नई दिल्ली [ हृदयनारायण दीक्षित ]। प्रकृति सदा से है। आनंद सभी प्राणियों की आदिम अभिलाषा है। चार्ल्स डार्विन ने 'दि ओरीजिन ऑफ द स्पेशीज एंड दि रिजेंटमेंट' में लिखा 'प्राणियों को भावोत्तेजन में आनंद आता है।' भावोत्तेजन के उपकरण प्रकृति में हैं। यहां रूप, रस, गंध, शब्द और स्पर्श का अविनाशी कोष है। भाव का केंद्र मनुष्य का अंत:करण है। भारत ने यही सब देखते, सुनते, समझते आनंदमगन लोकमंगल अभीप्सु जीवन दृष्टि का विकास किया। इसी का नाम भारतीय संस्कृति है। वैदिक काल और उसके पहले के पूर्वजों ने देखे गए दृश्यों व सुने गए शब्दों को स्मृति में संजोया। उन्हें एक पीढ़ी ने दूसरी पीढ़ी को सुनाया। जानना और सुनाना, सुने गए को याद करना उपनिषदों में 'व्रत' कहा गया। 'श्रुति और स्मृति' के दो महान उपकरणों के कारण भारतीय संस्कृति का प्रवाह अविच्छिन्न है। स्थापत्य आदि भौतिक उपायों से इसे स्मृति योग्य बनाए रखने का नाम 'स्मारक' है। 'स्मारक' सांस्कृतिक स्मृति के पुत्र हैं, लेकिन भारत में अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा वाले स्मारकों को भी बचाए रखने की चुनौती है। सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व के अनेक स्मारक लापता हैं।

स्मारकों का संरक्षण सारी दुनिया में राष्ट्रीय कर्त्तव्य है

स्मारकों का संरक्षण सारी दुनिया में राष्ट्रीय कर्त्तव्य है। भारत में स्मारकों का लापता होना स्वाभाविक ही राष्ट्रीय बेचैनी है। पीछे एक दशक से भिन्न-भिन्न दलों के सांसदों द्वारा लापता स्मारकों के संबंध में प्रश्न पूछे जा रहे हैं। 2009 में लापता स्मारकों की संख्या 35 थी। 2018 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एजेंसी यानी एएसआइ के अनुसार 14 स्मारक नगरीकरण की भेंट चढ़ गए। 12 स्मारक बांध निर्माण की चपेट में आए। 24 का पता नहीं कि क्या हुआ? संस्कृति मंत्री डॉ. महेश शर्मा ने लोकसभा में गत वर्ष इसका कारण नगरीकरण ही बताया है। अल्मोड़ा का कुतुंबरी मंदिर भी लापता है। सरकार ने इस साल कहा है कि गायब स्मारकों का पता लगाने और जीर्ण शीर्ण को व्यवस्थित करने के प्रयास एएसआइ द्वारा किए जा रहे हैं। इस कार्य के लिए बजट आवंटन व स्टाफ की कमी को भी समस्या माना जा रहा है। तत्संबंधी संसदीय समिति ने भी यही बात कही है। हम भारत के लोग संस्कृति की भारी चर्चा करते हैं। संस्कृति को राष्ट्रजीवन की मुख्यधारा बताते हैं। संस्कृति राष्ट्रीय अखंडता और एकता का मुख्य सूत्र है भी, लेकिन संस्कृति को श्रुति और स्मृति में बनाए रखने के लिए हम सामान्य सजग भी नहीं हैं। स्मारक नष्ट हो रहे हैं।

भारत में स्मारक संरक्षित नहीं

इतिहासकार अल बरूनी ने भारत के लोगों पर इतिहास को क्रमबद्ध न संजोने का आरोप लगाया था। सांस्कृतिक महत्व के स्मारकों को संरक्षित न करने का आरोप ताजा है। संस्कृति और इतिहास बहुत भिन्न नहीं हैं। इतिहास अतीत का यथातथ्य विवरण होता है। इसमें हर्ष, विषाद और प्रसाद मिले जुले होते हैं। इतिहास इसीलिए मार्गदर्शक होता है। संस्कृति इसी इतिहास का प्रसाद भाग है। इतिहास का 'मधुमय मधुरस' प्रवाह संस्कृति है। यह इतिहास का समग्र अनुकरणीय हिस्सा है। हम भारतवासी वास्तविक इतिहास बोध से भी दूर हैं। पुरातत्व में काफी सामग्री है। इसका विश्लेषण भी यूरोपीय दृष्टि से किया जाता रहा है। हड़प्पा खुदाई से आर्य आक्रमण के भ्रामक नतीजे निकाले गए थे। ऋग्वेद की सभ्यता को हड़प्पा से भिन्न और परवर्ती बताया गया। भारत के प्राचीन अभिजन पूर्वज आर्य विदेशी आक्रमणकारी कहे गए। हड़प्पा सभ्यता प्राचीन प्रसिद्ध की गई। ऋग्वैदिककालीन सभ्यता को अविकसित पिछड़ी सभ्यता भी कहा गया। भाषा विज्ञानी क्रूरता भी अपनाई गई। संस्कृत को कल्पित भारोपीय भाषा का विस्तार बताया गया। भारोपीय भाषा का आज तक पता नहीं। बोलने वालों का भी नहीं, लेकिन संस्कृत विस्थापित हो गई।

