[ पीयूष पांडे ]: अब मुझे पता चला कि हमारी शिक्षा व्यवस्था में एक बड़ा झोल है और वह यह कि मार्केट में जिस टाइप का रोजगार सबसे ज्यादा होता है, उसका कायदे का कोर्स किसी यूनिवर्सिटी में होता ही नहीं है। जैसे इन दिनों फिर विरोध-प्रदर्शन की बहार आई हुई है, लेकिन उसके गुर सिखाने वाला कोई पाठ्यक्रम ही नहीं। जिस तरह बारात में आया हर बाराती नागिन नृत्य नहीं कर सकता उसी तरह हर प्रदर्शनोत्सुक व्यक्ति प्रदर्शन नहीं कर सकता।

प्रदर्शन एक कला है, टायर जलाना, बस फूंकना, गाड़ियां रोकना

प्रदर्शन एक कला है। टायर जलाना, बस फूंकना, गाड़ियां रोकना, आंसू गैस के गोले फेंके जाने पर सांस रोककर खड़े रहना और भयंकर सर्दी में भी वाटर कैनन के आगे सीना तानकर खड़े होने में एक्सपर्टीज की भी दरकार होती है। पहली बार प्रदर्शन कर रहा व्यक्ति इतना योग्य नहीं होता कि पुलिस से सीधे पंगा ले सके। चूंकि ऐसा कोई कोर्स किसी यूनिवर्सिटी में संचालित नहीं हो रहा, इसलिए प्रदर्शन के पूर्व अनुभवों के आधार पर कुछ बिंदुओं पर प्रदर्शनोत्सुकों का ध्यान आकर्षित करना चाहता है। इसे प्रदर्शनकारी बनने का क्रैश कोर्स भी कहा जा सकता है।

यदि आप नए प्रदर्शनकारी हैं तो बुलेटप्रूफ जैकेट और हेलमेट पहनकर प्रदर्शन करें

इसका पहला सबक यही है कि यदि आप नए-नए प्रदर्शनकारी हैं तो कृपया बुलेटप्रूफ जैकेट और हेलमेट पहनकर प्रदर्शन करें, क्योंकि असली उपद्रवी और दंगाई अक्सर तोड़फोड़-हंगामा और आगजनी के बाद मौका-ए-वारदात से रफूचक्कर हो जाते हैं और पुलिस के हत्थे आप जैसे नए रंगरूट लग जाते हैं जिन्हें पिटाई का भरपूर प्रसाद भी मिलता है। पुलिस नए-पुराने चावलों की कुटाई में कोई अंतर नहीं करती।

सीएए के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे 90 फीसद लोगों को यह नहीं मालूम कि यह क्या बला है

दूसरे सबक में यह समझ लें कि आप प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं, क्योंकि अक्सर प्रदर्शन सिर्फ टीवी कैमरों के सामने तुर्रम खां बनने के लिए होता है। इसमें तमाम प्रदर्शनकारियों को पता ही नहीं होता कि वे जिस मुद्दे को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं, वह वास्तव में है क्या? अगर नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों से इस पर सवाल करेंगे तो 90 फीसद नहीं बता पाएंगे कि यह क्या बला है? वे सिर्फ इसलिए प्रदर्शन कर रहे हैं,क्योंकि उनके साथी कर रहे हैं या फिर उन्हें खुद को सोशल मीडिया पर क्रांतिकारी दिखाने वाली तस्वीर लगानी है। तीसरे सबक में गांठ बांध लें कि आपकी पत्थरबाजी आपके साथियों का भी मुंह तोड़ सकती है।

प्रदर्शन के दौरान टीवी चैनल के कैमरा सामने आते ही चिल्लाने की कोशिश करें

चौथा सबक यही होगा कि टेलीविजन चैनल के कैमरों के सामने आते ही किस मुद्रा में कितने डेसिबल में नारे लगाने हैं, ये सिर्फ एक्सपर्ट प्रदर्शनकारी ही जानता है। इसलिए प्रदर्शन के दौरान हमेशा चिल्लाते रहकर गले पर बोझ नहीं डालना चाहिए। केवल कैमरा सामने आते ही भीड़ से आगे निकलकर चिल्लाने की कोशिश करें। पांचवा सबक यही कि प्रदर्शन की योजना से पहले अच्छे से खा-पी लें, क्योंकि प्रदर्शन के दौरान कई बार काफी भागना दौड़ना पड़ता है, जिसमें काफी कैलोरी नष्ट होती है। कुछ मौकों पर पुलिस की धरपकड़ के बाद प्रदर्शनकारी को थाने में घंटों बैठना भी पड़ता है।

हंगामेबाजी के दौरान पुलिस पकड़ ले तो घबराएं नहीं

छठा सबक यही कि हंगामेबाजी के दौरान पुलिस पकड़ ले तो घबराएं नहीं। पहले हाथ जोड़कर माफी मांगें और खुद को बेकसूर बताएं। पुलिसवाले नहीं मानें तो पहला डंडा पड़ते ही जमीन पर गिर जाएं और पैरों को पेट की तरफ मोड़कर गुड़ीमुडी हो जाएं। अब सातवां सबक समझ लें कि अगर आप ट्रेनी प्रदर्शनकारी हैं या बिना कुछ जाने-समझे प्रदर्शन करने आ गए हैैं तो यह जान लें कि तोड़फोड़ आगजनी करने पर भी आप संविधान, लोकतंत्र की दुहाई देंगे तो अपनी फजीहत ही कराएंगे। थाना-कचहरी के चक्कर अलग से लगाएंगे।

यदि आप छात्र हैं तो प्रदर्शन सीखें, पढ़ाई तो होती रहेगी

आठवां सबक यही रहेगा कि यदि आप छात्र हैं तो भी प्रदर्शन सीखें। पढ़ाई वगैरह तो होती रहेगी और एक बार क्लास में फेल भी हो गए तो कोई बात नहीं। प्रदर्शन में एक्सपर्टीज आपको राजनीति में भी दूर तक ले जा सकती है। आपको शायद मालूम न हो, लेकिन हर नेता पर प्रदर्शन के पांच-दस केस तो दर्ज हैं ही, जिन्हें वह झूठा बताता है।

प्रदर्शन आपका अधिकार है, लेकिन प्रदर्शन को दंगा न बनाएं

नौवें सबक के तहत प्रदर्शन से पहले एक्टिंग की छोटी वर्कशॉप कर सकें तो और भी बेहतर इससे आपके प्रदर्शन में भावप्रवणता बढ़ेगी। और अंत में दसवां एवं अंतिम सबक यह कि प्रदर्शन आपका अधिकार है, लेकिन प्रदर्शन को दंगा न बनाएं, क्योंकि दंगाई को गोली लगने पर किसी को अफसोस नहीं होता।

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार हैं ]