रोहित कौशिक। नदियों के किनारे अनेक सभ्यताएं विकसित हुई हैं। नदियां जहां एक ओर हमारी आस्था से जुड़ी हुई हैं, वहीं दूसरी ओर हमारी अनेक मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। समाज में बचपन से ही नदियों को सम्मान देने और साफ-सुथरा रखने की सीख दी जाती थी। यही कारण था कि नदियां हमारी संस्कृति और सभ्यता की पहचान का आधार बनीं। धीरे-धीरे समय बदला और विकास की चकाचौंध में अच्छी परंपराओं को भी तिलांजलि दे दी गई। विकास के नाम पर हुए औद्योगीकरण ने स्थिति को भयावह बना दिया और नदियां अपने अस्तित्व के लिए जूझने लगीं। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि स्थिति की भयावहता को देखते हुए हमारा ध्यान बड़ी नदियों पर ही केंद्रित रहा। छोटी नदियों को बचाने के लिए ना तो कोई बड़ा आंदोलन हुआ और ना ही सरकार ने छोटी नदियों के लिए कोई ठोस नीति बनाई। यही कारण है कि आज देश की अनेक छोटी नदियां या तो मर चुकी हैं या फिर मरने के कगार पर हैं।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश स्थित पूर्वी काली नदी पिछले कई वर्षो से अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही है। हालांकि अब ‘नीर फाउंडेशन’ नामक एक एनजीओ द्वारा काली नदी को पुनर्जीवित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।  ‘दैनिक जागरण’ और सरकार भी इस पहल में योगदान कर रही है। दैनिक जागरण इस पहल को समर्थन देकर जनता के बीच जागरूकता फैलाने का काम कर रहा है। इस प्रयास से काली नदी के उद्गम स्थल पर जलधारा पुन: निकलने लगी है। काली नदी को नया जीवन मिलने के बाद इस बात पर विचार-विमर्श किया जा रहा है कि इसमें कैसे साल भर पानी बहता रहे और इसमें औद्योगिक कचरा न फेंका जाए। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रत्येक जिले में एक समिति बनाने की जरूरत महसूस की जा रही है।

जलाशय से बना रहेगा जल स्तर 

जलस्तर बनाए रखने के लिए काली नदी के किनारे 12 जलाशय बनाए जाने की योजना है। यह काम शुरू हो गया है। जलाशयों में खेत और गांव के घरांे से निकलने वाले पानी को एकत्र किया जाएगा। इस पानी का शोधन करके नदी में पहुंचाने के लिए बड़ी संख्या में वाटर रिचार्ज पिट खोदे जाएंगे। एक जलाशल में 13 लाख लीटर पानी का भंडारण किए जाने की योजना है। इस तरह कुल 12 जलाशयों में काफी मात्र में पानी का भंडारण किया जाएगा। इससे नदी का जलस्तर बनाए रखने में काफी मदद मिलेगी। किसानों ने काली नदी को पुनर्जीवित करने के लिए करीब डेढ़ सौ बीघा जमीन खाली कर दी है।

इसके साथ ही नदी किनारे की जमीन कब्जा मुक्त कराने के प्रयास भी किए जा रहे हैं। इससे काफी जमीन सरकार के पास आ सकती है। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने अपने एक आदेश में काली नदी की जमीन खाली कराकर उसकी सीमाबंदी करने और सीमा पर पिलर गाड़ने के निर्देश दिए हैं। काली नदी को पुराने स्वरूप में लौटाने के लिए किसान और ग्रामीण भी लगातार श्रमदान कर रहे हैं। काली नदी के उद्गम स्थल को देखने के लिए लोग अंतवाड़ा गांव पहुंच रहे हैं। इस पहल के माध्यम से देश के विभिन्न हिस्सों में छोटी नदियों को बचाने के लिए अन्य लोगों को भी प्ररेणा लेनी चाहिए।

