[ ब्रिगेडियर आरपी सिंह ]: पिछले महीने श्रीलंका आतंकी हमलों से दहल गया। राजधानी कोलंबो में 21 अप्रैल को चर्चों और होटलों को निशाना बनाकर किए गए इस आतंकी हमले में 290 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए। वर्ष 2009 में गृहयुद्ध की समाप्ति के दस साल बाद हिंद महासागर के इस द्वीप में हिंसा ने फिर से दस्तक दी जिसका दायरा अब फैलने की आशंका बढ़ गई है। आइएसआइएस ने इन धमाकों की जिम्मेदारी ली थी और अब उसकी ओर से दावा किया जा रहा है कि उसने जम्मू-कश्मीर में भी अपना अड्डा बना लिया है। इससे पहले ऐसी खबरें भी आई थीं कि उसने बंगाल के लिए अपना ‘अमीर’ यानी प्रमुख नियुक्त कर दिया है। इससे भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए नई चुनौतियां खड़ी हो रही हैं।

आइएस भले ही कमजोर पड़ गया है, लेकिन श्रीलंका आतंकी हमले से जाहिर है कि वह खत्म नहीं हुआ है। हमले के बाद आइएस ने आठ लोगों का वीडियो भी जारी किया जिन्होंने इस्लामिक स्टेट के स्वयंभू खलीफा और आतंकी संगठन आइएस के मुखिया अबू बकर अल बगदादी के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त की। फिर अल बगदादी का दुष्प्रचार वीडियो भी जारी हुआ। पांच साल के बाद पहली बार उसका ऐसा वीडियो देखा गया। यह इस बात को दर्शाता है कि इराक और सीरिया जैसे तथाकथित गढ़ों में आइएस का सफाया होने के बावजूद उसका मुखिया न केवल जीवित है, बल्कि उसकी हालत भी ठीक-ठाक ही दिख रही है।

अल फुरकान मीडिया द्वारा पोस्ट किए गए 18 मिनट के वीडियो में अल बगदादी ने श्रीलंका में बम धमाकों को अंजाम देने वालों की तारीफें कीं। उसने सीरिया के बागोज में हालिया लड़ाई का भी जिक्र किया जिसमें आइएसआइएस का आखिरी किला भी ढह गया, लेकिन उसने एलान किया कि इस्लाम की यह लड़ाई जारी रहेगी। इससे पहले भी उसने कहा था कि आप दुनिया को हिलाकर ही अपनी अलग दुनिया बना सकते हैं।

एक वक्त इस्लामिक स्टेट इसे संभव करता भी दिख रहा था जब वह ब्रिटेन के बराबर भूभाग पर काबिज होकर करीब एक करोड़ की आबादी का भाग्यविधाता बन बैठा था। बीते कुछ वर्षों में आइएसआइएस को भारी नुकसान उठना पड़ा है जहां अमेरिका और रूस समर्थित बलों ने कई इलाकों से उसे खदेड़कर उन इलाकों से उसका कब्जा छुड़ाया जहां कभी उसकी तूती बोलती थी। आइएसआइएस आज उस आतंकी संगठन की महज छायामात्र बनकर रह गया जो कभी बहुत मजबूत हुआ करता था। मगर यह अभी भी एक एक बड़ी ताकत के रूप में कायम है जो दुनियाभर में आतंकी हमलों के लिए उकसाने का माद्दा रखता है। श्रीलंका में हुए धमाकों से इसकी पुष्टि भी होती है। अल बगदादी का वीडियो यही रेखांकित करता है कि यह संगठन भले ही कमजोर पड़ गया हो, लेकिन उसे खारिज करने की भूल न करें।

आइएसआइएस की वैचारिकी सलाफी, सलाफी जिहाद और वहाबी विचारधारा से प्रेरित है। इस्लाम की ये सभी धाराएं बहुत कट्टर मानी जाती हैं जिनके अनुसार सभी गैर-मुस्लिम अल्लाह को नहीं मानते लिहाजा उन्हें मार दिया जाना चाहिए। आइएसआइएस के लक्ष्यों में शुरुआती इस्लाम के खलीफा वाली व्यवस्था की पुनस्र्थापना भी शामिल है। उसके विचारों में हिंसा की भरमार है। उसके हिसाब से अगर इस्लाम को कोई दूषित करने की कोशिश करे तो इसका प्रतिकार करना होगा। हजरत मोहम्मद और उनके शुरुआती शागिर्दों ने जो नियम-कानून बनाए, उनका सख्ती से पालन अनिवार्य है। उसकी सोच में महिलाएं कभी भी पुरुषों के बराबर नहीं हो सकतीं और उन्हें जिहादियों की अच्छी पत्नी बनकर उनकी देखभाल करनी चाहिए। वे अच्छी मां बनकर दिखाएं और नर्स और सिलाई जैसे कामों तक सीमित रहें। नास्तिक महिलाओं को यौन दासी बनाकर उनका सामान्य वस्तुओं की भांति व्यापार किया जाए। आइएस पूरी तरह से इस्लामिक धार्मिक पुस्तकों से संचालित होता है और उसके प्रवक्ता अक्सर उनका हवाला भी देते हैं।

