मध्य प्रदेश [आशीष व्यास]। कोरोना काल में यह विवेचना-विश्लेषण मुश्किल है कि इन दिनों पलायन का वेग ज्यादा है या संक्रमण का, क्योंकि महामारी के विस्तार और लंबे लॉकडाउन से श्रमवीरों की स्थिति और अर्थव्यवस्था में उनके योगदान से जुड़े कई भ्रम टूट चुके हैं।

यह सबक भी सीखा जा रहा है कि श्रम-शक्ति की समस्याओं से संवाद के लिए राज्य सरकारों के पास फिलहाल कोई निर्णायक नीति नहीं है। सामने आ रहे आंकड़ों के अनुसार कोरोना संकट के बीच मध्य प्रदेश में लगभग 30 लाख मजदूर लौटेंगे। इसीलिए पूछा जा रहा है कि राज्य के पास पलायन को रोकने की क्या कोई पुख्ता योजना है?

मध्य प्रदेश के मजदूर उत्तर प्रदेश, दिल्ली-एनसीआर, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश सहित 17 राज्यों में पलायन करते हैं। पलायन को लेकर प्रदेश के 10 जिलों में शोध संस्थानों ने सर्वे शुरू किया है। इनमें बुंदेलखंड-बघेलखंड के गांवों से लेकर शिवपुरी, महाकोशल का बड़ा इलाका शामिल है। सर्वे से सामने आई प्रारंभिक जानकारी थोड़ा हैरान करने वाली, या यूं भी कह सकते हैं कि उम्मीद बढ़ाने वाली है। 

55 प्रतिशत श्रमवीरों का कहना है कि वे पलायन करना नहीं चाहते हैं। वे चाहते हैं कि प्रदेश में ही रहकर कुछ काम करें। करीब 27 प्रतिशत का कहना है कि मौजूदा हालात में फिलहाल वे अनिर्णय की स्थिति में हैं। 18 प्रतिशत मजदूर अपने कार्यक्षेत्र में लौटना चाहते हैं। आदिवासी बाहुल्य जिले झाबुआ-आलीराजपुर में यह सिलसिला शुरू भी हो गया है।

हालांकि तुलनात्मक रूप से यह संख्या अभी बहुत कम है, लेकिन आसान परिवहन ने उन्हें दो राज्यों का नागरिक बना दिया हैं। जैसे हर प्रदेश के मजदूरों की एक विशेषता होती है, वैसे ही मध्य प्रदेश के कामगारों की भी कुछ खूबियां हैं। ये कंस्ट्रक्शन साइट, मार्बल या संगमरमर का काम और कपड़ा उद्योग से जुड़े कामों के लिए बहुत उपयोगी हैं। क्या उनके कौशल का उपयोग मध्य प्रदेश में नहीं हो सकता?

30 लाख मजदूर, जो दूसरे राज्यों के आर्थिक विकास में भागीदारी निभाते हैं, वे अपने प्रदेश में रहकर स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में योगदान नहीं दे सकते हैं? आपदा में अवसर खोजने की तरकीब यह भी हो सकती है कि 30 लाख की आबादी को अतिरिक्त बोझ मानने के बजाय उनके श्रम का उपयोग प्रदेश के विकास में ही किया जा सकता है।

विशेषज्ञ भी मानते हैं कि मजदूरों के कौशल के हिसाब से मध्य प्रदेश में चार क्षेत्र विकसित करने चाहिए। हैंडलूम, कपड़ा उद्योग, कृषि-खाद्य प्रसंस्करण और ग्रामीण पर्यटन के साथ लुप्त होता हर्बल उद्योग।

अनुभव को प्रयोग में बदलने का समय: पिछले 38 साल के कार्यकाल में से 28 साल ग्रामीण विकास और आजीविका के क्षेत्र में काम कर चुके आइएएस रवींद्र पस्तोर ने लंबा समय रीवा, जबलपुर, उज्जैन संभाग में बिताया है। 

