[ डॉ. जयंतीलाल भंडारी ]: पिछले दिनों भारत और मॉरीशस के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता हुआ। इस समझौते के तहत भारत के कृषि, कपड़ा, इलेक्ट्रॉनिक्स और विभिन्न क्षेत्रों के 300 से अधिक घरेलू सामान को मॉरीशस में रियायती सीमा शुल्क पर बाजार में प्रवेश मिल सकेगा। साथ ही मॉरीशस की 615 वस्तुओं/उत्पादों के आयात पर भारत में शुल्क कम या नहीं लगेगा। इनमें फ्रोजन मछली, बीयर, मदिरा, साबुन, थैले, चिकित्सा एवं शल्य चिकित्सा उपकरण और परिधान शामिल हैं। भारत और मॉरीशस के बीच 2019-20 में 69 करोड़ डॉलर का व्यापार हुआ। भारत का निर्यात अधिक था। इससे एक साल पहले 2018-19 में व्यापार 1.2 अरब डॉलर का था। इस समय भारत दुनिया के ऐसे देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) तेजी से अंतिम रूप देते हुए दिखाई दे रहा है, जिन्हेंं भारत के बड़े बाजार की जरूरत है और जो देश बदले में भारत के विशेष उत्पादों के लिए अपने बाजार के दरवाजे भी खोलने के लिए उत्सुक हैं।

कोरोना काल ने एफटीए को लेकर केंद्र सरकार की बदल दी सोच

इसमें कोई दो मत नहींं कि कोरोना काल ने एफटीए को लेकर केंद्र सरकार की सोच बदल दी है। भारत सरकार बदले वैश्विक माहौल में अमेरिका, यूरोपीय संघ (ईयू) और ब्रिटेन सहित कुछ और विकसित देशों के साथ सीमित दायरे वाले व्यापार समझौते करना चाह रही है। यह महत्वपूर्ण है कि मोटे तौर पर भारत और अमेरिका के बीच कारोबार के सभी विवादास्पद बिंदुओं का समाधान कर लिया गया है। भारत ने अमेरिका से जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रिफरेंसेज (जीएसपी) के तहत कुछ निश्चित घरेलू उत्पादों को निर्यात लाभ फिर से देने की शुरुआत करने और कृषि, वाहन, वाहन पुर्जों तथा इंजीनियरिंग क्षेत्र के अपने उत्पादों के लिए बड़ी बाजार पहुंच देने की मांग की है। दूसरी ओर अमेरिका भारत से अपने कृषि और विनिर्माण उत्पादों, डेयरी उत्पादों और चिकित्सा उपकरणों के लिए बड़े बाजार की पहुंच, डाटा का स्थानीयकरण और कुछ सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी उत्पादों पर आयात शुल्कों में कटौती चाहता है। यद्यपि ईयू और ब्रिटेन सहित कुछ और देशों के साथ सीमित दायरे वाले एफटीए के लिए चर्चाएं संतोषजनक रूप में हैं, लेकिन कुछ चुनौतियां भी बनी हुई हैं। हाल में ईयू और चीन ने नए निवेश समझौते को अंतिम रूप दिया है। इसका असर भारत और ईयू के बीच व्यापार और निवेश समझौते को लेकर आगे बढ़ रही बातचीत पर भी पड़ सकता है। ऐसे में यूरोपीय कंपनियों के समक्ष भारत को बेहतर प्रस्ताव रखना होगा। चूंकि ब्रिटेन ईयू के दायरे से बाहर हो गया है, ऐसे में ब्रिटेन के साथ भी भारत को उपयुक्त एफटीए के लिए अधिक प्रयास करने होंगे।

