डा. दर्शनी प्रिय। देश के पहले कौशल विकास विश्वविद्यालय की आधारशिला ने प्रायोगिक ज्ञान के मंदिरों की उपादेयता और प्रासंगिकता को बढ़ा दिया है। इसे व्यावसायिक शिक्षा के समग्र समावेशन और उद्यमशीलता के दूरगामी प्रभावों के आलोक में देखा जाना चाहिए। विमर्श के नए केंद्र अब युवा और उससे जुड़े अनन्य उद्यम हैं। निश्चित ही देश की राजधानी दिल्ली अन्य राज्यों के लिए नजीर बनी है, जहां दिल्ली स्किल एंड एंटरप्रेन्योरशिप यूनिवर्सिटी (डीएसयूई) में शैक्षणिक सत्र 2021-22 के लिए सभी छह हजार सीटों के लिए प्रवेश प्रक्रिया पूरी कर ली गई है। वहीं झारखंड और हरियाणा जैसे छोटे राज्य भी बड़े आर्थिक निवेशों के साथ कौशल विश्वविद्यालयों की स्थापना की दौड़ में आगे निकल आए हैं।

उद्यमिता और लघु व्यवसाय किसी भी देश की बढ़ती अर्थव्यवस्था की रीढ़ होते हैं। आज के परिवेश में वर्तमान और उभरते रोजगार के बाजार की जरूरतों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले कुशल कार्य बल का विकास करना हमारी प्राथमिकता है और अनिवार्यता भी। इसके लिए युवाओं को प्रशिक्षण देकर मानसिक तौर पर मजबूत किया जाना और उन्हें उद्यमी बनाने के लिए प्रशिक्षण देना जरूरी है। अर्थशास्त्रीय अनुभव बताता है कि उद्यम से ही उद्योग का सृजन किया जा सकता है। जाहिर है कौशल विकास के जरिये रोजगार सृजन बहुत सहज और सरल हो जाता है। इसके जरिये आर्थिक और सामाजिक विकास की गतिशीलता को भी बनाए रखा जा सकता है। लेकिन इन सबके बीच यह आवश्यक होगा कि स्किल डेवलपमेंट के जिन विषयों में युवाओं को प्रशिक्षण दिया जाए, उनसे संबंधित औद्योगिक तथा व्यावसायिक गतिविधियों और ट्रेड से जुड़ी आवश्यकताओं का ध्यान भी रखा जाए ताकि शिक्षित-प्रशिक्षित युवाओं को रोजगार से तत्काल जोड़ा जा सके।

वर्तमान में सभी तकनीकी संस्थाओं को विश्व में बदलती तकनीकी के अनुसार गतिशीलता बनानी होगी। उभरते रोजगार के बाजार की जरूरतों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले कुशल कार्यबल का विकास करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। आगामी वर्षों में भारत को दुनिया की कौशल राजधानी बनाने के प्रयास करने होंगे। युवाओं को इस तरह से कुशल बनाना होगा, ताकि उन्हें रोजगार मिल सके और उनकी उद्यमिता क्षमता में सुधार हो सके। हमें स्वावलंबन और स्वरोजगार के मूल तत्व को लेकर आगे बढऩा होगा। आने वाली बड़ी चुनौतियों के लिए यह समाधान का एक बड़ा माध्यम बन सकती है। मौजूदा वैश्वीकरण के युग में उद्यमशीलता के बिना अंतरराष्ट्रीय शक्ति नहीं बना जा सकता है। स्वच्छ, स्वस्थ, समृद्ध और सशक्त भारत के निर्माण में उद्यमशीलता और स्वरोजगार ही काम आ सकते हैं।

आज कार्यकुशल लोगों की जरूरत पूरे विश्व में है। ऐसे विश्वविद्यालय विद्यार्थियों को 21वीं सदी के कौशल में पारंगत करने के लिए बनने चाहिए। वर्तमान में कई प्रदेशों में ऐसे कौशल विश्वविद्यालयों की आवश्यकता है, क्योंकि वहां के अकुशल कामगार बड़ी संख्या में रोजी-रोटी की तलाश में प्रदेश से बाहर जाते हैं। वहां वे खेती संबंधी कार्यों से लेकर निजी वाहन चलाने तक कई कार्यों में लगे होते हैं। तकनीकी जानकारी न होने के कारण उन्हें उनकी मेहनत का उचित भुगतान नहीं मिलता। अगर वे प्रशिक्षित हो जाएंगे तो उन्हें इस तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा। प्रशिक्षण लेने के बाद उन्हें अपने प्रदेश में ही काम मिल जाएगा। इसके अलावा अन्य प्रदेशों के लोग भी यहां प्रशिक्षण लेने पहुंचेंगे। इसी तरह प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बड़ी संख्या में छात्र कोचिंग करने अन्य प्रदेशों में जाते हैं। अगर उस तरह की सुविधा उन्हें अपने ही प्रदेश में मिल जाए तो बच्चों को सहूलियत होगी।

उद्यम और कौशल आने वाले कल का सुनहरा इतिहास है। भविष्य की तैयारी वर्तमान में हो इसके लिए त्वरित तैयारी जरूरी है। भविष्य के दरवाजे तेजी से खुलें इसके प्रयास अभी करने होंगे। देश की एक बड़ी बेरोजगार आबादी को उद्यमिता के बूते आसानी से साधा जा सकता है। देश का युवा प्रशिक्षित और रचनाशील होगा तभी राष्ट्र निर्माण में श्रम का योगदान दे सकेगा और एक मजबूत इकाई के रूप में देश की संचित पूंजी बन सकेगा।

( लेखिका शिक्षा मामलों की जानकार हैं)