[राहुल लाल]। Coronavirus: अमेरिका सहित तमाम विकसित देशों के पास ऐसे परमाणु हथियार हैं जो धरती को तबाह करने के लिए पर्याप्त हैं। आज के परमाणु बम वर्ष 1945 में हिरोशिमा पर गिराए गए बमों से 300 गुना अधिक शक्तिशाली हैं। हिरोशिमा पर गिराए गए बम से आज के बमों की तुलना इसलिए, क्योंकि उसके नुकसान को हम देख-समझ चुके हैं। इसके बावजूद विकसित देश लगातार अपने परमाणु हथियारों के आधुनिकीकरण में जुटे हैं। लेकिन कोविड-19 ने विकसित देशों के स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी है।

अमेरिका में अब तक इस बीमारी से दस लाख से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं और 50 हजार से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। स्थिति की गंभीरता को इससे ही समझा जा सकता है कि अमेरिका के सभी 50 राज्यों ने पहली बार आपदा घोषित की है।

बुनियादी मेडिकल उपकरणों की कमी तथा डब्ल्यू-93 मिसाइल का विकास : कुछ दिनों पहले वाशिंगटन में वर्ष 2021 के लिए अमेरिकी रक्षा विभाग के लिए 705 अरब डॉलर का रिकॉर्ड बजट घोषित हुआ तो दुनिया के सामरिक क्षेत्र में परमाणु हथियारों के आधुनिकीकरण की नई होड़ प्रारंभ हो गई। इस बजट में दो नए परमाणु हथियार और दो नई मिसाइलों के विकास के लिए 19.8 अरब डॉलर का प्रावधान किया गया। इनमें एक है-डब्ल्यू 93 मिसाइल, जिसकी खासियतों को फिलहाल अमेरिका ने सार्वजनिक नहीं किया है। वहीं एक और परमाणु मिसाइल डब्ल्यू-87 का विकास भी होगा, जो कि वास्तव में जमीन से छोड़ी जाने वाली मिसाइलों पर तैनात करने योग्य 40 साल पुराने थर्मोन्यूक्लियर हथियार का नया डिजाइन होगा। इन हथियारों से अमेरिका के परमाणु ताकत में भारी वृद्धि हो जाएगी। लेकिन उसी अमेरिका में जैसे-जैसे कोरोना वायरस का प्रकोप बढ़ा, वैसे-वैसे देश के हर कोने से डॉक्टरों और अस्पतालों के पीपीई किट्स और वेंटिलेटर्स की भारी कमी उजागर हुई। यह इस तथ्य को दर्शाता है कि अमेरिकी नीति निर्माताओं की प्राथमिकता में बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं नहीं थीं।

डब्ल्यू-93 मिसाइल और डब्ल्यू 87 मिसाइल के विकास से यह संकेत मिल रहा है कि अमेरिका अपनी सुरक्षा को एक बार फिर परमाणु हथियारों पर केंद्रित करने जा रहा है। अमेरिका को महान बनाने के लिए ट्रंप के इन प्रयासों ने संपूर्ण दुनिया में परमाणु हथियारों की होड़ पुन: प्रारंभ कर दी है। लेकिन उसी अमेरिका में महामारी प्रभावित इलाकों में जरूरी स्वास्थ्य उपकरणों की कमी से चिकित्सक एवं स्वास्थ्यकर्मी भी कोविड-19 की चपेट में आ रहे हैं। पर्याप्त मेडिकल संसाधन नहीं उपलब्ध होने की वजह से कई अस्पतालों में स्वास्थ्य कर्मियों को अपनी हिफाजत के लिए इस्तेमाल हो चुके सामानों को फिर से प्रयोग करना पड़ रहा है। वेंटिलेटर्स की कमी के कारण अमेरिकी राज्य आपस में ही प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।