हड़प्पा व ऋग्वेद की सभ्यता में समानता

संस्कृति मंत्रालय से उत्साहवर्धक खबर आई है। मंत्रलय से संबंधित सिंधु सभ्यता की अध्ययन समिति ने हरियाणा के भिराना व राखी गढ़ी की खुदाई के अध्ययन को महत्व दिया है। यहां के पुरातात्विक क्षेत्र में 'कार्बन डेटिंग के अनुसार ईसा पूर्व 7000-6000 वर्ष की सभ्यता' का अनुमान है। समिति ने नौ हजार साल पीछे की इस अवधि को वैदिक काल की सभ्यता से जोड़कर समझने के प्रयास पर बल दिया है। समिति के अध्यक्ष केएन दीक्षित एएसआइ से जुड़े रहे हैं। दीक्षित ने संस्तुति की है कि कार्बन डेटिंग अध्ययन के इन परिणामों को ऋग्वेद, रामायण व महाभारत के समय से जोड़कर समझा जाना चाहिए। पुरातत्वविद आरएस बिष्ट व डॉ. भगवान सिंह ने हड़प्पा व ऋग्वेद की सभ्यता में समानता बताई थी। दीक्षित ने इस पहलू को भी गंभीर महत्व दिया है। हड़प्पा और ऋग्वेद की सभ्यता में जीवनयापन की अनेक समानताएं हैं। ऋग्वेद की सभ्यता को परवर्ती और हड़प्पा से भिन्न बताने वालों के तर्क दयनीय हैं। वे हड़प्पा को नगरीय व ऋग्वैदिक सभ्यता को ग्रामीण बताते हैं। ऋग्वेद की सभ्यता में नगर थे। यहां नगर के लिए शब्द 'पुर' आया है और नगर प्रमुख के लिए 'पौर'। वैदिक सभ्यता में ग्राम भी हैं। ग्राम का मुखिया 'ग्रामणी' है।

यूनेस्को ने ऋग्वेद को विश्व विरासत घोषित किया

भारत को कई संस्कृतियों का देश बताने वाले विद्वान अब विलुप्ताय जाति हो रहे हैं। वे हड़प्पा को प्राचीन कहते हैं। वे सुमेरी सभ्यता को हड़प्पा से भी प्राचीन बताते हैं। हड़प्पा को सुमेरी सभ्यता की छाया मानते हैं। वे वाहमान जलभरी सरस्वती और सूखी सरस्वती के मध्य समय विभाजन नहीं देखते। ऋग्वेद के समय की सरस्वती जलभरी है। यह तथ्य हड़प्पा से प्राचीन है। भारत सुमेर और मिस्र के संबंधों को ऋग्वेद के आलोक मे देखा जाना चाहिए। ऐसे ही हरियाणा से प्राप्त पुरातात्विक निष्कर्षो को भी ऋग्वेद के कथनों और उल्लेखों में जांचे जाने की जरूरत है। सुमेरी, मिनोवन, मितन्नी और हित्ती सभ्यताएं ऋग्वेद के बाद की हैं और हड़प्पा के बाद की भी। आधुनिक इतिहासकारों के अपने आग्रह हैं। वे ऋग्वेद के काव्य को साक्ष्य नहीं मानते। वे पुरातत्व का अर्थ ईंट, घर, मूर्ति आदि स्थापत्य मानते हैं। पुरातत्व का अर्थ 'प्राचीन तत्व' है। यहां प्राचीनता शब्द में भी हो सकती है और ईंट, घर मूर्ति आदि शिल्प में भी। यूनेस्को ने ऋग्वेद को विश्व विरासत इसीलिए घोषित किया है कि यह विश्व मानवता का प्राचीनतम शब्द साक्ष्य पुरातत्व है।

भारत सांस्कृतिक संपदा में अग्रणी राष्ट्र है

स्मारक सभ्यता और संस्कृति के पुरातत्व हैं। भारत सांस्कृतिक संपदा में अग्रणी राष्ट्र है। यहां विश्व धरोहरों की सूची में अब 35 स्थल हैं। यूरोपीय पुनर्जागरण के केंद्र इटली में 51 हैं। भारत ने 46 और स्थलों को विश्व सूची में शामिल कराने का आग्रह किया है। कुंभ को हाल में विश्व विरासत सूची में सम्मिलित किया है। भारत का स्थापत्य भी अति प्राचीन है। यहां लाखों मंदिर, किले और सुंदर भवन, सभागार थे। महाभारत व रामायण में बड़े सभागारों व भवनों के उल्लेख हैं। पाटलिपुत्र, काशी, मथुरा, उज्जयिनी संसार के प्राचीन नगर थे और अयोध्या भी। मध्यकाल में यहां विदेशी हमलावरों ने लाखों मंदिर ध्वस्त किए। संति एएसआई के जिम्मे 3686 स्मारकों की जिम्मेदारी है। अनियोजित नगरीकरण व विकास ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्व के स्मारकों को लील रहा है। भारत को इन्हें हर हाल में बचाना चाहिए। सांस्कृतिक महत्व के अन्य स्मृति स्थलों की खोजबीन भी जारी रहनी चाहिए। आखिरकार समूचा भारत स्वयं भी एक महत्वपूर्ण विश्व विरासत है।

[ लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं ]