[ हृदयनारायण दीक्षित ]: संविधान की दुहाई और संविधान पर ही हमला। कई मुख्यमंत्रियों ने नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए और एनआरसी पर सीधा हमला किया है। उन्होंने अपने राज्यों में कानून न लागू करने की असंवैधानिक घोषणा भी की है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि ‘आप कानून बना सकते हैं, लेकिन इसे लागू करने का काम राज्य सरकार का है। हम उसे लागू नहीं करेंगे।’ पंजाब के मुख्यमंत्री अर्मंरदर सिंह ने संसद की विधायी क्षमता पर ही सवाल उठाए हैं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भी इसे लागू न करने की घोषणा की है। केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन ने इसे विभाजनकारी बताते हुए राज्य में लागू न करने का हठ प्रदर्शित किया है। राजस्थान और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के बयान भी संविधानसम्मत नहीं हैं। इनका आचरण राज्यों के विधि निर्वाचित शासक जैसा नहीं है।

संसद द्वारा पारित कानून लागू करना राज्यों का संवैधानिक कर्तव्य है

मूलभूत प्रश्न है कि क्या मुख्यमंत्रीगण अपने राज्यक्षेत्रों को भारतीय राष्ट्र राज्य से भिन्न अलग देश मान रहे हैं? क्या वे अपने राज्यों के संप्रभु सम्राट हैं? वस्तुत: सभी राज्य भारतीय संविधान के अधीन भारत संघ के अविभाज्य अंग हैं। मुख्यमंत्रियों के अधिकार व कर्तव्य संविधान में सुस्पष्ट हैं। संसद द्वारा पारित कानून लागू करना उनका संवैधानिक कर्तव्य है। संसद द्वारा पारित कानून लागू न करने की घोषणा संवैधानिक अराजकता है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने भी संसद द्वारा पारित कानून के न लागू करने को असंवैधानिक कहा है।

कानूनों का प्रवर्तन राज्यों का बाध्यकारी कर्तव्य है, ऐच्छिक अधिकार नहीं

कानूनों का प्रवर्तन राज्यों का ऐच्छिक अधिकार नहीं है। यह राज्यों का बाध्यकारी कर्तव्य है। संविधान में अनुच्छेद 256 शीर्षक ‘राज्यों की और संघ की बाध्यता’ है। संविधान के अनुसार ‘प्रत्येक राज्य की कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग इस तरह किया जाएगा जिससे संसद द्वारा बनाई गई विधियों का और ऐसी विधियों का जो उस राज्य में लागू हैं, अनुपालन सुनिश्चित रहे।’ संसद द्वारा बनाए कानून व राज्य में प्रवर्तित अन्य कानूनों का प्रवर्तन राज्य की ही जिम्मेदारी है। इसी अनुच्छेद में केंद्र के लिए भी निर्देश हैं, ‘संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी राज्य को ऐसे निर्देश देना है, जो केंद्र को उक्त प्रयोजनों के लिए जरूरी प्रतीत हो।’

कानून लागू कराने के संबंध में केंद्र को निर्देश देना है, राज्य उनका अनुपालन सुनिश्चित करते हैं

कानून लागू कराने के संबंध में केंद्र को सिर्फ निर्देश देना है। राज्य उनका अनुपालन सुनिश्चित करते हैं। अनुच्छेद 257 में राज्यों को निर्देश है कि ‘राज्य की कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग इस तरह किया जाए जिससे केंद्र की कार्यपालिका शक्ति के प्रयोग में कोई अड़चन न हो। केंद्र इसके लिए भी राज्यों को जरूरी निर्देश दे सकता है।’ तब मुख्यमंत्री बाध्यकारी संवैधानिक कर्तव्यों का भी पालन न करने के दोषी क्यों नहीं हैं? संविधान की शपथ लेकर भी संविधान पालन से इन्कार करने का औचित्य वही बता सकते हैं।

कानून लागू न करने का एलान असाधारण संवैधानिक अवमानना है

कानून लागू न करने का एलान असाधारण संवैधानिक अवमानना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संवाद में विश्वास करते हैं। क्या श्रीमती इंदिरा गांधी भी इसे बर्दाश्त करतीं? संविधान के एक उपबंध (अनुच्छेद 365) के शीर्षक ‘संघ द्वारा दिए गए निर्देशों का अनुपालन करने में या उनको प्रभावी करने में असफलता का प्रभाव’ वाला हिस्सा पठनीय है, ‘जब इस संविधान के किसी उपबंध के अधीन संघ की कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग करते हुए दिए गए निर्देशों का अनुपालन करने में कोई राज्य असफल रहता है, वहां राष्ट्रपति के लिए यह मानना विधिपूर्ण होगा कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिससे उस राज्य का शासन संविधान के उपबंधों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता।’ ऐसी परिस्थिति के लिए ही अनुच्छेद 356 में ‘राष्ट्रपति शासन की वैकल्पिक व्यवस्था है।’ मुख्यमंत्रीगणों के लिए उनकी घोषणा से जुड़े यह संवैधानिक उपबंध पुनर्पाठ योग्य हैं। वे कह सकते हैं कि वे इससे नहीं डरते, लेकिन संविधान से उनका बेखौफ होना लोकतंत्र के लिए अशुभ संकेत है।

