नई दिल्ली [ ए. सूर्यप्रकाश ]। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा हज सब्सिडी को खत्म करने का फैसला छद्म सेक्युलरिज्म और अल्पसंख्यक तुष्टीकरण पर पहला सबसे बड़ा हमला है। हालांकि पिछले सात दशकों के दौरान केंद्र में करीब-करीब सभी प्रमुख राजनीतिक दल सत्ता में रहे हैं, लेकिन किसी ने भी मुस्लिमों की नाराजगी के डर से इस मुद्दे को छूने की हिम्मत नहीं दिखाई। अंतत: मोदी सरकार ने यह जोखिम मोल लेने का निर्णय किया है, खासकर 2012 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जिसमें उसने केंद्र सरकार को इस व्यवस्था को दस वर्षों में खत्म करने का निर्देश दिया था। न्यायालय के फैसले ने ही मोदी सरकार को यह कदम उठाने के लिए नैतिक और कानूनी अधिकार प्रदान किए थे। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के अनुसार अब इस राशि का उपयोग मुस्लिम महिलाओं और लड़कियों की शिक्षा और दूसरे सामाजिक कल्याण की योजनाओं पर किया जाएगा। हज सब्सिडी 1990 में 10 करोड़ रुपये से बढ़कर 2012 में 836 करोड़ रुपये हो गई थी। इस दौरान हज यात्रियों की संख्या भी 20 हजार से बढ़कर 1.50 लाख हो गई थी।

सभी धर्मों के साथ समान व्यवहा

हज सब्सिडी लंबे समय से कांग्रेस के समर्थकों तथा उसके सहयोगियों और भाजपा समर्थकों तथा उसके वैचारिक सहयोगियों के बीच विवाद की एक बड़ी वजह रही है। कांग्रेस से जुड़े लोग जो अल्पसंख्यक वोट को लुभाते हैं, अक्सर इसका समर्थन करते रहे हैं, जबकि भाजपा से जुड़े लोग यह तर्क देते रहे हैं कि सब्सिडी की यह नीति छद्म सेक्युलरिज्म का सबसे बड़ा प्रतीक है। इससे सही अर्थों में सेक्युलर लोकतांत्रिक प्रथाओं को नुकसान पहुंचता है जो सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार की मांग करती हैं।

केंद्र सरकार को हज सब्सिडी खत्म करने का निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने दिया था

केंद्र सरकार को हज सब्सिडी खत्म करने का निर्देश देते समय सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह देश के सभी मुसलमानों की आवाज होने का दावा तो नहीं करता है। बावजूद इसके हमें इस बात में तनिक भी संदेह नहीं है कि हज पर जाने के लिए हज कमेटी के पास आवेदन करने वाले अधिकांश मुस्लिम अपनी यात्रा की अर्थव्यवस्था से अनजान होंगे। यहां तक कि अगर इसके बारे में उन्हें बताया जाए तो कई हज यात्री यह जानकर खुश नहीं होंगे कि उनकी यात्रा खर्च का एक हिस्सा केंद्र सरकार द्वारा वहन किया जाता है। इस संबंध में न्यायालय ने समुदाय की धार्मिक पुस्तकों का भी हवाला दिया और हज सब्सिडी को अच्छा विचार नहीं माना। उसने सरकार से दस वर्षों में इस सब्सिडी को खत्म करने को कहा। न्यायालय ने कहा कि इस रकम को शिक्षा और अन्य सामाजिक विकास की योजनाओं पर खर्च किया जा सकता है। ऐसा करना मुस्लिम समुदाय के लिए कहीं ज्यादा लाभदायक हो सकता है।

सद्भावना प्रतिनिधिमंडल को हज यात्रा पर भेजना

हज यात्रा के साथ सरकार का जुड़ाव कई मोर्चों पर हो गया था और इसने उसे विभिन्न मुद्दों पर नीति बनाने के लिए उसको बाध्य कर दिया था। उदाहरण के रूप में 1967 से ही सरकार हर साल एक सद्भावना प्रतिनिधिमंडल को हज यात्रा पर भेजती रही थी। कोर्ट ने पाया कि 1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद पाकिस्तान ने भारत विरोधी मुहिम चलाने के लिए हज यात्रियों का उपयोग किया और उसी की काट के लिए भारत ने भी एक प्रतिनिधिमंडल वहां भेजना आरंभ कर दिया। हालांकि यह समस्या ज्यादा दिनों तक बरकरार नहीं रही, क्योंकि बाद में पाकिस्तान ने सद्भावना प्रतिनिधिमंडल भेजना बंद कर दिया। देश में भी यह एक मुद्दा बन गया, क्योंकि प्रतिनिधिमंडल के गठन में उससे जुड़े लोगों पर मनमानेपन का आरोप लगने लगा था। न्यायालय ने कहा कि इतना बड़ा, बोझिल, अव्यवस्थित रूप से चुना गया यह प्रतिनिधिमंडल अपने उद्देश्यों को पूरा करने में पूर्ण रूप से विफल रहा। लिहाजा उसने सरकार को आगे से हज पर ऐसे प्रतिनिधिमंडल नहीं भेजने का निर्देश दिया। उसने कहा कि इसके बदले सऊदी अरब में भारतीय राजदूत भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए हज पर गए विशिष्ट मुस्लिमों का एक समूह बना सकते हैं। प्रतिनिधमंडल भेजने की तुलना में यह कहीं बेहतर साबित होगा।