वह कहते हैं, ‘मजदूरों की घर वापसी का जो दृश्य उभरकर आया है, वो सामान्य नहीं है। इसे ऐसे समङिाए कि मध्य प्रदेश की लगभग एक करोड़ की आबादी, दूसरे राज्यों में रहती है। अवसर के साथ पलायन अच्छा होता है और रोजगार के साधन न होने पर किया गया पलायन संबंधित प्रदेश की जनता के लिए खराब है। शत प्रतिशत पलायन रोकना असंभव है। यह व्यक्ति और समाज के विकास में भी बाधक है। वैसे भी मध्य प्रदेश में परिवारों के पास जमीन की औसत उपलब्धता 1.17 हेक्टेयर है।

बंटवारे के बाद एक परिवार के लिए यह पर्याप्त नहीं, इसलिए सिर्फ खेती के भरोसे पलायन करने वाली आबादी को प्रदेश में रोककर नहीं रखा जा सकता। इसके लिए वैकल्पिक योजनाएं चाहिए।’ दरअसल जो मजदूर वापस आए हैं, वे अपने साथ तीन विशेषताएं लेकर लौटे हैं। कौशल, व्यापार की बुनियादी समझ और महत्वाकांक्षा। पलायन रोकने और अपने श्रम का उपयोग अपने प्रदेश में करने के लिए इन्हीं तीन बिंदुओं को ध्यान में रखकर रोजगार उपलब्ध करवाना होगा।

उदाहरण के लिए कृषि श्रमिकों की जरूरत बनी हुई है। खेती संबंधी कामों के लिए हैंड-टूल विकसित कर, उन्हें इस काम के लिए रोका जा सकता है। मालवा-निमाड़ इलाके के 42 हजार हेक्टेयर में आलू, 32 हजार हेक्टेयर में प्याज, 22 हजार हेक्टेयर में मिर्च का रकबा है। सब्जियां और टमाटर सहित सोया और मूंग भी बड़े इलाके में बोया जाता है। 

यहां फसल के साथ फल-सब्जियों से जुड़ी हुई छोटी-छोटी खाद्य प्रसंस्करण इकाई लगाई जाएं। यहां की खेती, प्रदेश के दूसरे इलाकों की तुलना में 70 प्रतिशत उन्नत है, इसलिए मजदूरों को आवश्यकतानुसार कुशल बनाया जाए। पलायन रोकने के लिए यह बहुत बड़ा कदम होगा। 

रोजी-रोटी सुनिश्चित: समग्र एप की संरचना तैयार करने वाली आइएएस डॉ. अरुणा शर्मा लंबे समय तक मध्य प्रदेश में पदस्थ रहीं। देश के 10 राज्यों ने इस प्रयोग को अपनाया है। डॉ. शर्मा का मानना है, ‘यदि पलायन रोकना है तो सरकार को हर घर को चिन्हित कर रोजी-रोटी की व्यवस्था करनी पड़ेगी।

मध्य प्रदेश में 100 से ज्यादा ऐसे प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं, जिसमें स्थानीय मजदूरों को काम मिल रहा है। जैसे पुदीने की खेती के साथ-साथ खांसी और खराश दूर करने वाले मेंथॉल का छोटा प्लांट भी पास में लगा लिया जाए। प्रदेश में बड़ी संख्या में वनोपज मिलते हैं। उसके लिए निर्यात बाजार तलाशना होगा। कोरोना के चलते बड़े पैमाने पर मजदूरों की घर वापसी हुई है।

ऐसे में मप्र सहित सभी राज्यों को व्यवस्था करनी चाहिए कि श्रमिक देश में कहीं से भी अपने हिस्से का राशन ले सकें।’ राज्य सरकार ने एक कॉल सेंटर शुरू किया था, जहां से उद्योगों से संपर्क कर समझा जाता था कि उन्हें कैसे श्रमिक चाहिए। इसके बाद अपेक्षाओं के आधार पर श्रमिकों को प्रशिक्षण दिया जाता। ऐसी पहल से भी पलायन रोकने में मदद मिलती है। (संपादक, नई दुनिया)