काली नाम से दो नदियां 

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ‘काली’ नाम की दो नदियां हैं। एक है पूर्वी काली नदी और दूसरी है पश्चिमी काली नदी। पूर्वी काली नदी का उद्गम उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जनपद के अंतवाड़ा गांव से होता है और यह मेरठ, गाजियाबाद, बुलंदशहर, अलीगढ़, एटा और फरूखाबाद होते हुए कन्नौज के निकट गंगा में मिल जाती है। कन्नौज में इस नदी का पानी काफी साफ है। इसके उद्गम स्थल पर इसे ‘नागिन’ और कन्नौज के आस-पास इस नदी को ‘कालिंदी’ नाम से भी जाना जाता है। आज प्रदूषण के कारण पूर्वी काली नदी की हालत दयनीय है।

पश्चिमी काली नदी : पश्चिमी काली नदी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जनपद में शिवालिक से 25 किमी दक्षिण से निकलकर सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत और मेरठ जनपद में बहती है। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि इन दोनों ही काली नदियों का प्रदूषित जल अंतत: गंगा में गिर रहा है। इसलिए गंगा भी प्रदूषित हो रही है।

गौरतलब है कि नमामि नंगे परियोजना के तहत गंगा को स्वच्छ करने का अभियान अभी चल रहा है। सवाल यह है कि छोटी नदियों को स्वच्छ किए बिना गंगा कैसे स्वच्छ हो पाएगी? करीब 30-35 वर्ष पहले पूर्वी काली नदी में स्वच्छ जल बहता था, लेकिन आज इसका प्रदूषित जल किसानों के लिए अभिशाप बन गया है। इस कारण पीने का पानी भी प्रदूषित हो गया है। फलस्वरूप ग्रामीणों को त्वचा और पेट संबंधी बीमारियों ने घेर लिया है।

केंद्रीय भू-जल बोर्ड की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि काली नदी के पानी में अत्यधिक मात्र में कॉपर, क्रोमियम, लोहा, जिंक एवं प्रतिबंधित कीटनाशक घुले हुए हैं। हालत यह है कि कुछ जगहों पर धरती के अंदर काफी गहराई तक भारी तत्व अधिक मात्र में पाए गए हैं। प्रदूषण की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि काली नदी के जल में पर्याप्त मात्र में ऑक्सीजन नहीं है। इसी कारण मछलियों एवं अन्य जलीय जीवों के जीवन पर मंडराता खतरा अंतत: उनके लिए मौत का सबब बन रहा है। फलस्वरूप इस नदी में जलीय जीवों के अस्तित्व की कोई संभावना दिखाई नहीं देती।

उत्तर प्रदेश की अन्य लुप्तप्राय नदियां 

फैजाबाद जिले में गोमती की सहायक नदियों में शामिल तिलोदकी, तमसा, मड़हा, बिसुही और कल्याणी विलुप्त होने के कगार पर हैं। इनमें से अधिकांश नदियां सूख चुकी हैं जिनमें महज बारिश के दिनों में ही पानी दिखता है। वेदों में उल्लिखित पवित्र कल्याणी नदी जो बाराबंकी जिले में बहती है, उसकी धारा भी सूख गई है। इनके अलावा सहारनपुर की पांवधोई नदी आज गंदे नाले के रूप में परिवर्तित हो चुकी है। आज जरूरत इन नदियों को बचाने की है।

आज देश की अधिकांश छोटी नदियां अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं। अनेक कारणों से ये नदियां लुप्तप्राय हो रही हैं। छोटी नदियों के समक्ष अस्तित्व का संकट पैदा होने के कारण बड़ी नदियों के लिए भी शुद्ध जल का स्रोत कम होता जा रहा है। देश के एक बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की ही बात करें तो यहां अनेक छोटी नदियां आज या तो नाले में परिवर्तित हो चुकी हैं या फिर उनके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। हमें इन नदियों को पुनर्जीवित करने पर ध्यान देना होगा

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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