अभिषेक रंजन। NEET, JEE Main Exam 2020 कोरोना महामारी को भारत आए करीब सात माह हो चुके हैं। मार्च में लॉकडाउन लगने के बाद से अभी तक का सफर देखें, तो शुरू में जहां इस बीमारी से लड़ने की तैयारी में केवल एक ही रास्ता दिख रहा था कि जहां तक हो सके घर में ही रहा जाए, वहीं अब इस विचार में बदलाव आ रहा है। इस बीमारी से बचाव के लिए समय रहते लिए गए सही फैसलों के कारण इसकी भयावहता को काफी हद तक नियंत्रित कर लिया गया है।

फिलहाल इसकी रिकवरी दर 75 प्रतिशत से अधिक है और मृत्युदर के मामले में भारत विश्व के अन्य देशों की तुलना में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। परंतु कोरोना पर पूर्ण नियंत्रण निकट भविष्य में संभव दिख नहीं रहा है। लिहाजा समाज और सरकार के स्तर पर यह समझा जाने लगा है कि कोरोना से मुक्त होने के बजाय कोरोना के साथ जीवन की आदत डालनी होगी।

सरकार भी यह बात समझती है और सावधानीपूर्वक किए जा रहे अनलॉक की प्रक्रिया इस बात का सुबूत है कि सरकार सबकुछ सही तरीके से चलाने की दिशा में अग्रसर है और अब हमारा जीवन पटरी पर लौटने लगा है। इसी क्रम में शिक्षा मंत्रलय ने देशभर के छात्रों को और अधिक संशय में न रखकर नीट (मेडिकल) और जेईई (इंजीनियरिंग) का आयोजन करने का निर्णय लिया है। जेईई के लिए एक से छह सितंबर और नीट के लिए 13 सितंबर की तिथि सुनिश्चित की गई है। स्कूल के बाद प्रोफेशनल कोर्स में नामांकन के लिए ये दोनों देश की सबसे बड़ी प्रवेश परीक्षाएं हैं। इन दोनों ही प्रवेश परीक्षाओं में शामिल होने के लिए लगभग 25 लाख छात्रों ने आवेदन किया है।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि परीक्षा आयोजित करवाने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा, कोरोना का खतरा भी हो सकता है, परंतु सावधानी रखने पर इन खतरों से आसानी से निपटा जा सकता है। इस बात को ध्यान में रखकर सरकार भी तैयारी कर रही है और बकौल शिक्षा मंत्रलय छात्रों की सुरक्षा उनकी पहली प्राथमिकता होगी। परीक्षा देने के लिए छात्रों को बहुत दूर नहीं जाना पड़े और यात्र के दौरान होने वाले संक्रमण की आशंका को न्यूनतम करने के लिए 99 प्रतिशत से अधिक छात्रों को उनका पसंदीदा सेंटर दिया गया है। इसके अतिरिक्त परीक्षा केंद्रों पर भी शारीरिक दूरी के नियमों का पालन कराने की पूरी तैयारी की गई है।

इस बीच इस परीक्षा का आयोजन फिलहाल स्थगित करने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन भी शुरू हो गया है। भाजपा से इतर दलों के कई मुख्यमंत्रियों ने बैठक बुलाकर परीक्षा की तिथि आगे बढ़ाए जाने की सरकार से मांग की है। इस संबंध में उच्चतम न्यायालय में याचिका भी दायर की गई, लेकिन न्यायालय ने परीक्षा स्थगित करने की अर्जी को खारिज कर दिया है। संबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश ने कहा कि क्या देश में सबकुछ रोक दिया जाए? न्यायालय ने पूछा कि क्या बच्चों का एक कीमती साल बर्बाद कर दिया जाए? सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सही है कि परिस्थितियां कठिन हैं, लेकिन क्या इससे छात्रों का पूरा एक वर्ष बर्बाद नहीं होगा?

हमें यह समझना होगा कि बच्चों के भविष्य को और अधिक अंधकार में नहीं रखा जा सकता है। खासकर मेडिकल की बात करें तो इसमें प्रवेश प्रक्रिया लंबी होती है और यदि नीट में और अधिक विलंब हुआ तो प्रवेश प्रक्रिया लगभग एक साल के लिए विलंबित हो सकती है। ऐसे में देशभर में कॉलेज और उसमें सीटों की संख्या तो उतनी ही रहेगी, लेकिन अभ्यर्थियों की संख्या दोगुनी हो जाएगी, जिससे काफी अराजक स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

सरकारी आंकड़ों की मानें तो लगभग 12 लाख छात्र अभ्यास एप से ऑनलाइन तैयारी कर रहे हैं। लाखों की संख्या में अभिभावकों ने शिक्षा मंत्रलय को पत्र लिख कर परीक्षा आयोजित करने की मांग की है। शुक्रवार तक 90 प्रतिशत से अधिक छात्रों ने अपना प्रवेश पत्र डाउनलोड कर लिया है। परीक्षा में विलंब केवल छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं होगा, बल्कि उनकी मानसिक स्थिति को भी प्रभावित कर सकता है।

परीक्षा के प्रखर विरोधी वामपंथी छात्र संगठन, जो अभी तो विरोध कर रहे हैं, लेकिन उनके विचारधारा की इकलौती सरकार ने केरल में दो माह पहले ही केईएएम यानी केरल इंजीनियरिंग आíकटेक्चर मेडिकल की परीक्षा आयोजित की थी, जिसमें लगभग 88 हजार छात्र शामिल हुए थे, उसका उन्होंने कोई विरोध नहीं किया। हालांकि उस परीक्षा के बाद कुछ छात्रों को कोरोना ने जरूर संक्रमित किया, लेकिन अब सभी ठीक हो चुके हैं।

भारत दुनिया का इकलौता देश नहीं है जो इस कोरोना की बीमारी से जूझ रहा है। पूरी दुनिया में शिक्षा व्यवस्था धीरे धीरे पटरी पर आ रही है। तमाम विकसित देशों में नया शैक्षणिक सत्र शुरू हो रहा है। वहां के छात्र अपने शिक्षा क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं। ऐसे में अगर हम अपने छात्रों के भविष्य की चिंता न करते हुए उनका सत्र विलंबित करते हैं, तो वैश्विक स्तर पर हम पिछड़ जाएंगे। नीट और जेईई में विलंब से शिक्षा जगत की दोनों प्रमुख विधाओं मेडिकल और इंजीनियरिंग पर काफी असर पड़ेगा और अगर अगले वर्ष यदि सीट की संख्या कुछ बढ़ा भी लेते हैं, तो उनके लिए उचित साधन की व्यवस्था करना अत्यधिक मुश्किल होगा।

लिहाजा भविष्य में होने वाली अनेक परेशानियों का सामना करने से बेहतर है कि वर्तमान की एक समस्या का सामना सावधानीपूर्वक कर लिया जाए और विपक्ष के नेतृत्व वाली तमाम राज्य सरकारें इस मुद्दे पर राजनीति न करते हुए बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए इसमें सहयोग दें तथा परीक्षा के दिन बच्चों को परीक्षा स्थल तक पहुंचाने के लिए परिवहन और कोरोना से बचाव के लिए जरूरी व्यवस्था पर ध्यान दें तो यह देशहित और छात्रहित दोनों में होगा।

[अध्येता, दिल्ली विश्वविद्यालय]