व्यवहार ऐसे कदम उठाने को मजबूर कर रहा है। इसे दूर करने के लिए माहौल बनाने की भी कोशिश जारी है, लेकिन इन घटनाओं ने बता दिया कि वह नाकाफी है।

भीड़ के आगे व्यवस्था चरमरा गई

इधर गांवों में धान की खरीदी और शहर में निकाय चुनाव भी तनाव का कारण बने हुए हैं। ढाई हजार रुपये में धान खरीदी का नारा देकर सत्ता में आई कांग्रेस के लिए यह वादा ही दिक्कत का कारण बन गया है। मोदी साथ दे नहीं रहे और बेहतर दाम देख कोटा अलग बढ़ गया। बची रकम बाद में देने का आश्वासन देकर केंद्र के मूल्य पर लेट धान खरीदी शुरू हुई तो भीड़ के आगे व्यवस्था चरमरा गई। प्रतिदिन खरीद का कोटा कम किया गया और लाइन लगवा दी गई। टोकन बांटे गए जो डेढ़ महीने बाद की तारीख तक चले गए। परिणति, कहीं चक्का जाम तो कहीं खरीद केंद्र पर किसानों ने जड़ दिया ताला। विपक्ष में बैठी भारतीय जनता पार्टी इसे भुनाने में जुटी है जबकि भूपेश हालात संभालने में। खुद कमान थामे किसानों को समझाने में तो वह जुटे ही हैं, केंद्र के अड़ियल रवैया को निशाना भी बनाए हैं और मुख्य सचिव सहित अधिकारियों को हालात संभालने दौड़ाए भी हैं।

एक अनार और सौ बीमार वाला हाल

सरकार और विपक्ष अगर धान में उलझा है तो निकाय चुनाव में दल उलझ गए हैं। लोकसभा और विधानसभा में जो माथापच्ची नहीं हुई, वह इस चुनाव में सभी झेल रहे हैं। पहले टिकट को लेकर आफत, एक अनार और सौ बीमार वाला हाल। कांग्रेस हो या भाजपा दोनों के लिए नाम फाइनल करना पापड़ बेलना जैसा हो गया। किसी तरह नामांकन के आखिरी दिन भोर तक सूची फाइनल की। जिसका नाम दिखा वह खुश, जिसे नहीं मिला वह बागी हो गया। वार्ड का चुनाव है, जिसकी अहमियत दल भी जानते हैं। वे जानते हैं कि अगर बागी मैदान में रहे तो इसमें चुनाव चिन्ह तो नैया पार लगाने से रहा। इसलिए शुरू हुई बागियों को मनाने की कोशिश, जो अभी तक जारी है। नाम वापसी की तिथि निकल गई है।

कुछ तो मान गए हैं लेकिन अधिकांश डटे हैं। दल इस आस में हैं कि चलो मैदान में भले ही रहें, अंत तक समर्थन हासिल कर ही लिया जाएगा। इस बीच कुछ को टिकट थमाने के बाद छीना भी गया, वे अलग कलप रहे हैं। इससे भी माहौल में तनाव का रंग छाया है। दिसंबर बीत रहा है, लेकिन ठंड का नामोनिशान नहीं हैं। इसमें अगर देखा जाए तो मौसम की कम तनाव की भूमिका ज्यादा है।

[राज्य संपादक, नई दुनिया, छत्तीसगढ़]