विधानसभा को नागरिकता कानून पर बहस का अधिकार नहीं है

कानून की संवैधानिकता की बहस अलग विषय है, लेकिन मुख्य प्रश्न यही है कि क्या कोई राज्य सरकार संसद द्वारा पारित और राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित कानूनों के प्रवर्तन के कर्तव्य पालन से मुकर सकती है? यह संवैधानिक अराजकता जैसा है। केरल और पंजाब में सरकारों ने तो विधानसभा में भी प्रस्ताव कराए हैं। अनुच्छेद 246 में संसद व विधानमंडलों की विधायी शक्ति के विषयों का बंटवारा है। वहीं सातवीं अनुसूची की संघीय सूची में नागरिकता है। विधानसभा को इस विषय पर बहस का अधिकार नहीं है। वे जानते हैं कि इस प्रस्ताव का प्रभाव शून्य है, बावजूद इसके विधानसभा के सम्मानित मंच का दुरुपयोग किया। ऐसे प्रहसन दलीय मंचों के लिए बेशक उपयोगी हो सकते हैं, लेकिन सदनों की गरिमा को गिराने वाले हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय संघ नाशवान इकाइयों का अनाशवान संघ है

कुछेक टिप्पणीकारों ने इस कृत्य को संघीय ढांचे की मजबूती बताया है। संविधान सभा में डॉ. आंबेडकर ने कहा था कि ‘प्रारूप समिति ने संघ शब्द का प्रयोग किया है। इसके दो लाभ हैं। (क) भारतीय परिसंघ राज्य इकाइयों के बीच किसी करार का परिणाम नहीं है। (ख) संघटक इकाइयों को उससे विलग होने के अधिकार नहीं हैं।’ भारत अमेरिका नहीं है। अमेरिकी राज्यों ने मिलकर ‘संयुक्त राज्य अमेरिका परिसंघ बनाया था।’ अमेरिका के उच्चतम न्यायालय ने इसे ‘अविनाशी राज्यों का अविनाशी संघ’ कहा था। भारतीय उच्चतम न्यायालय ने ‘भारतीय संघ को ढीली-ढाली संरचना बताया और कहा कि यह नाशवान इकाइयों का अनाशवान संघ है।’

संविधान और लोकतंत्र की मर्यादा के क्षरण से राजनीति हास्यास्पद हो रही

यहां राज्य बनाए जाते हैं, छोटे या बड़े भी किए जाते हैं। भारत के राज्य और उनके मुख्यमंत्री स्वायत्त संस्था नहीं हैं, लेकिन कुछ राज्यों के सत्ताधीश संघ से टकराने का आचरण कर रहे हैं। संविधान और लोकतंत्र की मर्यादा के क्षरण से राजनीति हास्यास्पद हो रही है। ऐसा आचरण संघवाद नहीं, अलगाववाद है।

सबसे बड़े जनतंत्र में व्यावहारिक राजनीति में संविधान और जनतंत्र के प्रति निष्ठा वाला राष्ट्रभाव नहीं

पांच दिन बाद हमारा गणतंत्र 70 वर्ष पूरे कर रहा है। संसदीय व्यवस्था ने कई अनुभव दिए हैं, लेकिन इस दौरान चुनावी लोकतंत्र मजबूत हुआ है। बेशक हम दुनिया के सबसे बड़े जनतंत्र हैं, फिर भी व्यावहारिक राजनीति में संविधान और जनतंत्र के प्रति निष्ठा वाला राष्ट्रभाव नहीं है। आखिर संसद द्वारा पारित कानूनों के पालन से मुख्यमंत्री कैसे इन्कार करेंगे। वे इसका गलत औचित्य भी सिद्ध करेंगे तो आम नागरिक को जनतंत्र और संविधान का पाठ कौन पढ़ाएगा?

संसदीय विधि की ही अवमानना नहीं, बल्कि विधि स्थापित धारणा को भी चुनौती

यहां संसदीय विधि की ही अवमानना नहीं, बल्कि विधि स्थापित धारणा को भी चुनौती है। भारतीय ऐसी राजनीति पसंद नहीं करते। सो ऐसी राजनीति का समर्थन लगातार घट रहा है। राजनीतिक कार्यकर्ता समय का आह्वान सुनें। आत्मनिरीक्षण करें। संविधान और लोकतंत्र की निष्ठा का कोई विकल्प नहीं है।

( लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं )