पंकज चतुर्वेदीNew National Education Policy 2020 नई शिक्षा नीति का मूल उद्देश्य सभी को उच्च गुणवत्ता की शिक्षा प्रदान करना है। इसके लिए ढेर सारे प्रायोगिक, ई-लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी तकनीक के इस्तेमाल के साथ शिक्षण संस्थाओं को साधन संपन्न बनाने पर ज्यादा ध्यान दिया गया है। इस नीति में शिक्षकों के अत्याधुनिक तकनीक के साथ प्रशिक्षण, उन्हें विभिन्न दूरस्थ शिक्षा उपकरणों पर काम करने, ई-लर्निंग के नए पाठ्यक्रम तैयार करने, स्थानीय भाषा बोली में शिक्षा और एक से अधिक भाषा के ज्ञान के लिए सॉफ्टवेयर के प्रयोग के सतत प्रशिक्षण की बात की गई है।

इस नीति के तहत की जाने वाली तमाम कवायदों से स्पष्ट है कि अब दूरस्थ अंचलों तक भवन बनाने, उसमें शिक्षक व अन्य स्टाफ की नियुक्ति करने, वे सही समय पर पहुच रहे हैं या नहीं, इसकी निगरानी करने जैसे खर्चीले काम के बनिस्पत सरकार हर हाथ में स्मार्टफोन या टैबलेट देना चाहती है, ताकि दूर बैठा एक शिक्षक बच्चों को पढ़ा सके और उनकी परीक्षा भी ले सके। इस नीति के मूल में शिक्षक को बदलती दुनिया के मुताबिक प्रशिक्षित करने पर बहुत अधिक और समयबद्ध जोर दिया गया है। स्कूलों में शिक्षकों के लिए ऐसे उपयुक्त उपकरण उपलब्ध कराए जाएंगे, ताकि वे सीखने-सिखाने के तरीकों का ई-सामग्री के साथ सामंजस्य बैठा सकें और ऑनलाइन व डिजिटल शिक्षा-तकनीक का उचित इस्तेमाल सुनिश्चित कर सकें।

ऑनलाइन शिक्षण मंच और उपकरण, मौजूदा ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म जैसे स्वयं व दीक्षा आदि को इस तरह विस्तारित किया जाएगा, ताकि शिक्षकों को शिक्षार्थियों की प्रगति की निगरानी के लिए एक उपयोगकर्ता अनुकूल समृद्ध माध्यम मिल सके। इसके साथ ही बच्चों को डिजिटल साक्षरता, जिज्ञासा, सृजनशीलता, पहल और सामाजिक कौशलों की आवश्यकता आदि के बारे में विस्तार से बताया जा सकेगा। हालांकि यह भी सच है कि स्कूल में बच्चों को स्मार्टफोन का इस्तेमाल शिक्षा के रास्ते में बाधक माना जाता है, परिवार भी बच्चों को अनचाहे तरीके से कड़ी निगरानी के बीच स्मार्टफोन थमाते हैं। वास्तविकता यह है कि सस्ते डाटा के साथ हाथों में बढ़ रहे स्मार्टफोन का सही तरीके से इस्तेमाल खुद को शिक्षक कहने वालों के लिए एक खतरा सरीखा है।

भारत में शिक्षा का अधिकार व कई अन्य कानूनों के जरिये बच्चों के स्कूलों में पंजीयन का आंकड़ा और साक्षरता दर में वृद्धि निश्चित ही उत्साहवर्धक है, लेकिन जब गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात आती है तो यह आंकड़ा हमें शर्माने को मजबूर करता है कि हमारे यहां आज भी लगभग 10 लाख शिक्षकों की कमी है। जो शिक्षक हैं भी, उनमें से अधिकांश केवल पाठ्यक्रम को पढ़ाने को ही अपनी ड्यूटी समझते हैं। कुछ इक्का-दुक्का नवाचार की बात करते हैं तो उन्हें सिस्टम का अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पाता है। आज स्कूली बच्चे को मिड-डे मील लेना हो या फिर वजीफा, हर जगह डिजिटल साक्षरता की जरूरत महसूस हो रही है।

हम पुस्तकों में पढ़ाते हैं कि गाय रंभाती है या शेर दहाड़ता है। कोई भी शिक्षक यह सब स्मार्टफोन या टैबलेट पर सहजता से बच्चों को दिखा कर अपने पाठ को कम शब्दों में सहजता से समझा सकता है। किसी दृश्य को चित्र या वीडियो के रूप में सुरक्षित रखना कला के साथ-साथ सतर्कता का भी पाठ है। एक मोटा अनुमान है कि अभी हमें ऐसे करीब साढ़े छह लाख शिक्षक चाहिए जो सूचना-विस्फोट के युग में तेजी से किशोर हो रहे बच्चों में शिक्षा की उदासी व उबासी दूर कर, नए तरीके से, नई दुनिया की समझ विकसित करने में सहायक हों। इस तरह के नए माध्यम में एक शिक्षक की सृजनात्मक अभिरुचि, सकारात्मक दृष्टिकोण और बाल मन को परखने की क्षमता व्यापक रूप से असर कर सकती है।

[स्वतंत्र टिप्पणीकार]