[ विजय गोयल ]: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ऐसे अनुपम राजनेता थे जिन्होंने स्वतंत्रता से पूर्व और पश्चात भी अपना जीवन देश और देशवासियों के उत्थान एवं कल्याण हेतु लगाया। उनके कार्यों से देश का मस्तक ऊंचा हुआ। अटल जी का राष्ट्र के प्रति समर्पण भाव शुरू से प्रबल था। इसी विचारधारा ने उन्हें 21 अक्टूबर, 1951 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा स्थापित भारतीय जनसंघ से जोड़ा। वह 1957 में भारतीय जनसंघ के चार सांसदों में से एक थे। तब से लेकर देश का प्रधानमंत्री बनने तक अटल जी ने सामाजिक और राजनीतिक जीवन के असंख्य उतार-चढ़ाव देखे।

अटल जी 1996 से 2004 के बीच तीन बार भारत के प्रधानमंत्री रहे। बदलते राजनीतिक पटल पर गठबंधन सरकार को सफलतापूर्वक बनाने, चलाने और देश को विश्व में एक शक्तिशाली गणतंत्र के रूप में प्रस्तुत कर सकने की क्षमता अटल जी जैसे करिश्माई नेता के बूते की ही बात थी। मेरा सौभाग्य रहा कि बाकी मंत्रालयों की जिम्मेदारी के अलावा प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री के तौर पर मुझे अटल जी को और भी करीब से देखने का सौभाग्य मिला। वह विषम से विषम परिस्थितियों में भी शांत चित्त और दृढ़ रहते थे। भारत के सामथ्र्य, शक्ति और गौरव को बढ़ाने के लिए वह हमेशा तत्पर रहते थे। अटल जी जब भी संसद में बोलते थे, पूरा सदन उन्हें एकाग्र होकर सुनने के लिये आतुर रहता था। संयुक्त राष्ट्र में अपने भाषण से उन्होंने दो बार विश्व पटल पर्र ंहदी का परचम लहराया।

एक प्रधानमंत्री के रूप में मैंने उन्हें सदा शांत चित, धैर्यवान और हंसता हुआ पाया। सभी सहयोगी दलों को साथ लेकर राजग की गठबंधन सरकार को सफलतापूर्वक पांच साल तक चलाना एक कठिन कार्य था, लेकिन वह सभी सहयोगी दलों के नेताओं को साथ लेकर चलते थे। सबके मत, समस्याएं और विचार संजीदगी से सुनते थे। लिहाजा उनसे मिलने वाला हर व्यक्ति संतुष्ट होकर ही लौटता था। उनके जीवन में कभी भी किसी मोड़ पर व्यक्तिगत विरोधाभास नहीं देखा। इतना ही नहीं, विपक्षी दलों के नेताओं के बीच भी उनका उतना ही आदर था।

प्रधानमंत्री के तौर पर वह एक सर्वदलीय नेता थे और सबको साथ लेकर चलने का हुनर जानते थे। जब संसद पर हमला हुआ तब मैं संसद में अपने कार्यालय के पास ही था जो उनके कार्यालय से सटा हुआ था। इस हमले के बाद जब मैं उनके निवास पर गया तो मैने उन्हें अविचलित पाया। पाकिस्तान से दोस्ती का हाथ बढ़ाने के पीछे के खतरों से वह अच्छी तरह से वाकिफ थे, लेकिन तब भी उन्होंने दरियादिली दिखाकर दोस्ती का हाथ बढ़ाया।

पोखरण में परमाणु परीक्षण अटल जी की दृढ़ता की बेहतरीन मिसाल है। वाजपेयी जी के समय में देश ने दूरसंचार क्रांति का नया दौर देखा। दूरसंचार से संबंधित कोर्ट के मामलों के तेज निपटारे के साथ ट्राई की सिफारिशें लागू की गईं। स्पेक्ट्रम का आवंटन तेजी से हुआ और मोबाइल क्रांति की शुरुआत हुई। अटल जी ने देश के बड़े शहरों को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिये 5,846 किलोमीटर की स्वर्णिम चतुर्भुज योजना शुरू की। इसे उस समय की विश्व के सबसे लंबे राजमार्गों वाली परियोजना कहा गया। देश के गांवों को सड़कों से जोड़ने के लिये प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना अटल जी की कार्यकाल में शुरू की गई। इसकी बदौलत आज देश के लाखों गांव सड़कों से जुड़ पाए हैं।

अटल जी ने सभी के लिए बुनियादी शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए 2001 में सर्व शिक्षा अभियान शुरू किया। वाजपेयी ने दिल्ली-लाहौर बस सेवा शुरू करके पाकिस्तान के साथ शांति और दोस्ती की भी वकालत की। भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ती और बेहतर संबंधों के लिये लाहौर घोषणापत्र जारी किया गया। वाजपेयी के नेतृत्व में पाकिस्तान से तीन महीने लंबा कारगिल युद्ध भी लड़ा गया जिसमें हुई जीत ने उनकी राजनीतिक छवि को मजबूत किया। उन्होंने अमेरिका के साथ भारत के घनिष्ठ संबंध बनाए। वाजपेयी और अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने ऐतिहासिक विजन दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए।

राजनीति में दिग्गज राजनेता, विदेश नीति में संसार भर में मान्य कूटनीतिज्ञ, लोकप्रिय जननायक और कुशल प्रशासक होने के साथ-साथ वह एक अत्यंत सक्षम और संवेदनशील कवि, लेखक और पत्रकार भी रहे। विभिन्न संसदीय प्रतिनिधिमंडलों के सदस्य और विदेश मंत्री तथा प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने विश्व के अनेक देशों की यात्राएं की और भारतीय कूटनीति तथा विश्वबंधुत्व का ध्वज लहराया। आजीवन अविवाहित, अद्भुत व्यक्तित्व के धनी अटल बिहारी वाजपेयी पढ़ने-लिखने, सिनेमा देखने, यात्राएं करने और खाना पकाने-खाने के शौकीन रहे। एक बार मैंने अटल जी के जीवन के अनजाने पहलुओं को जानने के लिये उनसे कुछ निजी सवाल पूछे जिनके जवाब उन्होंने बड़ी बेबाकी से दिए। अटल जी का कहना था कि मैं अपने जीवन का हर पल गंभीरता से बिताते हुए भारत को एक महान देश के रूप में देखना चाहता हूं।

संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में दिए भाषण को वह अपने जीवन का सबसे यादगार दिन मानते थे। उन्हें धोती कुर्ता और कभी-कभी पठानी सूट पहनना पसंद था। उन्हें नीला रंग सबसे अधिक प्रिय था। खाने में खिचड़ी, मालपुआ, चाइनीज और मछली उन्हें प्रिय थे। पर्यटन स्थल से तौर पर मनाली, अल्मोड़ा और माउंट आबू उन्हें बेहद पसंद थे।

देश की आर्थिक उन्नति, वंचितों के उत्थान और महिलाओं तथा बच्चों के कल्याण की चिंता उन्हें हरदम रही। राष्ट्र सेवा हेतु राष्ट्रपति द्वारा पद्म विभूषण से अलंकृत वाजपेयी को लोकमान्य तिलक पुरस्कार और सर्वोत्तम सांसद, पंडित गोविन्द बल्लभ पंत पुरस्कार और भारत रत्न सहित अनेक पुरस्कारों, सम्मानों से विभूषित किया गया। कई दशकों तक भारतीय राजनीतिक पटल पर छाए रहने के बाद उम्र के कारण बढ़ती शारीरिक अक्षमता के कारण राजनीतिक परिदृश्य से धीरे धीरे ओझल से होते गए। आज भले ही वह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके विचार सदा भारत को सफल नेतृत्व देने वाले प्रधानमंत्रियों और समूचे देश को दिशा देने वाले हैं।

अटल जी को विनम्र श्रद्धांजलि देते हुए उनके एक प्रखर संबोधन का स्मरण करना चाहूंगा, ‘भारत जमीन का टुकड़ा नहीं है, जीता-जागता राष्ट्र पुरुष है। हिमालय इसका मस्तक है, गौरी शंकर शिखा है। कश्मीर किरीट है, पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं। विंध्याचल कटि है, नर्मदा करधनी है। पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघाएं हैं। कन्याकुमारी उसके चरण हैं, सागर उसके चरण पखारता है। पावस के काले-काले मेघ इसके कुंतल केश हैं। चांद और सूरज इसकी आरती उतारते हैं। यह वंदन की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है, अभिनंदन की भूमि है। यह तर्पण की भूमि है। इसका कंकर-कंकर शंकर है, इसका बिंदु-बिंदु गंगाजल है। हम जिएंगे तो इसके लिए और मरेंगे तो इसके लिए।’

[ लेखक संसदीय कार्य राज्यमंत्री हैं और अटल जी के साथ प्रधानमंत्री कार्यालय में मंत्री रह चुके हैं ]