आइएसआइएस बड़े स्तर पर पत्रिकाएं प्रकाशित कराता है, वीडियो और ऑडियो टेप बनवाता है। विभिन्न भाषाओं में उसके लिए यह सामग्र्री अल-हयात मीडिया सेंटर द्वारा तैयार की जाती है। अंग्र्रेजी में वह दबिक और रुमैया, रूसी में इस्तोक, फ्रेंच में दार-अल-इस्लाम और तुर्की में कोंस्तातिनिये जैसे प्रकाशनों से जुड़ा है। साथ ही अंग्र्रेजी में ‘हाउ टू सर्वाइव इन द वेस्ट: ए मुजाहिद्स गाइड’ जैसे प्रकाशन भी कराता है। वह लगातार दुष्प्रचार सामग्र्री को उन इलाकों में भी फैला रहा है जहां भले ही उसकी पैठ हो या नहीं। क्या उसके लिए जमीनी आधार जरूरी है, इस सवाल का आइएस ने अपने एक प्रकाशन में इस तरह जवाब दिया है, ‘क्या पश्चिम को जीत हासिल हो गई या फिर हम अपनी हार मान लेंगे। भले ही मोसुल, रक्का और अन्य शहर हमारे हाथ से निकल गए हों, लेकिन क्या हम फिर से वहीं पहुंच गए जहां से शुरुआत की थी? कभी नहीं। असली हार तभी होगी जब हम लड़ने का जज्बा खो बैठेंगे। हम लड़ाई के आदेश का पालन कर रहे हैं और अल्लाह के बेहद करीब हैं। अपने धर्म के लिए जीना और उसी के लिए मरना ही हमारे लिए असली जीत है।’

यहां तक कि उसके ये प्रकाशन आतंकी रणनीतियों की व्याख्या करते हुए उसके सुबूत छोड़ने की अहमियत भी बताते हैं जिसका मकसद इस आतंकी संगठन का महिमामंडन और लोगों को खौफजदा करना है। रुमैया के अक्टूबर, 2016 के अंक में इसका उल्लेख है, ‘किसी देश को डराने और तमाम काफिरों को मौत के घाट उतारने के लिए जरूरी नहीं कि कोई सैन्य विशेषज्ञ हो या मार्शल आर्ट का जानकार। इसके लिए बंदूक या राइफल भी जरूरी नहीं। आतंकी अभियान का यही मकसद होता है कि अल्लाह के दुश्मनों को सबक सिखाया जाए।’

भयावह क्रूरता, लोगों के सिर कलम करना, कैद में लोगों को आग में जलाकर मार देने जैसे नृशंस कृत्यों के वीडियो और फोटोग्र्राफ भी एक सोची-समझी रणनीति के तहत ही जारी किए जाते हैं। इसका अपने और विरोधी दोनों खेमों में असर देखा जाता है। आइएसआइएस कयामत की पुरानी परंपरा और भविष्यसूचक अनुमान पर विश्वास करता है। दुनिया को भविष्य में और आतंकी गतिविधियों के लिए तैयार रहना चाहिए, क्योंकि स्वयं को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए आइएसआइएस अपने पास मौजूद किसी भी विकल्प को आजमाने की हद तक जा सकता है। अपने वजूद को बचाने के साथ ही उसे यह भी संदेश देना होगा कि अपनी जमीन गंवाने के बावजूद उसकी ताकत कमजोर नहीं हुई है।

यहां बड़ा सवाल यही है कि लोगों को कट्टरपंथी विचारधारा की चपेट में आने से कैसे रोका जाए। वैचारिक ब्रेनवॉश के बाद वे कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। यह उतना आसान नहीं, क्योंकि आइएसआइएस इस्लामिक धर्मग्रंथों को ही अपनी ढाल बनाता है। दूसरे धर्मों के उलट इस्लामिक धर्मग्रंथों को पूर्ण माना जाता है जिससे उनमें सुधार या संशोधनों की गुंजाइश नहीं बचती। ऐसे में केवल मुस्लिम उलेमा ही आइएसआइएस की अवधारणा का जवाब तलाश सकते हैं। इस आतंकी संगठन की महज आलोचना करने के बजाय उलेमाओं को चाहिए कि वे इसका तोड़ निकालने वाला विमर्श तैयार करें। अन्यथा आतंकी हमलों पर विराम नहीं लग पाएगा और निकट भविष्य में मानवता शांति की उम्मीद नहीं कर सकती।

( लेखक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी हैं )

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