नेपाल के प्रधानमंत्री केपीएस ओली अपने छह दिवसीय भारत यात्रा के ठीक एक महीने बाद दूसरे महत्वपूर्ण पड़ोसी राष्ट्र चीन की यात्रा पर पहुंच गए हैं। नेपाली प्रधानमंत्री ओली की यह यात्रा कई कारणों से अत्यंत महत्वपूर्ण है। जहां एक ओर प्रधानमंत्री ओली के भारत यात्रा का मुख्य उद्देश्य दिल्ली-काठमांडू के बीच उपजे मतभेदों को कम करना था, वहीं उनके चीनी दौरे से काठमांडू के राजनैतिक हलके में बड़ी अपेक्षाएं हैं। नेपाल की वर्तमान सरकार चीन यात्रा के प्रति बड़ी उत्साहित और ऊर्जावान दिख रही है। उसे उम्मीद है कि चीन यात्रा से नेपाल को भारत पर निर्भरता खत्म करने मेें मदद मिल सकती है। इस संदर्भ में चीन तिब्बत के रास्ते नेपाल तक आवागमन की सुविधा के लिए रेलमार्ग का विकास करेगा। यह निश्चित ही भारत के लिए परेशानी खड़ी करने वाली बात है, क्योंकि भारत और नेपाल के बीच सदियों से प्रगाढ़ रिश्ता है। चीन यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ओली लगभग पचास सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल जिसमें कई मंत्री, अधिकारी और प्रमुख व्यवसायी शामिल होंगे के साथ आधिकारिक मीटिंग और कई अन्य कार्यक्रमों में शिरकत की योजना है। गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रही, सीपीएम-यूएमएल ने ओली को कई प्रमुख मसलों पर समझौता करने की सलाह दी है। नेपाल के उप-प्रधानमंत्री कमल थापा, जो विदेश मंत्री भी हैं ने मीडिया को संबोधित करते हुए बताया कि प्रधानमंत्री ओली की चीन यात्रा के दौरान कई महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर होने की संभावना है। कम से कम छह मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) पर सहमति के आसार हैं। इनमें पारगमन और परिवहन समझौता, ईंधन के आयात संबंधी समझौता, द्विपक्षीय ट्रेडमार्क पंजीकरण और सुरक्षा समझौता, मुक्त व्यापार समझौता, नेपाल में चीनी बैंक की शाखा खोलने संबंधी समझौता, चीन के सिचुआन प्रांत की राजधानी चेंगदू में नेपाल का वाणिज्य दूतावास खोलना आदि शामिल है।

नेपाल के विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, नेपाली पक्ष चीन के साथ पारगमन और परिवहन समझौते को लेकर बहुत आशावान है। इसके तहत नेपाल दोनों देशों की सरकारों और दोनों देशों के व्यापारियों के बीच करार करना चाहता है जिससे चीन के बंदरगाहों का प्रयोग करने के साथ साथ पेट्रोलियम पदार्थों का आयात किया जा सके। ऐसी उम्मीद है कि इस समझौते के बाद नेपाल के निजी क्षेत्र चीन से ईंधन का आयात कर सकेंगे। आर्थिक और भौगोलिक कारणों से वास्तविक धरातल पर यह कितना सफल होगा, यह आने वाला समय बताएगा, लेकिन इतना अवश्य है कि फिलहाल नेपाल चीन को नए साथी के रूप में देख रहा है और उसे उम्मीद है कि उसका यह रिश्ता भारत पर अत्यधिक निर्भरता को खत्म करने में सहायक बनेगा। अतीत में ऐसे प्रयासों को मनचाही सफलता नहीं मिली है। इसके अलावा नेपाल सरकार कम से कम तीन स्थानों पर पेट्रोलियम

भंडारण के निर्माण में चीन से आर्थिक मदद की उम्मीद कर रहा है।

प्रधानमंत्री ओली के एजेंडा में शामिल अन्य प्रमुख मुद्दों में बूढ़ी गंडकी (1200 मेगावाट), किमथनका-अरुण (400 मेगावाट), और सनकोशी तृतीय (585 मेगावाट), जलविद्युत परियोजनाओं के लिए चीनी अनुदान और सॉफ्टलोन, पोखरा में एक क्षेत्रीय हवाई अड्डे के निर्माण के लिए ऋण समझौते में तेजी लाना, बीजिंग में नेपाली सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना, कोडारी राजमार्ग का उन्नयन और विस्तार, काठमांडू-केरुंग राजमार्ग, काठमांडू-पोखरा रेल सुविधा और काठमांडू में मोनो रेल की संभावना का अध्ययन मुख्य रूप से शामिल है। प्रधानमंत्री ओली चीन सरकार के साथ द्विपक्षीय वार्ता के बाद, चीन के हैनान प्रांत में बोओ फोरम में शिरकत करेंगे, जहां उनके कई देशों के नेताओं, व्यवसाइयों और प्रतिनिधियों से मिलने की संभावना है। अपने यात्रा के अंतिम पड़ाव, चेंगदू में नेपाल के वाणिज्य दूतावास का उद्घाटन कर ओली तिब्बत के रास्ते काठमांडू वापस आएंगे।

समय-समय पर नेपाली नेतृत्व ने भौगोलिक यथार्थ को झुठलाने का असफल प्रयास किया है।

यह जानते हुए भी कि चीन नेपाल के लिए भारत का विकल्प नहीं हो सकता, ओली का चीनी प्रेम किसी से छिपा नहीं है। ओली ने प्रधानमंत्री पद संभालने के तुरंत बाद नेपाल की आतंरिक राजनैतिक परिस्थियों के लिए भारत पर आरोप लगाया और चीन के बढ़ते प्रभाव के बारे में भारत की आशंकाओं का पुरजोर फायदा उठाया। यहां तक कि ओली ने भारत से पहले चीन का दौरा करने की संभावनाओं को तलाशा। नेपाल के नए संविधान से उपजी राजनैतिक समस्या ने गंभीर रूप ले लिया और जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव न केवल दिल्ली-काठमांडू के रिश्तों पर पड़ा, वरन आवश्यक वस्तुओं (ईंधन, जीवनरक्षक दवाइयां इत्यादि) की किल्लत ने मानवीय संकट की स्थिति उत्पन्न कर दी।

बीजिंग की नेपाल नीति मुख्य रूप से काठमांडू की तटस्थता पर केंद्रित है जिसके तहत चीन का प्रयास है कि राजनैतिक, आर्थिक और सुरक्षा मामलों में नेपाल की भारत पर निर्भरता कम हो। आज के परिदृश्य में, चीन के नेपाल नीति के दो मुख्य ध्येय हैं- नेपाल में रह रहे तिब्बती समुदाय के लोगों की चीन विरोधी गतिविधियों को कुचलना और नेपाल में चीन के आर्थिक, राजनैतिक और सामरिक प्रभाव को बढ़ाना। पिछले कुछ सालों में चीन ने नेपाल में अपने निवेश को बढ़ाया है और दोनों देशों के बीच आवाजाही में बढ़ोतरी और रिश्तों में गर्माहट आई है। नेपाल में चीन का बढ़ता प्रभाव सड़क, रेलमार्ग, बड़ी जलविद्युत परियोजनाएं, हवाई अड्डे, और तीर्थस्थानों आदि में पर्याप्त आर्थिक मदद और निवेश के अतिरिक्त तेजी से बढ़ते चीनी पर्यटकों से परिलक्षित होता है।

ध्यान देने वाली बात यह है कि नेपाल के प्रति चीन के दृष्टिकोण में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन आया है। नेपाल ने पहले भी चीन से ईंधन आपूर्ति के लिए संपर्क किया था, किंतु चीन विनम्रता से नेपाल कोई धन भेजने के लिए अपनी असमर्थता व्यक्त की थी, जबकि मौजूदा समस्या के समय चीन द्वारा नेपाल कोई धन की आपूर्ति का स्वैच्छिक प्रस्ताव एक बदलाव का संकेत है और नेपाल में बीजिंग के बढ़ते हितों को दर्शाता है।

प्रधानमंत्री ओली के चीन यात्रा से उम्मीद की जानी चाहिए कि दोनों देशों केबीच संबंध मजबूत होंगे, लेकिन साथ ही नेपाली नेतृत्व को ये भी स्वीकार करना होगा कि नेपाल की आतंरिक राजनैतिक समस्याओं का समाधान विकास के नए रास्ते खोलेगी। अगर एजेंडा में शामिल मुद्दों पर सहमति बनती है, तो ये स्वागतयोग्य कदम है। अंतत: काठमांडू को यह भी समझना होगा कि नेपाल के बहुमुखी विकास के लिए उसे भारत और चीन दोनों कीजरूरत होगी। चीन को भारत के विकल्प के रूप में देखना अव्यावहारिक और अदूरदर्शी कदम होगा।

[ लेखक राजीव रंजन चतुर्वेदी, इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एशियन स्टडीज, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर में रिसर्च एसोसिएट हैं ]