भोपाल [संजय मिश्र]। कोरोना संकट के बीच मध्य प्रदेश में नया सियासी घमासान होता दिख रहा है। 19 जून को तीन सीटों के लिए होने जा रहे राज्यसभा चुनाव के जरिये यहां की प्रमुख राजनीतिक पार्टियां भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस अपने अपने प्रत्याशियों की जीत सुनिश्चित करने में जुट गई हैं।

दोनों दलों के नेता जोड़-तोड़ में लगे हैं। चुनाव में जीत-हार का फार्मूला लगभग तय है, लेकिन दोनों दल इसे आसानी से लागू नहीं होने देना चाहते। यही कारण है कि विधायकों की खेमेबंदी शुरू हो गई है। सबसे अधिक चिंता कांग्रेस के भीतर है, जिसने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और फूलसिंह बरैया को मैदान में उतारा है। भाजपा ने भी दो ही उम्मीदवार उतारे हैं, लेकिन सत्ता में होने की वजह से उसका अंकगणित फिलहाल मजबूत हो गया है।

सपा-बसपा के साथ वे कई निर्दलीय विधायक भी उसके साथ आ चुके हैं, जो लगभग तीन माह पूर्व सत्ताच्युत हुई कांग्रेस सरकार को समर्थन दे रहे थे। माना जा रहा है कि कांग्रेस को एक ही सीट पर जीत मिलेगी, लेकिन वह अंतिम समय तक दूसरी सीट के लिए भी जोर आजमाइश कर चुनावी रोमांच बढ़ाए रखना चाहती है।

उसका जोर राज्यसभा चुनाव के नतीजे को लेकर राजनीतिक नारे गढ़ने पर भी रहेगा, ताकि सूबे की 24 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए माहौल बनाया जा सके। दरअसल जब राज्यसभा चुनाव का कार्यक्रम घोषित हुआ था तब प्रदेश में कमल नाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी। उसे गुमान था कि समीकरणों को साधकर वह तीन सीटों में से दो पर अपने उम्मीदवारों को विजय दिला देगी।

सत्ताबल के कारण ही कांग्रेस के भीतर प्रत्याशियों को लेकर जोड़-तोड़ शुरू हुई थी। चर्चा थी कि लोकसभा चुनाव हार चुके ज्योतिरादित्य सिंधिया भी कांग्रेस उम्मीदवार बनना चाहते थे, जबकि दिग्विजय सिंह की मजबूत दावेदारी थी। कांग्रेस संगठन, सरकार और टिकट की यह रार इस कदर बढ़ी कि सिंधिया ने नाराज होकर कांग्रेस को अलविदा कह दिया। उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया। सिंधिया समर्थक 22 विधायकों ने भी कांग्रेस का साथ छोड़ दिया, जिससे कमल नाथ की सरकार भरभराकर ढह गई।

इसके साथ ही सत्ता और राज्यसभा चुनाव, दोनों के समीकरण बदल गए। भाजपा ने बिना देर किए सिंधिया को अपना उम्मीदवार बना दिया। इस तरह शुरुआती दौर में किसी तरह एक सीट तक सिमटती दिख रही भाजपा दो सीटें जीतने की स्थिति में आ गई, जबकि कांग्रेस के खाते में महज एक सीट ही आती दिख रही है। इसके लिए भी उसे विधायकों की रखवाली करनी पड़ रही है।

वह एक सीट भी दिग्विजय सिंह और फूल सिंह बरैया में से किसकी होगी, यह तय होना बाकी है। इसके लिए कांग्रेस के अंदर भी जोड़-तोड़ तेज है। गुटों में बंटी कांग्रेस के कई नेता दिग्विजय को घेरने में लगे हैं। उनका तर्क है कि विधानसभा उपचुनाव को देखते हुए दिग्विजय को पार्टी हित में अनुसूचित जाति के बरैया का समर्थन करना चाहिए।

हालांकि बरैया ने कांग्रेस सरकार गिरने के बाद ही यह कहकर दिग्विजय के लिए मैदान छोड़ने का संकेत दिया था कि वह वरिष्ठ नेता हैं, उन्हें राज्यसभा में जाना चाहिए। इसके बावजूद पार्टी में दिग्विजय के खिलाफ झंडा उठाने वाले दबाव बनाए हुए हैं। यही कारण है कि 17 जून को राज्य के प्रभारी कांग्रेस महासचिव मुकुल वासनिक भोपाल आने वाले हैं।

वह वरिष्ठ नेताओं और विधायकों से चर्चा करके यह तय करेंगे कि पहली वरीयता में किसे रखना है। फिलहाल दिग्विजय का ही पलड़ा भारी दिख रहा है। दलीय स्थिति पर नजर डालें तो 230 सदस्यीय विधानसभा में 22 विधायकों के इस्तीफे और दो विधायकों का निधन होने की वजह से 24 सीटें रिक्त हैं। इस तरह 206 विधायक ही राज्यसभा के तीन सदस्यों का चुनाव करेंगे। इनमें से भाजपा के पास 107 विधायक हैं, जबकि कांग्रेस के पास 92 विधायक हैं। निर्दलीय चार, समाजवादी पार्टी का एक और बहुजन समाज पार्टी के दो विधायक हैं।

प्रथम वरीयता के मतों के आधार पर जीत-हार का फैसला होना है। मौजूदा परिस्थिति में दो सीटें भाजपा के पाले में साफ जाती नजर आ रही हैं। दरअसल एक सीट जीतने के लिए प्रथम वरीयता में 52 मतों की जरूरत है, जो भाजपा के पास अपने बलबूते मौजूद है। कांग्रेस का दूसरा उम्मीदवार तभी जीत सकता है, जब उसे चारों निर्दलीय, दो बसपा और एक सपा विधायक के साथ पांच भाजपा विधायकों के मत मिलें, जो फिलहाल तो दूर की कौड़ी ही नजर आता है।

हालांकि सत्ता में होने के बाद भी भाजपा सतर्क है। एक एक विधायक से सीधा संपर्क बनाए हुए है, क्योंकि मामला सिर्फ एक सीट जीतने का ही नहीं है। यदि थोड़ी भी गफलत हुई तो राज्यसभा चुनाव के बाद राज्य की

राजनीति बदल सकती है। भाजपा के प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया और सुमेर सिंह सोलंकी का राज्यसभा चुनकर जाना तय माना जा रहा है।

चुनाव के दौरान सिंधिया की मौजूदगी को लेकर संशय की स्थिति है। दरअसल वह नौ जून को नई दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती हुए थे। कोरोना जांच की उनकी दूसरी रिपोर्ट निगेटिव आई है। वह दो-तीन दिन में घर भी चले जाएंगे, लेकिन नियमानुसार उन्हें भी 14 दिन होम क्वारंटाइन रहना पड़ेगा। (स्थानीय संपादक, नवदुनिया, भोपाल)