मनीष तिवारी। उत्तर प्रदेश में सीमित और नए तौर-तरीकों के साथ चल रहे चुनाव प्रचार में समाजवादी पार्टी का 'जंगलराजÓ और बहुजन समाज पार्टी का 'जातिवादÓ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निशाने पर है। वह जब मतदाताओं से अपनी बात कहते हैं तो अपनी बात के समर्थन में उन प्रसंगों और घटनाओं की याद भी दिलाते हैं जो इतिहास में दर्ज हैं और किसी न किसी स्तर पर आज भी लोगों को प्रभावित करती हैं।

कैराना का पलायन, मुजफ्फरनगर दंगों की जड़ कवाल कांड, बम धमाकों के अभियुक्तों से कथित हमदर्दी जैसे मसले उठाकर वह समाजवादी पार्टी पर सवाल उठाते हैं तो बहुजन समाज पार्टी के शासनकाल की याद दिलाकर भ्रष्टाचार के बड़े मामलों और जातीय सियासत के खतरों को सामने रख देते हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का एजेंडा साफ है। वह हर हाल में लोगों को भारतीय जनता पार्टी के शासन में सुरक्षा का अहसास दिलाना चाहते हैं और राजकाज के लिए इसे ही सबसे बड़ी कसौटी मानते हैं।

वास्तव में यह सुरक्षा ही प्रगति का आधार है, क्योंकि कोई भी एक्सप्रेसवे टोल प्लाजा में गुंडई के साथ व्यर्थ है। कोई शहर सांप्रदायिक तनाव के बीच कारोबार की उम्मीदें नहीं जगा सकता। असुरक्षा का अहसास न तो युवाओं को उनके भविष्य के प्रति आश्वस्त कर सकता है और न महिलाओं को उनके सशक्तीकरण के प्रति।

उद्योग-धंधों के प्रति सकारात्मक रुख : अक्सर समाजवादी दृष्टिकोण उद्योगीकरण के प्रति नकारात्मक भाव रखता नजर आता है। यह दृष्टिकोण शायद यह देखने से इन्कार करे कि जेवर में बनने जा रहा इंटरनेशनल एयरपोर्ट उत्तर प्रदेश में कितना बड़ा परिवर्तन लाने वाला है। उत्तर प्रदेश में इंटरनेशनल एयरपोर्ट की योजना 15 साल से ज्यादा समय तक दिमाग और कागजों से आगे नहीं बढ़ सकी थी। इस दौरान समाजवादी पार्टी का भी राज रहा और बहुजन समाज पार्टी का भी। सपा को क्षेत्र में सियासी समीकरण देखने थे तो बसपा को अपने हित। किसी ने केंद्र पर आरोप लगाया तो किसी ने जमीन न मिलने का रोना रोया। यह योगी थे जिन्होंने इसकी अहमियत और जरूरत समझी और इस योजना को धरातल पर उतारने का काम किया।

जेवर ग्रेटर नोएडा में है, जिसकी अपनी पहचान है, अपने उद्योगों के साथ राष्ट्रीय राजधानी से नजदीकी की विशेषता इसे और अहमियत देती है। नोएडा, ग्रेटर नोएडा और गाजियाबाद वे शहर हैं जो उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों से भी भरे हुए हैं। लोग काम-धंधे और रोजगार की चाहत में आते हैं और अपने घरों को याद रखते हुए भी यहीं के हो जाते हैं। उन्हें मालूम है कि दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे और जेवर एयरपोर्ट विकास के दो काम भर नहीं हैं। ये वर्षों या फिर कहें कि दशकों की समस्याओं के दलदल से निकले हैं, जो कारोबार के साथ-साथ जीवन की सुगमता के माध्यम भी बन गए हैं या बनने वाले हैं। ऐसे विकास कार्य एक या दो विधायकों को नहीं जिताते, बल्कि सत्ता का आधार बनाते हैं। उत्तर प्रदेश को ऐसे ही आधारों की आवश्यकता है।

एनसीआर यानी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का उत्तर प्रदेश से लगता हिस्सा 11 सीटों की जंग के मैदान से ज्यादा सियासत के यूपी गेट की चाबी है। यहां सवाल किसानों के साथ झूठी हमदर्दी से ज्यादा आम जनता के साथ सच्ची सहानूभूति का है। वे वाकई सहानुभूति के पात्र हैं जो एक साल तक किसानों के नाम पर चले सड़क रोको अभियान के कारण दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे का इस्तेमाल नहीं कर सके या जेवर एयरपोर्ट जैसे किसी प्रोजेक्ट का इंतजार ही करते रहे। इन लोगों के साथ सहानुभूति इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि उन्होंने दिल्ली के दूसरे छोरों पर हालात बदलते देखे हैं। सियासत एक्सप्रेसवे और एयरपोर्ट वाली ही होनी चाहिए, किसी समुदाय को वोट बैंक बनाने वाली नहीं।

चुनाव रोजगार के अवसरों, लोगों की सुरक्षा और समाज कल्याण की योजनाओं पर लड़े जाने चाहिए, न कि जाति और मजहब के नाम पर। विकास और सुधार को गरीब-किसान विरोधी ठहराने और उद्योगों-उद्यमियों को खलनायक बताने वाले राजनेता दोहरे चेहरे का दूसरा नाम हैं। ये समूहों को भड़काकर आंदोलित कर सकते हैं, एक्सप्रेसवे पर धरनों पर बैठा सकते हैं, गणतंत्र दिवस पर दिल्ली पर धावा बोल सकते हैं, किसी पार्टी का हौवा खड़ा कर किसी समुदाय को वोट बैंक बना सकते हैं, मुफ्त बिजली-पानी का लालच दे सकते हैं, लेकिन ऐसे अवसर-स्थान नहीं बना सकते जहां से आम जनता की उम्मीदें वाकई उड़ान भर सकें।