प्रोफेसर पुष्‍पेश पंत। शक्ति की आराधना और साधना नवरात्र का पर्व शक्ति की आराधना को समर्पित है। महालया से ही मंत्रोच्चार आरंभ हो जाता है। या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रुपेण संस्थिता, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:। दुष्टों का दमन करने वाली सिंहवाहिनी दुर्गा का साभार स्मरण भावविह्वल कर देता है। पर क्या सोचने की बात यह नहीं कि शक्ति की आराधना को शक्ति की साधना से अलग नहीं किया जा सकता? कब तक हम ‘असुर संहारिणी, खल निस्तारणी, खप्पर करधारिणी’ माता कालिका’ के अवतरित होने की प्रतीक्षा करते रहेंगे? दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा के दिन पारंपरिक अनुष्ठान वाले पांचांग में निर्धारित हैं।

हम अपने पाठकों को यह सुझाना चाहते हैं कि यह सभी शक्ति के विभिन्न आयामों को प्रतीकात्मक रूप से प्रतिबिंबित करते हैं। सौम्य शैल पुत्री, गौरी, पार्वती हों या रौद्र रूप धारिणी महाकाली, यह सभी हमें शक्तिके शांत, कल्याणकारी तथा उद्विग्न अवतारों के बारे में सोचने को विवश करते हैं। अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जगत में शक्ति ही एकमात्र शाश्वत सनातन सत्य है, धर्म और कर्म की कसौटी। हमारे पड़ोसी बैरी पाकिस्तान और चीन सैनिक, आर्थिक तथा बौद्धिक शक्ति की ही भाषा समझ सकते हैं। नवरात्र के व्रत-उपवास रखें पर यह बात कतई न भुलाएं कि शक्ति की आराधना अनिवार्यत: शक्ति की साधना से जुड़ी है। दुर्गा-काली, लक्ष्मी और सरस्वती का आशीर्वाद उसी साधक को प्राप्त हो सकता है जो अपनी अंतर्निहित शक्ति को जगा सके। निराला की कालजयी कविता ‘राम की शक्तिपूजा’ इसी सत्य को उद्घाटित करती है। अर्जुन के पौरुष को जगाने के लिए श्रीकृष्ण गीता का उपदेश सुना यही काम करते हैं।

पाकिस्तान का ‘राक्षसीकरण’ मात्र दुष्प्रचार नहीं, एक त्रासद कड़वा सच है। जो देश कभी भारत का सहोदर समझा जाता था पिछले कई दशक से आसुरी शक्तियों द्वारा रक्तबीज दानव में बदल गया है। तालिबान का आधिपत्य सर्व शक्तिमान समझी जाने वाली सेना तथा खुफिया संगठनों पर स्थापित हो चुका है। हमारा दुर्भाग्य है कि भारत आकार में और क्षमता में कहीं बड़ा होने के बावजूद इनका मुंहतोड़ जवाब नहीं दे पाता है। इसका असली कारण यह है कि हमने यह बात भुला दी है कि ‘भय बिनु होत ना प्रीत’। बारंबार सुलह-समझौते की एकतरफा पेशकश ने पाकिस्तान के मन में यह भावना बलवान की है कि वह भयादोहन से मनमांगी मुराद हासिल कर सकता है। अपने को आधुनिक समझने वाले तथा उधार के पश्चिमी धर्मनिरपेक्ष चश्मे से दुनिया देखने वाले विश्लेषक यह बात समझने में पूरी तरह असमर्थ हैं कि वास्तव में भारत-पाक का असली कारण धर्म युद्ध है। इसे हिंदू-मुसलमान संप्रदायों का वैमनस्य नहीं कहा जाना चाहिए। पाकिस्तान में जनरल जिया के काल से इस्लाम का जो डरावना विकृत, आक्रामक असहिष्णु वहाबी रूप देखने को मिला है वह सच्चे इस्लाम का प्रतिनिधित्व कतई नहीं करता।

विडंबना यह है कि इस राक्षस का मुकाबला करते भारत ने जाने क्यों शस्त्र त्याग की मुद्रा अपनाई है। यह रणनीति आत्मघातक साबित हो रही है। पुरानी कहावत है लातों के भूत बातों से नहीं मानते। हमारे खून के प्यासे पाकिस्तान के शूल का इलाज ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ नहीं जड़ से निकाल फेंकने वाली शल्य चिकित्सा है। चीन के संदर्भ में सैनिक शक्ति ही नहीं, आर्थिक शक्ति की साधना और संचय भी जरूरी है। जब तक हम आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर नहीं हो जाते तब तक अंतरराष्ट्रीय व्यापार के तराजू का पलड़ा चीन के पक्ष में ही झुका रहेगा। पाकिस्तान और चीन के मुकाबले के लिए कठोर शक्ति का प्रदर्शन (हमेशा प्रयोग नहीं) परमावश्यक है तो नेपाल, बांग्लादेश,श्रीलंका के साथ कोमल शक्ति का विकल्प विचारणीय है। रही बात अमेरिका एवं रूस जैसी महाशक्तियों की, तो भारत के लिए अपनी बौद्धिक संपदा को समृद्ध बनाने वाली सरस्वती की साधना परमावश्यक है। इसके अभाव में लक्ष्मी चंचला ही रहेंगी।

यह समझना परमावश्यक है कि वैश्विक चुनौतियोंं वाले आधुनिक युग में शक्ति की कठिन साधना ही हमें आसुरी ताकतों को पराजित करने की सामथ्र्य दिला सकती है। यह आसुरी शक्तियां और राक्षसी प्रवृत्तियां बाहर ही नहीं हमारे भीतर भी विद्यमान रहती हैं। शक्ति साधना ही हमें उस ऊर्जा से आविष्ट कर सकती है जो अंतर्जगत और और बाहरी संसार में उद्दंड शत्रुओं के उत्पात को समाप्त करेगी। नवरात्र का पर्व मंगलमय और कल्याणकारी हो, इसी कामना के साथ शक्ति साधना का संकल्प लें।

(लेखक स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज, जेएनयू से संबं‍धित हैं)