लालजी जायसवाल। बुजुर्गो के स्वास्थ्य, आíथक और सामाजिक स्थिति के एक विशेष अध्ययन की रिपोर्ट जारी करते हुए हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि इससे स्वास्थ्य नीति बनाने में आसानी होगी। इस रिपोर्ट के अनुसार, देश के हर चार में से तीन बुजुर्ग किसी न किसी गंभीर बीमारी के शिकार हैं। हर चौथा बुजुर्ग ऐसी कई बीमारियों से और हर पांचवां किसी मानसिक बीमारी से पीड़ित है। जीवन-प्रत्याशा लगभग 70 साल तक पहुंच गई है।

यानी हमारे देश में बुजुर्गो की संख्या निरंतर बढ़ रही है। रिपोर्ट के मुताबिक, जिन घरों में बुजुर्ग हैं, उनके यहां का प्रति व्यक्ति खर्च भी इसी अस्वस्थता के कारण ज्यादा है। फिलहाल, देश में प्रत्येक 10 लोगों की आबादी में एक बुजुर्ग हैं। हर चौथे वृद्ध को अपने रोजमर्रा के काम करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इतना ही नहीं, सस्ती स्वास्थ्य सुविधा के अभाव में 90 प्रतिशत वृद्ध घर में ही अपना इलाज करते हैं, जबकि करीब 33 प्रतिशत बुजुर्ग दिल के मरीज हैं।

सरकारी पहल : सरकार ने इस समस्या को सामाजिक स्तर पर सुलझाने के साथ ही अपने स्तर से भी प्रयास शुरू किए हैं। हालांकि सरकार ने इसी संदर्भ में आयुष्मान भारत योजना लागू की है, लेकिन इसमें केवल 40 प्रतिशत लोग ही शामिल हैं। लगभग सभी विकासशील देशों में आधुनिक शासकीय नीति 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के लिए मुफ्त स्वास्थ्य बीमा की है। आज एकल परिवार युग में बुजुर्गो के लिए, सरकार को उनके सम्मानपूर्ण जीवन के लिए नीति, संस्थाएं व सामाजिक चेतना विकसित करनी होगी। वृद्धाश्रमों की संख्या बीते दशकों में हमारे देश में अवश्य बढ़ी है, लेकिन उनमें कुछ व्यवस्था की कमी देखी जाती है, जिसे दूर करना होगा। जैसे वृद्धों के लिए मनोरंजन और समुचित चिकित्सा व्यवस्था की कमी होती है। वैसे सरकार ने इन समस्याओं पर नजर रखते हुए सुधार के प्रयास भी किए हैं। इसके तहत बुजुर्ग अपनी स्वाभिमान भरी जिंदगी आसानी से जी सकेंगे।

अगर सरकार की बुजुर्गो के लिए दी गई योजना पर नजर डालें तो राष्ट्रीय वयोश्री योजना जिसमें बुजुर्गो को सुनने वाली मशीनें, व्हीलचेयर, वैशाखी, कृत्रिम दांत और चश्मा आदि उपकरण मुफ्त प्रदान की योजना है। लेकिन जब वरिष्ठ नागरिकों के लिए अनेक सरकारी योजनाएं लाभ पहुंचा रही हैं, तो फिर उनकी हालत इतनी चिंताजनक क्यों है? बुजुर्गो को तब अपमान का सामना करना पड़ता है, जब उन्हें तिरस्कार की नजर से देखा जाता है। साथ ही, उनको वित्तीय परेशानी के आलावा मानसिक व शारीरिक उत्पीड़न का भी सामना करना पड़ता है। अक्सर समाज उनके साथ भेदभाव करता है। अस्पताल, बस अड्डों, बसों, रेलवे स्टेशनों समेत तमाम सार्वजनिक जगहों पर बुजुर्गो के साथ र्दुव्‍यवहार के मामले सामने आते हैं। यहां तक कि अस्पतालों में भी उनको बुरे बर्ताव का सामना करना पड़ता है।

किसी भी समाज को तब तक सभ्य, विकसित व संवेदनशील नहीं कह सकते जब तक उसके असहाय व बीमार बुजुर्गो की देखभाल करने वाली व्यवस्था न हो। दुनिया के अधिकांश बेहतर अर्थव्यवस्था वाले देशों में बुजुर्गो के स्वास्थ्य के लिए सरकार की कल्याणकारी नीति है। वैसे भी भारत में स्वास्थ्य पर जीडीपी का मात्र 1.3 फीसद खर्च किया जा रहा है। गौरतलब है कि भारत इस वक्त दुनिया का सबसे युवा देश है, यहां युवाओं की तादाद करीब 65 फीसद है। ऐसा अनुमान है कि भारत में अभी छह प्रतिशत आबादी 60 साल या उससे अधिक की है, लेकिन 2050 तक बुजुर्गो की यह संख्या बढ़ कर 20 फीसद तक होने का अनुमान है। उस समय देश में 65 साल से अधिक उम्र के लोगों की संख्या तीन गुना बढ़ जाएगी।

