डा. अश्विनी महाजन। पिछले दो दशकों में चीन ने भारत ही नहीं, दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं पर अपना शिकंजा कसने का प्रयास किया है। यह तो सर्वविदित है कि चीन ने अपनी आक्रामक विदेश व्यापार नीति के माध्यम से दुनिया भर के बाजारों पर अपना वर्चस्व जमाया है। बड़े स्तर पर निर्यात सहायताओं द्वारा अपने माल को सस्ता कर बेचना (जिसे डंपिंग भी कहा जाता है) अंडर इनवाइसिंग, यानी अपने माल का बिल कम दिखाते हुए दूसरे देशों में भेजना, घटिया स्तर का माल बेचना और कई बार तो तस्करी द्वारा भी माल बेचना, ऐसे कई अनैतिक और गैर कानूनी हथकंडे चीन द्वारा अपनाए जाते रहे हैं।

कुछ देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते हैं, जिनके तहत उनसे शून्य आयात शुल्क पर आयात किया जाता है। चीन इन रास्तों से भी माल भेजने का गलत काम करता रहा है। समझना होगा कि आज भारत ही नहीं समूचा विश्व चीन को उसके कृत्यों के लिए सबक सिखाने के लिए तैयार है। ऐसे में भारत को भी अपने दायित्व से पीछे नहीं हटना चाहिए।

दूसरी तरफ चीन अपनी कंपनियों को इंफ्रास्ट्रक्चर टेंडर दिलाने के लिए कम राशि अंकित करवाता है जिसके कारण कई सामरिक महत्व के ठिकानों पर वह टेंडर हासिल कर लेता है। यही नहीं चीन की सोशल मीडिया एप्स, ई-कॉमर्स एप्स और अन्य प्रकार की एप्स के माध्यम से भी लाभ तो कमा ही रहा है, साथ ही हमारी जनता की बहुमूल्य जानकारियों को भी इकट्ठा कर चीन में भेजकर हमारे लिए सुरक्षा संकट उपस्थित करता है। इन सब करतूतों के विरोध में भारत सरकार ने भी अपना रुख सख्त कर दिया है। हाल ही में 59 चीनी एप्स पर प्रतिबंध और चीनी कंपनियों के ठेके रद्द करने का काम भारत सरकार ने किया है। इनके आयातों को रोकने के लिए आयात शुल्क बढ़ाने और अन्य गैर टैरिफ उपाय अपनाने की तैयारी की जा रही है। पिछले कुछ समय से चीनी कंपनियां और निवेशक जिन्हें चीनी सरकार से अलग कर नहीं देखा जा सकता, भारी मात्रा में भारतीय स्टार्टअप और अन्य व्यवसायों में निवेश कर रहे हैं।

कुछ लोगों का यह कहना है कि चूंकि चीन से निवेश आ रहा है, इसलिए हमें इसे रोकना नहीं चाहिए, अन्यथा हमारे स्टार्टअप का वित्तीय पोषण बंद हो सकता है और देश में व्यवसायों और रोजगार पर असर पड़ सकता है। यह भी तर्क दिया जाता है कि चीन से सस्ते आयात आने देना चाहिए, क्योंकि इससे उत्पादकों की लागत कम होती है और वे वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी हो सकते हैं। लेकिन हमें नहीं भूलना चाहिए कि हमारे स्टार्टअप ही हमारे भविष्य के उद्योग और व्यवसाय हैं। यदि चीनी निवेश के कारण उनका स्वामित्व और प्रबंधन चीनी हाथों में चला जाता है तो उससे कुछ भी भारतीय नहीं रहेगा। उनके व्यवसायिक निर्णय ही नहीं बहुमूल्य बाजार और डाटा भी चीनी हाथों में चला जाएगा। पेटीएम का उदाहरण हमारे सामने है। आज डिजिटल भुगतान में सबसे अधिक बाजार की हिस्सेदारी के साथ पेटीएम चीन के अलीबाबा के हाथों में है। वह अब बैंकिंग में भी पैर पसार रहा है। हाल ही में अलीबाबा ने पेटीएम के माध्यम से मृतप्राय बीमा कंपनी रहेजा क्यूबीई जनरल इंश्योरेंस कंपनी को खरीद कर सीधे बीमा व्यवसाय में प्रवेश करने का प्रयास किया है।