अमेरिकी स्वास्थ्य ढांचे की कमजोरी : ओबामा केयर बिल पारित होने के 10 वर्ष बाद आज भी अमेरिका में 8.5 प्रतिशत आबादी को कोई स्वास्थ्य बीमा कवरेज हासिल नहीं है। दरअसल वहां की पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था सरकारी एवं निजी बीमा कंपनियों और निजी अस्पतालों का मिश्रण है। 37.7 फीसद अमेरिकी नागरिकों

के पास सरकारी बीमा कवरेज है। बुजुर्गों के अस्पतालों को छोड़कर सभी स्वास्थ्य प्रदाता निजी हैं। अमेरिका उन 33 विकसित देशों में से केवल एकमात्र देश है जिसके पास सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल सुविधा नहीं है। कई अमेरिकी नागरिकों को बीमा प्रीमियम भुगतान के लिए भी काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। एक रिपोर्ट बताती है कि अत्यधिक मेडिकल खर्च के कारण अमेरिका में लगभग बीस लाख लोग दिवालिया हो चुके हैं।

अमेरिकी राज्यों के स्वास्थ्य बजट में निरंतर गिरावट : वर्ष 2008 की आर्थिक मंदी के दौरान अमेरिकी संघीय सरकार तथा राज्य सरकारों के लिए कठिन परिस्थितियां सामने आई थीं जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य के बजट में भारी कटौती की गई, परंतु बाद में अर्थव्यवस्था के बेहतर होने पर भी सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र के बजट में सुधार नहीं हुआ। इस बीच अमेरिका ने एच1एन1, इबोला जैसी गंभीर समस्याओं को भी देखा। सार्वजनिक स्वास्थ्य के बजट में कटौती रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स दोनों प्रकार के शासित राज्यों में देखा जा सकता है। अमेरिका के न्यूजर्सी, मैसाच्युसेट्स, मिशिगन, पेंसिल्वेनिया और कैलिफोर्निया आदि राज्यों में इसे प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है। अमेरिका में फेडरल सेंटर ऑफ डिजीज कंट्रोल जो पब्लिक हेल्थ की कोर एजेंसी है, उसके बजट में 2010 से 2019 के बीच 10 प्रतिशत की कमी स्पष्ट तौर पर देखी जा सकती है।

अमेरिका में 2008 से 2017 के बीच राज्यों तथा स्थानीय स्वास्थ्य विभाग में लगभग 55 हजार रोजगार समाप्त हो गए। इस तरह स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या में लगभग 25 फीसद की कमी आई। ध्यान रहे कि स्वास्थ्य कर्मियों की मजबूत उपस्थिति के कारण ही अमेरिका में सामान्य स्थिति में सामुदायिक स्वास्थ्य, बच्चों का टीकाकरण एवं बीमारों को चिन्हित करने का कार्य लगातार चलता रहता था। वहीं महामारी के समय ये स्वास्थ्यकर्मी ‘फस्र्ट रेस्पोंडर्स’ की भूमिका निभाते हैं, जहां ये लोग आउटब्रेक ट्रेसिंग करते हैं तथा बड़े पैमाने पर जांच कार्यों को अंजाम देने में सहयोग करते हैं। लेकिन राज्य और स्थानीय सेवाओं के कमजोर होने के कारण

अमेरिका कोविड-19 से समुचित रूप से नहीं लड़ पा रहा है।

मिशिगन में स्वास्थ्य का बजट वर्ष 2004 की तुलना में 2008 तक कम से कम 16 प्रतिशत तक कम हो चुका है। इसी तरह केन्सास में भी 2008 से 2016 के बीच स्वास्थ्य के बजट में 28 प्रतिशत की कमी देखी जा सकती है। अमेरिकी राज्य ओक्लाहोमा में भी स्वास्थ्य के बजट में 2014 के बाद लगातार कटौती हुई। वर्ष 2008 के बाद मंदी का असर जब धीरे-धीरे कम हुआ तथा राज्य के बजट में वृद्धि हुई तो स्वास्थ्य सुविधाओं को प्राथमिकता नहीं दी गई। यही कारण है कि बजट वृद्धि के बावजूद स्वास्थ्य में कटौती की ही स्थिति रही। स्वास्थ्य के बजट को दूसरे लोकलुभावन बजट में मोड़ दिया गया। इस तरह अमेरिका के अधिकांश राज्यों ने पिछले दशक में स्वास्थ्य बजट में भारी कटौती की जो अभी कोविड-19 के समय उसको महंगा पड़ रहा है।

