नीलम महेंद्र। सीएए को कानून बने एक माह से भी अधिक हो चुका है, लेकिन विपक्ष द्वारा इसका विरोध जारी है। बल्कि यह विरोध ‘विरोध’ की सीमाओं को लांघ कर हताशा और निराशा से होता हुआ विद्रोह का रूप अख्तियार कर चुका है। शाहीन बाग का धरना इसी बात का उदाहरण है। जो राजनीतिक दल इस धरने को अपना समर्थन दे रहे हैं और इन आंदोलनरत लोगों के जोश को बरकरार रखने के लिए यहां अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि हवा का यह जहर कहीं देश की फिजाओं में भी ना घुल जाए, क्योंकि हाल में एक वीडियो सामने आया है जिसमें एक युवक कह रहा है कि यहां महिलाओं को बैठने के रुपये दिए जा रहे हैं। ये महिलाएं शिफ्ट में काम कर रही हैं और एक निश्चित संख्या में अपनी मौजूदगी सुनिश्चित रखती हैं। इस वीडियो की सत्यता की जांच गंभीरता से की जानी चाहिए, क्योंकि अगर इस युवक द्वारा कही गई बातों में जरा भी सच्चाई है तो निश्चित ही विपक्ष की भूमिका संदेह के घेरे में है।

दरअसल विपक्ष आज बेबस है, क्योंकि उसके हाथों से चीजें फिसलती जा रही हैं। जिस तेजी और सरलता से मौजूदा सरकार इस देश के वर्षो पुराने उलङो हुए मुद्दे, जिन पर बात करना भी विवादों को आमंत्रित करता था, सुलझाती जा रही है, विपक्ष खुद को मुद्दा विहीन पा रहा है। वर्तमान सरकार की कूटनीति के चलते संसद में विपक्ष की राजनीति भी नहीं चल पा रही जिससे वो खुद को अस्तित्व विहीन भी पा रहा है, शायद इसलिए अब वह अपनी राजनीति सड़कों पर ले आया है। खेद का विषय है कि अपनी राजनीति चमकाने के लिए अभी तक विपक्ष आम आदमी और छात्रों का सहारा लेता था, लेकिन अब वह महिलाओं को मोहरा बना रहा है। इस देश की मुस्लिम महिलाएं और बच्चे अब विपक्ष का नया हथियार हैं, क्योंकि शाहीन बाग का मोर्चा महिलाओं के ही हाथ में है। 

अगर शाहीन बाग का धरना वाकई में प्रायोजित है तो इस धरने का समर्थन करने वाला हर दल सवालों के घेरे में है। संविधान बचाने के नाम पर उस कानून का हिंसक विरोध जिसे संविधान संशोधन द्वारा खुद संसद ने ही बहुमत से पारित किया हो, क्या संविधान सम्मत है? जो लड़ाई आप संसद में हार गए उसे महिलाओं और बच्चों को मोहरा बनाकर सड़क पर लाकर जीतने की कोशिश करना किस संविधान में लिखा है? लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुनी हुई सरकार के काम में बाधा उत्पन्न करना लोकतंत्र की किस परिभाषा में लिखा है? संसद द्वारा बनाए गए कानून का अनुपालन हर राज्य का कर्तव्य है (अनुच्छेद 245 से 255), संविधान में उल्लिखित होने के बावजूद विभिन्न राज्यों में विपक्ष की सरकारों का इसे लागू नहीं करना या फिर केरल सरकार का इसके खिलाफ न्यायालय में चले जाना क्या संविधान का सम्मान है?

जो लोग महीने भर तक रास्ता रोकना अपना संवैधानिक अधिकार मानते हैं उनका उन लोगों के संवैधानिक अधिकारों के विषय में क्या कहना है जो लोग उनके इस धरने से परेशान हो रहे हैं? अपने अधिकारों की रक्षा करने में दूसरों के अधिकारों का हनन करना किस संविधान में लिखा है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न उन मुस्लिम महिलाओं से जो धरने पर बैठी हैं। आज जिस कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर, शशि थरूर जैसे नेताओं का भाषण उनमें जोश भर रहा है, उसी कांग्रेस की सरकार ने शाहबानो के हक में आए न्यायालय के फैसले को संसद में उलट कर शाहबानो ही नहीं, हर मुस्लिम महिला के जीवन में अंधेरा कर दिया था।

(लेखक स्‍तंभकार हैं)

यह भी पढ़ें:- 

अफसोस! तीन तलाक से मुक्ति पाने वालेे समुदाय की महिलाएं अब दे रही हैं विपक्ष का साथ
Exodus of Kashmiri Pandit: रातों रात अपनी जमीन को छोड़ने का दर्द वहीं जानता है जिसने इसे देखा हो
बिना गाइड और पोर्टर के माउंट अकोंकागुआ को फतह करने वाली पहली भारतीय महिला हैं मिताली