हर साल भारत से हज पर जाने वाले यात्रियों की संख्या निर्धारित की जाती है

दूसरा, सरकार प्राइवेट ट्रांसपोर्ट ऑपरेटर्स (पीटीओज) को कोटा आवंटित करने के मामले में कानूनी पचड़े में फंस गई थी। यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय तक को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा था। दरअसल भारत सरकार और सऊदी अरब साम्राज्य के बीच एक द्विपक्षीय समझौता हुआ है जिसके आधार पर हर साल भारत से हज पर जाने वाले यात्रियों की संख्या निर्धारित की जाती है। 2002 के पहले सऊदी अरब इन पीटीओज के लिए कोटा जारी करता था। 2002 के बाद सभी प्राइवेट ऑपरेटर्स के लिए अपने-अपने देशों में पंजीकरण कराना अनिवार्य बना दिया गया।

किसी भी प्राइवेट ट्रांसपोर्ट ऑपरेटर को 50 यात्रियों से कम का कोटा नहीं दिया जा सकता

2011 के अपने अंतरिम आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ छह वर्षों में ही प्राइवेट ट्रांसपोर्ट ऑपरेटर्स की संख्या 293 से बढ़कर 567 हो गई। उसने कहा कि पीटीओज हज यात्रियों को नियंत्रित करने के लिए पंजीकृत होना चाहते थे, क्योंकि यह बहुत ही लाभकारी कारोबार का मामला था। दरअसल दोनों देशों के बीच हुए समझौते के अनुसार किसी भी प्राइवेट ट्रांसपोर्ट ऑपरेटर को 50 यात्रियों से कम का कोटा नहीं दिया जा सकता था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सामान्यत: 50 हज यात्रियों के कोटा का मतलब है महज दो महीने में ही एक ऑपरेटर को औसतन 35 से 50 लाख रुपये का लाभ। न्यायालय ने कहा कि हज के कई हिस्से होते हैं और उनमें से प्रत्येक को कठिन परिस्थितियों और निश्चित समयसीमा में संपन्न करना होता है। इस पूरे कारोबार में अनैतिक और गैरजिम्मेदार ऑपरेटर्स के प्रवेश करने और दूसरे प्राइवेट ऑपरेटर्स के हितों की रक्षा के लिए कोटा को टुकड़ों में बांटने की बातें भी सामने आई थीं। इसके अलावा ऐसी भी खबरें थीं कि जिन तीर्थयात्रियों के साथ कोई दुर्घटना हो जाती या जो बीमार हो जाते थे उन्हें ये प्राइवेट ऑपरेटर्स अधर में ही छोड़ देते थे। ऐसे में अदालत ने हज यात्रियों के हित में यह महसूस किया कि प्राइवेट ऑपरेटर्स का पंजीकरण कराकर उन्हें अच्छी सेवा के लिए बाध्य किया जा सकता है।

मोदी सरकार के बजट में हज सब्सिडी के लिए 800 करोड़ कोई बड़ी रकम नहीं

हालांकि भारत सरकार के समूचे बजट को देखते हुए 800 करोड़ कोई बड़ी रकम नहीं मानी जाएगी, लेकिन हज सब्सिडी को समाप्त करने की घोषणा करके उसने बड़ा संदेश दिया है कि केंद्र सरकार विभिन्न धर्मों और सामाजिक समूहों के मामले में निष्पक्ष है। इससे सरकार को शुद्ध धार्मिक कार्यक्रमों से बाहर आने में मदद मिलेगी। यह बहुसंख्यकों और अल्पसंख्यकों के बीच तालमेल और एकता बढ़ाने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। इससे यह भी सुनिश्चित हुआ है कि सरकार सबका साथ, सबका विकास के लिए प्रतिबद्ध है।

[ लेखक प्रसार भारती के अध्यक्ष एवं जाने-माने स्तंभकार हैं ]