डॉ. गजेंद्र सिंह। Counterfeit Drugs भारत अभी तक अपनी दवाइयों के निर्माण के लिए लगभग 70 प्रतिशत कच्चे माल, जैसे कि एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रीडिएंट्स (एपीआइ) आदि का चीन से आयात करता था, लेकिन हाल की घटनाओं के कारण भारत में फार्मा ट्रेड की कार्यप्रणाली बदल गई है। भले ही हमने मेक इन इंडिया का वादा किया है, लेकिन देश को दवा के लिए इसकी निर्भरता और घरेलू बाजार के लिए निर्णय लेने ही होंगे। जबकि सरकार भारत को आत्मनिर्भर बनाने की योजना पर काम कर रही है।

ऐसे में दवाओं की कमी और व्यापार को लेकर संकीर्ण नजरिया नकली दवाओं की चुनौती के रूप में सामने आ सकता है। घरेलू स्तर पर उत्पादित जेनरिक दवाएं अक्सर गुणवत्ता परीक्षण में विफल रही हैं। वर्ष 2017 में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी एक रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में बेची जाने वाली लगभग दस फीसद दवाएं घटिया और गलत ढंग से तैयार की गई हैं। यह ऐसे समय में अधिक चिंताजनक है, जब दुनिया उत्सुकता से बुनियादी दवाओं की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित कर रही है, जबकि उत्पादन में कमी और मांग में वृद्धि भारत के दरवाजे पर दस्तक दे रही है।

भारत घटिया दवाओं की चुनौती से जूझता रहा है। यह उस समय अधिक स्पष्ट था, जब सरकार ने जन औषधि पहल शुरू की, जहां कथित तौर पर, गुणवत्ता की कमी के कारण 20 दिनों की अवधि में पांच दवाओं को वापस मंगाना पड़ा था। ऐसे में सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रोगी के लिए सबसे महत्वपूर्ण दवा की गुणवत्ता हो। मूल विचार उन्हें सबसे सुरक्षित विकल्प देने का है, चाहे वह बाहर से आए या घरेलू बाजार से।

वर्ष 2018 में सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन ने भारतीय बाजार में लगभग साढ़े चार प्रतिशत सामान्य दवाओं की पहचान की, जो बेहद खराब स्तर के थे। इसके अलावा, भारत में 12,000 विनिर्माण इकाइयों में से एक-चौथाई ही विश्व स्वास्थ्य संगठन के जीएमपी यानी गुड मैन्यूफैक्चरिंग प्रैक्टिसेज का अनुपालन करती हैं। जीएमपी एक अनिवार्य गुणवत्ता विनियमन है, जिसका दवा निर्माता द्वारा पालन करने की जरूरत होती है। सिर्फ घरेलू मोर्चे पर ही नहीं, वैश्विक दवा बाजार में भी भारत की प्रतिष्ठा दांव पर है।

समस्या की जड़ दवाओं की समानांतर दुनिया का स्वास्थ्य प्रणाली पर प्रभाव पड़ सकता है, जैसे समुदाय में बीमारी का प्रसार या दुष्प्रभाव। भारत में परीक्षण के लिए लगभग 30 प्रयोगशालाएं हैं, जो नकली उत्पादों से एक अच्छे या अपेक्षाकृत खराब गुणवत्ता वाले उत्पाद के बीच फर्क कर सकती हैं। भारत में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा की बढ़ती मांग के कारण इस प्रणाली को अधिक प्रयोगशालाओं की जरूरत है। ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआइ) को समस्या की जड़ तक पहुंचने के लिए स्थानीय ड्रग कंट्रोल अथॉरिटीज और फार्मास्यूटिकल कंपनियों के साथ मिलकर काम करना चाहिए।

जब डॉक्टर या रोगी किसी कंपनी द्वारा निíमत किसी दवा के संदर्भ में शिकायत दर्ज करता है, तब उस दवा की गुणवत्ता जांच की जाती है। इस जांच की प्रक्रिया में दवा नियंत्रक दवा दुकान पर छापा मारता है और दवा के नमूनों को परीक्षण के लिए प्रयोगशालाओं में ले जाता है। डीसीजीआइ परीक्षण का परिणाम प्राप्त करता है और राज्य के ड्रग कंट्रोलर या कंपनी को सूचित किए बिना या उस दवा कंपनी को एक ज्ञापन जारी करता है, जिसमें दवा की गुणवत्ता को मानक गुणवत्ता का नहीं बताता है।

डीसीजीआइ के लिए यह स्पष्ट रूप से परिभाषित करना महत्वपूर्ण है कि परीक्षण की गई दवा खराब गुणवत्ता की या नकली दवा की श्रेणी में आती है। यह नकली या घटिया दवाओं के मुद्दे का समाधान करने की दिशा में बड़ा फर्क पैदा करेगा। दवा कंपनियों को केवल खराब गुणवत्ता वाली दवा के उत्पादन के लिए जिम्मेदार होना चाहिए, न कि नकली दवाओं के लिए। नकली दवा विक्रेता और मेडिकल शॉप को जांच के लिए जिम्मेदार माना जाना चाहिए, क्योंकि नकली दवाएं एक दवा आपूíतकर्ता से एक निश्चित दुकान द्वारा खरीदी गई नकली दवाएं हैं। आपूíतकर्ता एक निश्चित दवा कंपनी के नाम से अवैध रूप से नकली दवा बेचता है। दवा कंपनी इससे अनजान है। यह एक व्यक्तिगत दवा कंपनी के दायरे से परे है और ऐसे मामलों में ड्रग कंट्रोलर और यहां तक कि कानून प्रवर्तन जैसे अधिकारियों से हस्तक्षेप की आवश्यकता है। इससे भारतीय फार्मा उद्योग की मुश्किल से अर्जति प्रतिष्ठा भी खराब होती है।

कई प्रतिष्ठित फार्मास्युटिकल कंपनियों को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। इससे भी बुरी बात यह है कि नकली दवा विक्रेता या मेडिकल दुकान के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करने के मामले में स्पष्टता की काफी कमी है। ऐसे समय में जब हम भारत को आत्मनिर्भर बनाने की बात कर रहे हैं, यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे विनिर्माण में गुणवत्ता संबंधी विसंगतियों के लिए दुनियाभर के ड्रग विनियामकों से भी हमें कुछ सवालिया प्रतिक्रिया मिली है। भारत को एक नियामक तंत्र की आवश्यकता है, जो न केवल वैश्विक नवीन दवाओं को लाने का वादा करे, बल्कि यह भी सुनिश्चित करे कि हमारे पास बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पाद हों, जो नकली दवाओं के मूल कारण का समाधान करते हों।

[जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ]