Delhi Assembly Election के बाद अन्य राज्यों में 'आप' के विस्तार से बढ़ी कांग्रेस की चिंता
Delhi Assembly Election 2020 दिल्ली में भी कमोबेश कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाकर ही आम आदमी पार्टी दोबारा सत्ता में आई है।
[संतोष पाठक]। Delhi Assembly Election 2020 : दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को मिली जीत से एक बात साफ है कि कांग्रेस का पूरा वोट बैंक आम आदमी पार्टी की तरफ शिफ्ट हो गया। सही मायनों में कहा जाए तो शीला दीक्षित के जमाने में जो वोट बैंक कांग्रेस के पास था, आज उससे भी ज्यादा अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी के पास है।
शीला दीक्षित के जमाने में भी दिल्ली में मायावती की बसपा समेत कुछ अन्य दलों का भी अस्तित्व था जिनके पास मजबूत वोट बैंक था। लेकिन केजरीवाल की बयार में यह सब बह गया। दिल्ली के मतदाताओं पर आज ‘आप’ का राज है और मुकाबले में सिर्फ भाजपा है। कांग्रेस के लिए तो इतना ही कहा जा रहा है कि वह दिल्ली में आखिरी सांसें गिन रही है।
बचा-खुचा दलित मतदाता भी बसपा के पाले में: जो हालत दिल्ली में आज कांग्रेस की हुई है, उसी तरह की हालत देश के कई राज्यों में पैदा होने का खतरा उसके लिए बढ़ता जा रहा है। देश भर में कांग्रेस इसीलिए कमजोर होती चली गई, क्योंकि उसका वोट बैंक दूसरे दलों की तरफ खिसकता चला गया। उत्तर प्रदेश में एक जमाने की मजबूत पार्टी कांग्रेस ने सरकार बनाने के लिए मुलायम सिंह यादव को समर्थन दिया तो मुसलमान हमेशा के लिए सपा के साथ चले गए। बसपा के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा तो बचा-खुचा दलित मतदाता भी बसपा के पाले में चला गया है।
बिहार में लालू प्रसाद की सरकार बचाने के लिए समर्थन दिया तो आज नतीजा यह है कि अपनी पार्टी के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए उसी राजद से सीटों की मिन्नत करनी पड़ती है। महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश से लेकर तमिलनाडु तक, उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक कांग्रेस की यही कहानी रही है। ज्यादातर राज्यों में नए राजनीतिक दलों ने पहले कांग्रेस का साथ लेकर अपनी जमीन को मजबूत किया और फिर कांग्रेस के वोट बैंक को साधकर ही सरकार बनाई और बेहाल कांग्रेस अपनी हालत से दुखी होने के बजाय भाजपा की हार का जश्न मनाने में लगी है।
आप की विस्तार योजना : दिल्ली की प्रचंड जीत से उत्साहित आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय विस्तार तो करना चाहती है, लेकिन इस बार तरीका 2014 से अलग होगा। पार्टी 2014 की गलती नहीं दोहराना चाहती है। रामलीला मैदान में शपथ ग्रहण के बाद अरविंद केजरीवाल का वहां मौजूद लोगों से यह कहना कि ‘अपने गांव फोन करके बता देना कि आपका बेटा चुनाव जीत गया है, अब चिंता की कोई बात नहीं है’ अपने आप में यह बताने के लिए काफी है कि अरविंद केजरीवाल अपनी पार्टी का विस्तार राज्य से बाहर भी करना चाहते हैं।
लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी संभल कर राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करते हुए दिखाई देगी। बताया जा रहा है कि पार्टी ने इसके लिए तीन सूत्री कार्ययोजना तैयार कर ली है। इसके तहत पहले सभी राज्यों में सक्रिय कार्यकर्ताओं की बैठकें होंगी। पार्टी की योजना है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव से पहले स्थानीय निकायों के चुनाव में हाथ आजमाया जाए। देश के कई राज्यों में स्थानीय निकायों के चुनाव होने वाले हैं और जहां-जहां भी संभव हुआ पार्टी पूरे दम खम के साथ चुनावी मैदान में उतरेगी। पार्टी सकारात्मक राष्ट्रवाद के एजेंडे के साथ विस्तार अभियान चलाएगी। इस बार पार्टी जमीन पर अपनी पकड़ मजबूत करने के बाद ही चुनावी मैदान में उतरेगी।
कांग्रेस के वोट बैंक पर नजर : आम आदमी पार्टी खुद भी इस बात को समझती है कि कांग्रेस से निराश लोगों ने उसकी जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह फॉर्मूला देश के अन्य राज्यों में आजमाया जा सकता है। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस नेतृत्व के संकट से गुजर रही है। सोनिया गांधी फिलहाल पार्टी की अंतरिम राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, लेकिन उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता इसलिए वह चाहती हैं कि फिर से राहुल गांधी ही पार्टी की बागडोर संभाल लें। राहुल इन्कार कर चुके हैं और सोनिया गांधी परिवार के बाहर किसी व्यक्ति पर भरोसा नहीं करना चाहती हैं। राज्यों में भी जहां-जहां कांग्रेस की सरकार है वहां-वहां गुटबाजी चरम पर है।
राजस्थान में गहलोत बनाम पायलट की लड़ाई चल रही है तो मध्य प्रदेश में कमलनाथ बनाम सिंधिया की। कई राज्यों की जनता तो यह मान ही चुकी है कि कांग्रेस में भाजपा का मुकाबला करने की हिम्मत नहीं है। दिल्ली के चुनाव ने यह बता दिया है कि देश का मुस्लिम समुदाय कांग्रेस से पूरी तरह विमुख हो चुका है और जहां-जहां उसे भाजपा को हराने के लिए बेहतर विकल्प मिलेगा, वो उसके साथ चला जाएगा। भाजपा विरोधी अन्य मतदाताओं का भी बड़ा समूह अब कांग्रेस की बजाय भाजपा से मुकाबला करने वाले दल के साथ ही जाएगा।
कांग्रेस पर मंडराता संकट : वर्ष 2022 में दिल्ली में होने वाले नगर निगम चुनाव को ‘आप’ जोर-शोर से लड़ेगी। इसके अलावा मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान जैसे राज्यों में भी पार्टी निकाय चुनावों में उतर सकती है। जाहिर सी बात है कि इन राज्यों में जैसे-जैसे आप मजबूत होती जाएगी, वैसे-वैसे कांग्रेस कमजोर होती जाएगी। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में ‘आप’ की मजबूती का नुकसान सपा और राजद को भी उठाना पड़ेगा, लेकिन फिलहाल चुनौती कांग्रेस के समक्ष ज्यादा है। कांग्रेस के दिग्गज और अनुभवी नेता इस खतरे को महसूस कर रहे हैं, लेकिन पार्टी आलाकमान के सामने सच बोलने की हिम्मत भला किसमें है।
विडंबना देखिए कि कई कांग्रेसी दिग्गज पार्टी की हार की समीक्षा करने की बजाय आप की जीत पर खुश होकर बयान दे रहे हैं। राजनीतिक हालात भी आज आप के अनुकूल है। दिल्ली में मिली प्रचंड जीत से कार्यकर्ता भी उत्साहित हैं। देश भर में केजरीवाल मॉडल की चर्चा हो रही है। सॉफ्ट हिंदुत्व वाला केजरीवाल स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स कामयाब होता भी नजर आ रहा है तो भला ‘आप’ देश भर में छाने की कोशिश क्यों ना करे।
[वरिष्ठ पत्रकार]
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