स्वास्थ्य के आधारभूत ढांचे को मजबूत करने की जरूरत : अमेरिका सहित दुनिया के अधिकांश देशों में अभी स्वास्थ्य के आधारभूत ढांचे को मजबूत करने के स्थान पर बीमा व्यवस्था पर बल दिया जा रहा है। अमेरिकी सरकार यह भूल गई कि जब तक आधारभूत ढांचा नहीं मजबूत होगा तब तक लोग बीमा का लाभ

कहां लेंगे। आज अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस जैसे देश मूलभूत स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए संघर्षरत दिख रहे हैं।

परमाणु हथियारों पर भी भारी कोरोना : स्पष्ट है कि सार्वभौमिक स्वास्थ्य की तुलना में विकसित देशों ने विश्व विनाशक परमाणु हथियारों पर ही ध्यान केंद्रित किया। लचर स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण अब परमाणु सुरक्षा पर भी प्रश्न उठने लगे हैं। अमेरिका में कोरोना वायरस परमाणु हथियारों के ठिकाने पर भी पहुंच चुका है। प्रसिद्ध अमेरिकी पत्रिका ‘न्यूज वीक’ के अनुसार अमेरिका के 41 राज्यों में स्थित 150 सैन्य ठिकानों पर कोरोना वायरस पहुंच चुका है। यही नहीं, दुनिया में अमेरिकी नौसेनिक शक्ति का प्रतीक माने जाने वाले चार परमाणु ऊर्जा चालित विमानवाहक पोत भी कोरोना वायरस की चपेट में आ गए हैं।

हाल ही में अमेरिकी विमानवाहक जहाज यूएसए थियोडोर रूजवेल्ट के चार हजार नौसैनिकों को गुआम ले जाया गया था। इसमें भी बड़ी तादाद में नौसैनिक कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। दुनिया में हथियारों पर निगरानी करने वाली संस्था ‘सिप्री’ के अनुसार कोरोना वायरस अब अमेरिका के ज्यादातर परमाणु ठिकानों पर पहुंच चुका है। ऐसे में अब समय आ चुका है कि दुनिया के विकसित देश परमाणु और घातक हथियारों की दौड़ को खत्म करके कम से कम आधारभूत स्वास्थ्य संरचना को प्राथमिकता में लाएं। स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने के लिए बजट के साथ साथ कठोर राजनीतिक इच्छाशक्ति की भी आवश्यकता है। यही कारण है कि विकसित देशों को एक छोटे से देश क्यूबा से मदद लेने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है। कोरोना संकट के कारण अब देशों को चिकित्सा को अपने एजेंडे में सबसे ऊपर रखना ही होगा।

आज दुनिया के तमाम देश ऐसे हथियार विकसित कर चुके हैं जिसके जरिये वे कभी भी इस धरती पर तबाही ला सकते हैं। एक राष्ट्र के तौर पर स्वयं की रक्षा के लिए ऐसी क्षमता हासिल करना सही है, किंतु कोविड-19 की समस्या पैदा होने के बाद जब अमेरिका जैसा देश पीपीई किट सरीखे छोटे-छोटे स्वास्थ्य संसाधनों के लिए जूझ रहा हो तो हमें एक बार फिर से यह सोचना चाहिए कि हमारी प्राथमिकता क्या हो, हथियार या मानव स्वास्थ्य रक्षा के लिए आवश्यक संसाधन?

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