निष्कर्ष यह है कि चीनी निवेश को केवल निवेश के रूप में नहीं, बल्कि अपने व्यवसायों को चीनी हाथों में सौंपने के रूप में देखा जाना चाहिए। दूसरे आज चीन के बहिष्कार के चलते भारतीय उद्यमों, एप्स, भुगतान कंपनियों, इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों का व्यवसाय आगे बढ़ रहा है। ऐसे में यदि इन कंपनियों में चीनी निवेश रोका नहीं गया तो ये कंपनियां भी देर सबेर चीनी हाथों में चली जाएंगी और देश हाथ मलता रह जाएगा। जरूरी है भारतीय निवेशकों द्वारा निवेश से उद्यमों को चीनी हाथों में जाने से रोका जाए। इसके लिए जरूरी है कि हमारे भारतीय निवेशक भारतीय स्टार्टअप में निवेश करें। पिछले काफी समय से भारतीय निवेशक उद्यम पूंजी (वेंचर कैपिटल) के माध्यम से भारतीय स्टार्ट अप में निवेश कर रहे हैं।

चूंकि इन स्टार्टअप में अत्यधिक जोखिम होता है, इसलिए बैंक और अन्य वित्तीय संस्थान उन्हें कर्ज देने में कतराते हैं। लेकिन वेंचर कैपिटलिस्ट इन्हें आसानी से अंश पूंजी प्रदान करने के लिए तैयार हो जाते हैं, क्योंकि कुछ स्टार्टअप के असफल होने पर भी सफल उद्यमियों से होने वाले लाभ उनकी हानि की भरपूर पूर्ति कर देते हैं। वेंचर कैपिटलिस्ट भारतीय भी हैं और विदेशी भी। विदेशियों में चीनी, अमेरिकी यूरोपीय और अन्य देशों के फंड शामिल हैं। ऐसा देखने में आ रहा है कि भारत के ई-कॉमर्स और डिजिटल भुगतान में संबंधित स्टार्टअप कंपनियों में फंडों का निवेश बहुत अधिक बढ़ चुका है।

चिंता की बात यह है कि इन ई-कॉमर्स, सोशल मीडिया और भुगतान कंपनियों के स्वामित्व के माध्यम से चीन हमारे यहां से बहुत सा बहुमूल्य डाटा अपने देश में ले जा रहा है, जो हमारे व्यवसाय और आंतरिक व बाहरी सुरक्षा समेत हमारे सामाजिक ताने-बाने और धार्मिक सद्भाव के लिए भारी खतरा है। इसके लिए जरूरी है कि न केवल चीनी निवेश को रोका जाए, बल्कि यथासंभव पूर्व में जिन कंपनियों में चीनी निवेश हो चुका है उसे वापस करने हेतु उपाय खोजे जाएं।

विदेशी निवेश को बढ़ावा देने की दृष्टि से शायद विदेशी निवेशकों को कर से यह छूट दी गई थी। लेकिन आज बदली हुई परिस्थितियों में जहां चीन से निवेश आना अनापेक्षित है, कम से कम कर देयता में समता का सिद्धांत लागू कर हम भारतीय निवेश को प्रोत्साहित कर सकते हैं। चीनी निवेश को रोकने और पूर्व में किए निवेश को वापस करने से देश को कई लाभ होंगे। एक, हमारे युवाओं के स्टार्टअप देश के स्वामित्व में रहेंगे और उन से होने वाले लाभ चीन नहीं जाएंगे। दूसरे, युवाओं के आईडिया और बौद्धिक संपदा का पलायन नहीं होगा।

अभी तक देखा गया है कि चीन बौद्धिक संपदा की चोरी कर अपने व्यवसाय को बढ़ाने का अनुचित कार्य करता रहा है। तीसरे हमारे देश का बहुमूल्य डाटा भी चीन नहीं जा पाएगा, जिससे हम अपनी सामरिक सुरक्षा को सुनिश्चित कर ही पाएंगे, साथ ही हमारे ई-कॉमर्स और सोशल मीडिया पर हमारा अधिकार सुनिश्चित होगा। चौथा, चीन एक शत्रु देश होने के कारण उसकी पूंजी को अवसर नहीं मिलने से उसकी आर्थिक शक्ति भी क्षीण होगी। 

[एसोसिएट प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय]