डॉ. अश्विनी महाजन। पिछले कुछ समय से सरकार अपने वायदे को दोहराती रही है कि वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुना करना है। इस बाबत पूर्व में ‘सॉयल हेल्थ कार्ड’, फसल बीमा योजना, लागत में 50 प्रतिशत जोड़कर समर्थन मूल्य, डेयरी और मत्स्य को प्रोत्साहन, सिंचाई योजनाओं समेत कई उपायों के बारे में सरकार आगे भी बढ़ी। कुछ अच्छे परिणाम भी आए, जैसे दालों, तिलहनों, फल-सब्जी और अनाज के उत्पादन में वृद्धि समेत कई अच्छे परिणाम भी देखने को मिले। किसानों की आमदनी को समर्थन देने हेतु सीधे खाते में किसान सम्मान निधि को भी सराहना मिली। जल संकटयुक्त 100 जिलों में वृहद सिंचाई योजना से इन जिलों को राहत मिल सकती है। किसानों के पास कई बार बंजर, पथरीली भूमि और बेकार छोड़ी गई भूमि होती है, जो इनकी आमदनी के लिए सहायक नहीं होती। ऐसी भूमि पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने के लिए सरकार मदद देगी जिससे किसान अतिरिक्त बिजली को बेच भी सकेंगे।

कोल्ड स्टोरेज समेत कृषि उत्पादों के भंडारण हेतु बजट में विशेष प्रावधान किए गए हैं। बजट में एक ओर तो ज्यादा भंडारगृह बनाने की योजना है। साथ ही भंडारगृहों को भंडारगृह विकास एवं नियामक प्राधिकरण के अंतर्गत लाने की योजना भी बनाई गई है। इस प्राधिकरण के अंतर्गत आने वाले भंडारगृह इलेक्ट्रॉनिक रसीद जारी करते हैं, जिसके आधार पर किसान बैंकों से कर्ज भी ले सकते हैं। बजट में यह भी प्रावधान किया गया है कि किसान अब भंडारगृह की रसीद के आधार पर कर्ज प्राप्त कर सकता है, प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर किसानों को ऋणग्रस्तता से राहत देने वाला यह बड़ा कदम माना जा सकता है।

इन उपायों के अतिरिक्त दुग्ध प्रसंस्करण की क्षमता को दोगुना कर 10.8 करोड़ मिटिक टन करना, 20 लाख किसानों को किसान सोलर वाटर पंप लगाने के लिए सब्सिडी देना और रासायनिक खादों के उपयोग को घटाने हेतु खाद की सब्सिडी स्कीम में बदलाव कर किसानों को सीधे सब्सिडी देना बड़े कदम हैं। इस बार कृषि ऋणों को 15 लाख करोड़ रुपए तक बढ़ा दिया गया है और साथ ही मत्स्य उत्पादन को 2022-23 तक 200 लाख टन तक बढ़ाने की महत्वाकांक्षी योजना बनी है। पहली बार कृषि उत्पादों को बर्बादी से बचाने के लिए रेलवे ने पूवरेत्तर

इलाके से ‘किसान रेल’ चलाने की भी योजना बनाई है।

गैर जरूरी आयातों पर अंकुश 

पूर्व की सरकारों के मुक्त व्यापार सिद्धांत से अभीभूत होने के कारण लगातार, ‘आसियान’ मुक्त व्यापार समझौता, जापान और दक्षिण कोरिया मुक्त व्यापार समझौते समेत कई मुक्त व्यापार समझौते किए गए। यही नहीं आयात शुल्कों को भी लगातार घटाया गया और तर्क यह दिया गया कि इससे हमारे उद्योग अधिक प्रतिस्पर्धी हो जाएंगे। लेकिन इसका असर यह हुआ कि देश में आयातों की बाढ़ आ गई और हमारा व्यापार घाटा पिछले दो दशकों में 30 गुणा से ज्यादा बढ़ गया।

हाल ही में आरसीइपी मुक्त व्यापार समझौते से बाहर आकर सरकार ने अपनी मंशा स्पष्ट की कि अब मुक्त व्यापार नहीं, बल्कि अपने उद्योगों के संरक्षण की नीति अपनाई जाएगी। बजट में मुक्त व्यापार समझौतों में रूल ऑफ ओरिजिन (उत्पत्ति का नियम) लागू कर चीन से आयातों पर अंकुश लगाने, फर्नीचर, खिलौनों, मेडिकल उपकरणों समेत बड़ी संख्या में उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाकर देश के उद्योगों को संरक्षण प्रदान करते हुए घरेलू उत्पादन और रोजगार बढ़ाने का काम किया गया है। वित्त मंत्री ने बजट में कहा है कि ‘मेक इन इंडिया’ में काफी प्रगति अभी तक हुई है। सरकार के इन कदमों से इसमें गति आएगी।

सही नहीं है शिक्षा में विदेशी निवेश 

बजट में वित्त मंत्री ने शिक्षा में विदेशी निवेश को अनुमति देने का प्रस्ताव रखा है। गौरतलब है कि लंबे समय से विदेशी विश्वविद्यालयों और शिक्षा संस्थानों को भारत में लाने की कवायद चल रही है। लेकिन उतनी ही तेजी से उसका विरोध भी हो रहा है। बजट में शिक्षा में विदेशी निवेश लाने के अलावा शिक्षण संस्थानों को विदेशी ऋण लेने की भी अनुमति दी गई है। कहा जा रहा है कि इस प्रावधान से अच्छी प्रतिभा वाले शिक्षकों को लाने और शिक्षा इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। लेकिन यह कोई स्वागत योग्य कदम नहीं है। आज जब देश में नई शिक्षा नीति लाकर शिक्षा के स्तर को बेहतर बनाने का प्रयास जारी है, ऐसे में विदेशी संस्थाओं को भारत लाने और विदेशी शिक्षा पद्धति भारत में लाने का फायदा नहीं नुकसान हो सकता है।

इस बात की कोई संभावना नहीं है कि नामी विश्वविद्यालय और शिक्षा संस्थान भारत आ जाएंगे। बल्कि इसकी पूरी आशंका है कि विदेशी शिक्षा की दुकानें जरूर खुल सकती हैं, जिससे हमारा विद्यार्थी शिक्षाग्रसित हो सकता है। यह तर्क कि विदेशी लोन लेना सस्ता पड़ता है और इससे शिक्षा हेतु इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित करना सस्ता और आसान हो जाएगा, बहुत पुराना है, लेकिन यह सही नहीं है। वास्तव में यदि देखा जाए तो जब रुपये का अवमूल्यन होता है तो उसमें विदेशी लोन की अदायगी का बोझ बढ़ जाता है और ऐसे में शिक्षा संस्थान उस बोझ को उठा पाने में सक्षम नहीं होंगे। इससे पहले भी भारतीय उद्योगों द्वारा व्यावसायिक विदेशी लोन लेने का नुकसान उठा चुके हैं।

बचत पर छूट खत्म करना सही नहीं 

वित्त मंत्री ने कहा है कि वैयक्तिक करदाताओं को एक विकल्प दिया जाएगा, जिसमें वे कम दर पर टैक्स देंगे, लेकिन शर्त यह होगी कि उन्हें बचत और अन्य प्रकार की छूटें छोड़नी पड़ेंगी। गौरतलब है कि अभी तक डेढ़ लाख रुपये तक की विभिन्न प्रकार की बचत और 50 हजार रुपये के नई पेंशन स्कीम में बचत पर आयकर में छूट मिलती थी। लेकिन यदि करदाता इस विकल्प को स्वीकार कर बचत करना बंद कर देता है तो स्वाभाविक रूप से देश में बचत घटेगी। उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ समय से देश में बचत और निवेश घटा है। सरकार के इस कदम से देश में बचत संस्कृति पर दुष्प्रभाव पड़ेगा, जो सही नहीं होगा।

पिछले कुछ समय से अर्थव्यवस्था में सुस्ती, जीडीपी के घटने के भयावह अनुमानों, बेरोजगारी, सरकारी राजस्व में लगातार आती कमी की स्थिति में यह कहा जा रहा था कि इस बार केंद्रीय बजट एक कठिन बजट होगा। लिहाजा अर्थव्यवस्था में स्पंदन लाने के लिए वित्त मंत्री ने इसके लगभग सभी हिस्सों को छुआ। निवेशकों को निवेश करने हेतु प्रोत्साहन की कमी, लोगों की ज्यादा आय सुनिश्चित करना, गांवों में रोजगार का सृजन, मेक इन इंडिया के तहत विनिर्माण क्षेत्र को समर्थन जैसी चुनौतियों को वित्त मंत्री ने बजट में शामिल किया

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं)