आचार्य राघवेंद्र प्रसाद तिवारी। उच्च शिक्षा व्यवस्था किसी भी राष्ट्र के सांस्कृतिक एवं आर्थिक विकास की धुरी होती है जो इसे दिशा एवं गति प्रदान करती है। भारत जैसे देश में जहां युवा आबादी का हिस्सा सर्वाधिक है, वहां उच्च शिक्षा की भूमिका और भी अधिक सार्थक हो जाती है। युवाओं की ऊर्जा को उत्पादक एवं सृजनशील बनाने का पुनीत दायित्व हमारे उच्च शिक्षा संस्थानों पर ही है। इन संस्थानों में युवाओं को उत्पादक नागरिक बनाने के साथ-साथ उनका सामाजिक-सांस्कृतिक समावेशन भी होना चाहिए। इसके अनुरूप ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 उच्च शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधारों की संस्तुतियां करती है। इन सुधारों में गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा में पहुंच को सुगम बनाना, नामांकन दर में बढ़ोतरी, शैक्षिक प्रतिफल युक्त बहुविषयी पाठ्यचर्या, कौशल विकास, अनुभवजनित शिक्षण, मूल्यांकन और समस्या निष्पादन हेतु शोध जैसे आयाम सम्मिलित हैं।

ध्यातव्य है कि उच्च शिक्षा में सुधार की इन संस्तुतियों के साकार होने की एक न्यूनतम शर्त स्नातक स्तर पर विद्यार्थियों के प्रवेश के प्रश्न को संबोधित करना है। हमें उच्च शिक्षा में प्रवेश के लिए ऐसी व्यवस्था को विकसित करने की आवश्यकता है जो विद्यार्थियों को उनकी क्षमताओं, रुचियों और दक्षताओं के आधार पर उच्च शिक्षा में पाठ्यक्रम के चयन और प्रवेश के अवसरों को उपलब्ध कराए।

देश में होने वाली बोर्ड परीक्षाओं के अंकों का सर्वप्रमुख उपयोग विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए किया जाता है। सामान्यत: ऐसा देखा गया है कि विभिन्न परीक्षा बोर्डों द्वारा दिए गए अंकों में विचलन होता है। इनका मानकीकरण नहीं किया जा सकता है। इस स्थिति में कुछ बच्चों को लाभ मिलता है और वहीं दूसरी ओर एक बड़ी संख्या में बच्चे इच्छित पाठ्यक्रम और संस्थान में प्रवेश से वंचित रह जाते हैं। इस कारण इनके आधार पर विद्यार्थियों का चयन निरपेक्ष नहीं रह जाता है। कुछ विश्वविद्यालयों द्वारा अलग से आयोजित प्रवेश परीक्षाओं में प्राप्तांकों के आधार पर स्नातक में प्रवेश दिया जाता है जिससे बच्चों पर परीक्षा का दबाव बनता है एवं बड़े पैमाने पर पैसा, समय और ऊर्जा बर्बाद होती है। ऐसे में विद्यार्थियों के अवसर भी सीमित हो जाते हैं। इस तरह से स्नातक स्तर पर चयन की प्रचलित पद्धति पुनरुत्पादन का कार्य करती है। इससे चुनिंदा बोर्डों, क्षेत्रों, भाषाई माध्यमों और वर्गों के विद्यार्थी ही लाभान्वित हो रहे हैं।

प्रवेश प्रक्रिया की उक्त प्रत्यक्ष और परोक्ष बाधाओं को दूर करने के लिए स्नातक स्तर पर संयुक्त प्रवेश परीक्षा का आयोजन एक कारगर उपाय है। इस परीक्षा का ध्येय विद्यार्थियों के लिए परीक्षा रूपी बाधा को खड़ा करना नहीं है। इसका परिकल्पित स्वरूप निदानात्मक है जो अभिवृत्ति और रूचियों को प्राथमिकता देगा। यह प्रवेश परीक्षा पुस्तकीय ज्ञान एवं रटंत प्रणाली वाली व्यवस्था का विकल्प बनेगी। इसमें आलोचनात्मक व सृजनात्मक चिंतन, संवेगात्मक बुद्धि, निर्णय लेने की क्षमता और संप्रेषण की कुशलताओं आदि का आकलन किया जाएगा। यह परीक्षा उच्च शिक्षा के प्रतिष्ठित संस्थानों के दरवाजों को वनवासी, दलित, सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े और दूर-दराज के क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों के लिए भी खोलने का कार्य करेगी। वे एक ही परीक्षा में अपने प्रदर्शन के आधार पर देश के उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश प्राप्त कर सकेंगे।

प्रवेश परीक्षा की प्रवृत्ति को विद्यार्थी केंद्रित और समावेशी बनाने के लिए इसका आयोजन 13 भारतीय भाषाओं में किया जाएगा। इसमें अभिक्षमता परीक्षा और विषय आधारित ज्ञान दोनों घटकों को रखा गया है। परीक्षा केंद्र देश के दूरदराज एवं सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों के क्षेत्रों में होंगे। इसके अतिरिक्त यह पहल विद्यार्थियों पर आर्थिक बोझ कम करेगी। वर्तमान में उन्हें प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रवेश के लिए एकाधिक फार्म भरने पड़ते हैं। मसलन बनारस हिंदू विश्वविद्यालय स्नातक व परास्नातक स्तर पर और दिल्ली विश्वविद्यालय तथा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय परास्नातक स्तर पर प्रवेश के लिए ऐसी परीक्षाओं का आयोजन अलग-अलग करवा रहे हैं। साथ ही देश के 14 केंद्रीय विश्वविद्यालय पिछले कई वर्षों से एक साथ संयुक्त प्रवेश परीक्षा का सफलतापूर्वक आयोजन कर रहे हैं। इन प्रयोगों के आरंभिक रुझान स्नातक एवं परास्नातक स्तर पर संयुक्त प्रवेश परीक्षा के पक्ष में प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। जैसे पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय में 20 से ज्यादा राज्यों के विद्यार्थी एक साथ शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।

संयुक्त प्रवेश परीक्षा की इन्हीं विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों ने इस पहल की सराहना की है और वे आगामी सत्र से इसे स्वीकार करने जा रहे हैं। कोविड महामारी जनित परिस्थितियों को देखते हुए सुरक्षा की दृष्टि से भी यह पहल अत्यधिक उपयोगी होगी। उच्च शिक्षा में प्रवेश हेतु यह पहल प्रक्रियागत विश्वसनीयता और सुगमता को बढ़ाने में सहयोग करेगी। इसके माध्यम से सीखने की प्रक्रिया में परीक्षा के दबाव को कम किया जा सकेगा। अंतत: विभिन्न बोर्डों द्वारा आयोजित परीक्षाओं की आंतरिक विसंगतियां चयन को प्रभावित नहीं करेगी, जिससे विद्यार्थियों के लिए शिक्षा प्राप्ति के अवसर की समानता सुनिश्चित होगी। नेट परीक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर शोध पाठ्यक्रमों में प्रवेश होने का निर्णय भी इसी परिपे्रक्ष्य में प्रासंगिक है।

प्रारंभिक तौर पर यह संयुक्त परीक्षा केवल केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रवेश हेतु आयोजित होगी, किंतु बाद में इसमें राज्यों के द्वारा संचालित विश्वविद्यालय भी भाग ले संकेंगे। इससे हमारे युवा भारत की सांस्कृतिक विविधताओं को अधिक निकटता से परख और समझ पाएंगे एवं उन्हें भारत दर्शन का भी बोध हो सकेगा। अत: भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय की यह सार्थक पहल एक भारत, श्रेष्ठ भारत की संकल्पना को साकार करने में भी सहायक सिद्ध होगी। (ये लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं)

(लेखक पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय, बठिंडा के कुलगुरु हैं)