सीमित दायरे वाले व्यापार समझौते बेहतर हैं

सीमित दायरे वाले व्यापार समझौते के पीछे वजह यह है कि ये मुक्त व्यापार समझौते की तरह बाध्यकारी नहीं होते हैं यानी अगर बाद में किसी खास कारोबारी मुद्दे पर कोई समस्या होती है तो उसे दूर करने का विकल्प खुला होता है। भारत ने पूर्व में जिन देशों के साथ एफटीए किए हैं, उनके अनुभव को देखते हुए इस समय सीमित दायरे वाले व्यापार समझौते ही बेहतर हैं। वस्तुत: विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के तहत विश्व व्यापार वार्ताओं में जितनी उलझनें खड़ी हो रही हैं, उतनी ही तेजी से विभिन्न देशों के बीच एफटीए बढ़ते जा रहे हैं। यह एक अच्छी बात है कि डब्ल्यूटीओ कुछ शर्तों के साथ सीमित दायरे वाले एफटीए की इजाजत भी देता है। एफटीए ऐसे समझौते हैं, जिनमें दो या दो से ज्यादा देश आपसी व्यापार में कस्टम और अन्य शुल्क संबंधी प्रविधानों में एक-दूसरे को तरजीह देने पर सहमत होते हैं। दुनिया में इस समय लगभग 250 से ज्यादा एफटीए हो चुके हैं।

भारत सीमित दायरे वाले एफटीए के अलावा प्रमुख मित्र देशों के साथ समझौतों को अंतिम रूप दे रहा

भारत सीमित दायरे वाले एफटीए के साथ-साथ प्रमुख मित्र देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौतों को भी अंतिम रूप दे रहा है। विभिन्न आसियान देशों के साथ भारत के द्विपक्षीय व्यापार समझौतों की संभावनाएं तेजी से आगे बढ़ रही हैं। पिछले वर्ष 21 दिसंबर को भारत और वियतनाम के बीच वर्चुअल शिखर सम्मेलन के दौरान रक्षा, पेट्रो रसायन और न्यूक्लियर ऊर्जा समेत सात अहम समझौते हुए। साथ ही भारत की मदद से तैयार सात विकास परियोजनाएं वियतनाम की जनता को सर्मिपत की गईं। इस सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने वियतनाम को भारत की एक्ट ईस्ट नीति की एक अहम कड़ी बताया। वियतनाम के साथ भारत के इन नए द्विपक्षीय समझौतों की अहमियत इसलिए भी है, क्योंकि दुनिया के सबसे बड़े ट्रेड समझौते रीजनल कांप्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसेप) में भारत शामिल नहीं हुआ। भारत ने यह रणनीति बनाई है कि वह आसियान देशों के साथ मित्रतापूर्ण संबंधों के कारण द्विपक्षीय समझौतों की नीति पर तेजी से आगे बढ़ेगा।

आसियान सहित कई देश भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापारिक समझौतों में अपना आर्थिक लाभ देख रहे

उल्लेखनीय है कि आसियान सहित दुनिया के कई देश भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापारिक समझौतों में अपना आर्थिक लाभ देख रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में भारत ने र्आिथक मोर्चे पर भारी कामयाबी हासिल की है। कोविड-19 की चुनौतियों का सफलतापूर्वक मुकाबला करते हुए भारत वर्ष 2021-22 में दुनिया में सबसे अधिक विकास दर वाले देश के रूप में चिन्हित किया गया है। आसियान देशों के लिए कुछ ऐसे क्षेत्रों में निवेश करने के लिए अच्छे मौके हैं, जिनमें भारत ने काफी उन्नति की है। ये क्षेत्र हैं-डिजिटलीकरण, ई-कॉमर्स, सूचना प्रौद्योगिकी, बायोटेक्नोलॉजी, फार्मास्युटिकल्स, पर्यटन और आधारभूत क्षेत्र। कोविड-19 के बीच भारत के प्रति बढ़ा हुआ वैश्विक विश्वास, आधुनिक तकनीक, बढ़ते घरेलू बाजार, व्यापक मानव संसाधन, वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्र में दक्षता भारत को आर्थिक ऊंचाई दे रही हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि अब भारत मॉरीशस की तरह दुनिया के विभिन्न देशों के साथ नए सीमित दायरे वाले मुक्त व्यापार समझौतों की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगा। ऐसी विदेश व्यापार रणनीति से भारत के विदेश-व्यापार में नए अध्याय जोड़े जा सकेंगे।

( लेखक अर्थशास्त्री हैं )