सवाल यह है कि क्या तब हम अपनी वृद्ध जनसंख्या के समुचित देखभाल की पर्याप्त व्यवस्था कर पाएंगे? बुजुर्गो की हालात देश में पहले से ही चिंताजनक है, निरंतर संवेदनहीन बनता समाज बुजुर्गो से दूरी कायम कर रहा है। प्रश्न उठता है कि क्या महान संस्कृतियों वाले इस देश में सभ्यता और मानवता की कमी होती जा रही है? क्या विरासत स्वरूप वरिष्ठ जन की सामाजिक सुरक्षा तिरोहित हो गई है? बुजुर्गो के लिए चलाई गई वय वंदन योजना, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना, राष्ट्रीय वयोश्री योजना, स्वावलंबन योजना, अटल पेंशन योजना जैसी अनेक प्रकार की योजनाओं के माध्यम से सरकार बुजुर्गो को सहायता प्रदान करने का प्रयास कर रही है, लेकिन चूंकि अधिकांश योजनाएं प्रीमियम राशि निवेश करने की मांग करती हैं, लिहाजा बुजुर्गो की आíथक हालात इतनी सही नहीं होती कि उनको इन तमाम योजनाओं में निवेश कर लाभ दिला सके। वैसे देखा जाए तो बुजुर्गो की देखभाल का कार्य सरकार का है ही नहीं, यह तो परिवार और समाज की जिम्मेदारी है। लेकिन जब परिवार ही देखभाल से मुकरता जा रहा है तो वे सरकार से क्या उम्मीद रखेंगे?

बुजुर्गो की सामाजिक सुरक्षा संकटग्रस्त नजर आ रही है, जिसका एक कारण योजनाओं का जमीनी स्तर पर सही से प्रचालन न हो पाना भी है। सरकार की ओर से बुजुर्गो के लिए अस्पताल में अलग पंक्ति का प्रबंध किया जाता है। कई राज्यों में तो अस्पतालों में वरिष्ठ जनों के लिए विशेष जांच केंद्रों की व्यवस्था भी है, लेकिन यह कुछ सीमित राज्यों में ही है। इसका दायरा पूरे देश में बढ़ाने की जरूरत है, क्योंकि वरिष्ठ नागरिकों की स्थिति सभी राज्यों में दयनीय है। प्रजातांत्रिक परिवर्तनों के साथ हो रहा आधुनिकीकरण और व्यक्तिवादी संस्कृति तथा कुछ ऐसे कारण हैं जिन्होंने समाज को इस ओर धकेला है, जिसमें मानवीय संबंधों का दोहन भी भरपूर हुआ है। आज आवश्यकता इस बात की है कि लोग अपने भीतर अपने माता-पिता और बड़े-बुजुर्गो के प्रति सम्मान का भाव जगाएं। साथ ही प्रत्येक व्यक्ति को यह याद रखना चाहिए कि माता-पिता ने स्वयं को कष्ट में रखकर सदैव बच्चों को खुशहाली भरा जीवन दिया है।

यह कहना गलत नहीं होगा कि माता-पिता इस धरती पर जागृत देवता हैं। इसलिए बच्चों का भी कर्तव्य बनता है कि जब माता-पिता की अवस्था ज्यादा हो जाए तो उनका पूरा ख्याल उसी प्रकार रखें, जिस प्रकार माता-पिता ने उनका रखा था। विशेषकर बच्चों को अपने बुजुर्ग माता-पिता की उन समस्त बातों का ध्यान रखना चाहिए जो वह उनसे कह नहीं पाते हैं। शायद वे अपने बच्चों को कष्ट नहीं देना चाहते होंगे, लेकिन बच्चों को चाहिए कि उनकी सभी समस्याओं पर ध्यान रखें, जो प्राय: वृद्धावस्था में होती हैं। वे बीमार तो होते हैं, लेकिन बच्चों को जाहिर नहीं होने देते। परंतु हम सबका क्या कर्तव्य होता है? क्या उनको उसी अवस्था में पड़े रहने दें? कदापि नहीं। हमें उनकी समस्त जरूरतों का ध्यान रखना चाहिए। वृद्धावस्था में होने वाली इस समस्याओं का ध्यान रखते हुए हमें अपने दायित्वों का निर्वाह करना चाहिए, तभी बुजुर्गो को एक स्वाभिमान और सम्मान भरा जीवन मिल सकेगा।

 आज मनुष्य का सामाजिक जीवन पतन की ओर जा रहा है, जो अपने घर में बड़े-बूढ़ों को समुचित देखभाल तक सही से नहीं कर पा रहा है। हालांकि बुजुर्गो की समुचित देखभाल का काम सरकार का नहीं है, वे हमारी धरोहर हैं और अपनी धरोहर की देखभाल स्वयं का कर्तव्य है। इसके लिए समाज को भी आगे आना होगा, केवल सरकारी प्रयास कारगर साबित नहीं होंगे।

[शोधार्थी, इलाहाबाद विश्वविद्यालय]