[ अंशुमाली रस्तोगी ]: तय किया है, जब भी हंसना है तो खुद पर ही हंसना। खुद के अलावा किसी पर नहीं। खुद पर हंसने का कोई खतरा नहीं है। जबकि दूसरों पर हंसने के हजार खतरे हैं। अक्सर ही ये खतरे जानलेवा भी हो जाते हैं। जब से लोगों में बात-बात पर तुनक जाने का रिवाज चला है, उनके साथ बड़ा सोच-समझकर हंसना पड़ता है। क्या पता कब बिदक जाएं। अगर उनके बीच कभी मुझे अपने पर ही हंसना पड़ जाए तो मुंह पर रुमाल धर लेता हूं। कहीं मेरी हंसी छिटककर बाहर न आ जाए। बैठे-बिठाए तमाशा न बन जाए।

हंसी-खुशी और पत्नी, दोनों से होशियार रहें

न केवल नाते-रिश्तेदारों के बीच, बल्कि बीवी के सामने भी कोशिश मेरी यही रहती है कि कहीं हंसी न छूट जाए। हंसना पड़ भी जाए तो मुंह के भीतर ही हंसा जाए। मन ही मन में हंसने की कला सीख रहा हूं। एक जिम्मेदार पति होने के नाते मेरा मानना है कि पत्नी की हंसी में कम से कम शामिल होना चाहिए। कब कौन-सी हंसी को खुद पर ले झगड़ बैठे। अत: हंसी-खुशी और पत्नी, दोनों से होशियार रहें।

हंसी का माहौल अब पहले जैसा नहीं रहा, अब हंसने से पहले सोचना पड़ता है

हंसी का माहौल भी अब पहले जैसा नहीं रहा कि कभी भी, कहीं भी, कैसे भी, किसी पर भी हंस लिए। अब हंसने से पहले सौ दफा सोचना पड़ता है। हंसी का कोई बुरा न मान जाए, इस बात का ध्यान रखना पड़ता है। हालांकि लोग ठठाकर हंसते तो आज भी हैं, पर अकेले में। पब्लिकली हंसने वाले को लोग पागल समझने लगे हैं। हां, यही पागलपन भरी हंसी अगर आप ‘लाफ्टर क्लब’ में जाकर हंस रहे हैं तो बुद्धिजीवी और स्वस्थ समझे जाएंगे। वहां जोर-जोर से हंसने पर कोई बंदिश नहीं। वहां तो राह चलता शख्स भी आपको देखकर न खींसे निपोरेगा, न मुंह बिगाड़ेगा। आखिर आप समूह में एक साथ हंस रहे हैं। पागल भी आपको देखकर पागल नहीं समझेगा। मुझे तो अब वे लोग भी बड़े बौड़म से लगते हैं, जिनके चेहरे पर हर समय हंसी रहती है। जिन्हें आपने कभी गंभीर होते हुए देखा ही नहीं। उनका मकसद ही हंसना और हंसते रहना है।

बात या बेबात हंसना दुनिया में अब मूर्खता समझा जाता है

सोचता हूं, कैसे मूर्ख होते हैं ऐसे लोग। बताइए, बेबात हंसते रहते हैं। उन्हें पता नहीं कि बात या बेबात हंसना दुनिया में अब मूर्खता समझा जाता है। मूर्ख न समझा जाऊं इसीलिए मैं भी नहीं हंसता। दरअसल, हंसी को हमने नियंत्रित कर लिया है। सीमित हंसी हम अब सोशल मीडिया पर हंसते हैं। कभी फेसबुक पर आए कमेंट पढ़कर। कभी वॉट्सएप पर चुटकुला पढ़कर। कभी ट्विटर पर किसी को ट्रोल होते देखकर। सोशल मीडिया पर हंसी जाने वाली हंसी को बाहरी कोई देखता नहीं। या तो हम खुद देखते हैं या हमारा मोबाइल। कोई एक कोना पकड़ लीजिए, मोबाइल ले लीजिए फिर जितना मर्जी चाहे हंसते रहिए। आप क्यों हंस रहे हैं, कोई नहीं पूछेगा।

हंसी की बात पर न हंसना बड़ी बात है

दुनिया की नजरों से बचकर मैं भी अपने मोबाइल के साथ खुद ही हंसता हूं। कभी अपनी ही बेवकूफी पर हंस लेता हूं, मगर दूसरे पर नहीं हंसता। पहले मुझे वे लोग कतई अच्छे नहीं लगते थे, जो हंसते ही नहीं थे। जब देखो तो मुंह बिगाड़े रहते थे, लेकिन अब अच्छे लगने लगे हैं। अब तो मैं उन्हें दुनिया का सबसे खुशकिस्मत व्यक्ति समझता हूं। हंसी की बात पर भी न हंसना बड़ी बात है।

जरूरत पड़ने पर पैसा ही काम आता है, हंसी नहीं

बेवकूफ हैं वे जो कहते हैं कि हंसी को बचाकर रखिए, क्या पता कब काम आ जाए। देख लिया मैंने जरूरत पड़ने पर पैसा ही काम आता है, हंसी नहीं। फिर भी, आप हंसने की ठाने ही हुए हैं तो खुद पर हंसिए।

मन ही मन हंसने का अभ्यास कीजिए

खुद पर भी उतना ही हंसिए, जितना आपकी शरीर, आत्मा और स्वभाव झेल पाए। और भी अच्छा होगा कि मन ही मन हंसने का अभ्यास कीजिए। इस कला में पारंगत होने से आप जब चाहेंगे, हंस भी लेंगे और किसी को पता भी नहीं चलेगा। ज्यादा हंसना सेहत के लिए हितकारी नहीं। मेरी बात पर मत हंसिए, मैं झूठ नहीं बोल रहा, सच कह रहा हूं। दिन में थोड़ा-थोड़ा वक्त निकालकर खुद पर मन ही मन हंस लेता हूं। हंसने की तमन्ना भी पूरी हो जाती है, दूसरे बुरा भी नहीं मानते। झगड़े और किसी के नाराज होने का अंदेशा भी नहीं रहता।

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार हैं ]

[ लेखक के निजी विचार हैं ]