नई दिल्ली, [वीके शुक्ला]। हर वर्ष मानसून आने का बेसब्री से इंतजार रहता है। जल संचयन को लेकर तमाम प्रयास करने की हुंकार भरी जाती है। लेकिन, हर बार एक ही तरह की लापरवाही सड़कों पर जलभराव के रूप में गवाही देती है कि हमारा सिस्टम नहीं सुधरेगा। दिल्ली देश की राजधानी है, यहां के ड्रेनेज सिस्टम को तो नजीर बनना चाहिए। अन्य राज्य प्रेरित होकर उस नियम व नीति को लागू करें। मानसून से पूर्व नालों की साफ-सफाई का मसला हमेशा उठता है। लेकिन, इस बार सिर्फ मुद्दा नहीं उठे, इस बार जल संचयन को बढ़ाने के लिए पहले की अपेक्षा क्या प्रयास हुए, कहां खामी रही। किस तरह तकनीक को बढ़ावा देकर नालों की सफाई कराई जाए, इस पर बात होनी चाहिए।

लेकिन, अफसोस की बात यह है कि यहां नालों की सफाई की तकनीक पर केवल उस समय बात होती है जब दिल्ली में जलभराव हो जाता है। पानी भर जाने से बीच सड़क पर वाहन खराब हो जाते हैं, शहर में यातायात जाम हो जाता है और लोग परेशान होते हैं। एक अभियंता की हैसियत से मैंने दिल्ली को बहुत नजदीक से देखा है। लंबे समय तक यहां काम किया है। इस दौरान दिल्ली को अव्यवस्थित होते हुए भी देखा है। मुङो यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि यहां जलभराव की वास्तविक समस्या के निराकरण के लिए कभी गंभीरता से काम हुआ ही नहीं।

नालों की सफाई का मुद्दा जितना गंभीर है उसे उतनी गंभीरता से लिया नहीं जाता। बस यही विचार होता है कि जैसे तैसे नालों की सफाई करा दी जाए, जबकि यह मुद्दा बहुत बड़ा है और दिल्ली के लोगों के लिए जरूरी भी है। करीब पांच साल पहले नौकरी के दौरान मैंने दिल्ली सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी थी जिसमें नालों की सफाई को लेकर विस्तार से प्लान बताया गया था। उस रिपोर्ट में सुझाव दिया गया था कि नालों की सफाई के लिए आधुनिक मशीनें उपलब्ध कराई जाएं, क्योंकि सीवर की मैनुअल सफाई पर अदालत ने भी रोक लगा रखी है।

सीवर का कचरा बरसाती नालों में बहने से होती है परेशानी

सारी समस्या बरसाती नालों में सीवर बहने से है। यहां सीवर की समस्या भी दो तरह की है। एक तो बहुत सी कालोनियों में सीवर लाइन नहीं हैं। सीवर और बरसाती पानी के लिए एक ही नाले हैं। जिन नालों में सीवर बहता है उन्हीं का उपयोग बरसाती पानी के लिए भी किया जाता है। दूसरी समस्या अनेक इलाकों में सीवर लाइन का जाम होना है। मेनहोल या सीवर लाइन को तोड़कर लोग गंदा पानी बरसाती नालों में बहा देते हैं। दरअसल सीवर लाइन और बरसाती नालों के डिजाइन में फर्क होता है।

सीवर लाइन को इस तरह से बनाया जाता है कि कचरा भी पानी के साथ बह जाता है जबकि बरसाती नालों में यह आगे ना बढ़कर जम जाता है ऐसी स्थिति में इन नालों में समस्या खड़ी होती है। इन नालों की ठीक से साफ-सफाई भी नहीं होती है। यही वजह है कि बरसात के दौरान नाले ओवरफ्लो होकर सड़कों पर बहने लगते हैं। नालों की सफाई के कार्य से संबंधित प्रत्येक विभाग और एजेंसी के पास अपनी मशीनें होनी चाहिए। रिपोर्ट में एक और महत्वपूर्ण सुझाव था कि बरसाती पानी और सीवर के पानी के लिए अलग-अलग व्यवस्था हो।

(सर्वज्ञ श्रीवास्तव, पूर्व सचिव, लोक निर्माण विभाग)