नई दिल्ली [ हृदयनारायण दीक्षित ]। अयोध्या फिर से राष्ट्रीय बेचैनी और अंतरराष्ट्रीय उत्सुकता का विषय बन गया है। उत्तर प्रदेश की अयोध्या सामान्य नगर पालिका नहीं है। अयोध्या का विवादित स्थल सामान्य भूमि का टुकड़ा नहीं है। अयोध्या गांधी के सपनों वाले रामराज्य की साक्षी है। प्राचीन भारतीय इतिहास के महानायक मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की जन्मभूमि है। आस्था और विश्वास की स्थापना शून्य में नहीं होती। सत्य और तथ्य आधार बनते हैं। प्रश्न और प्रतिप्रश्न उठते हैं। दीर्घकाल उनके उत्तर देता है। प्रतीति अनुभूति बनती है। अनुभूति अनुभव बनती है। तब बनती है आस्था। भारत के लोकजीवन की अधिकांश आस्थाओं का निर्माण इतिहास, दर्शन और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हुआ है। सर्वोच्च न्यायालय श्रीराम जन्मभूमि वाद की सुनवाई कर रहा है। समाचार माध्यमों के अनुसार एक अधिवक्ता के प्रश्न पर मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने खूबसूरत टिप्पणी की ‘कल्पना से धारणा बनती है। धारणा से असत्यता, असत्यता से मूर्खता और मूर्खता से खतरा पैदा होता है।’ कल्पना से बनी धारणा नुकसानदेह ही होती है। अयोध्या तथ्य है, श्रीराम सत्य हैं। रामराज्य सत्य है। राम के प्रति भारत की प्रीति का विकास हजारों वर्षों के विवेक में हुआ है। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय शिरोधार्य करना भी भारतीय विवेक है। इसी विवेक ने सारी दुनिया से भिन्न स्वतंत्र न्यायपालिका का संवैधानिक प्रावधान किया है।

अभिलेखों के अंग्रेजी अनुवाद पूरे न होने के कारण सुनवाई अब 14 मार्च से होगी

श्रीराम जन्मभूमि का विवाद किसी न किसी रूप में 1950 से ही न्यायालयों के विचारण में है। 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय सुनाया था। न्यायमूर्ति एसयू खान, सुधीर अग्रवाल और डीवी शर्मा ने इस भूमि को तीन टुकड़ों में बांटने का निर्णय दिया था। एक खण्ड ‘रामलला विराजमान’ को, सीता रसोई व राम चबूतरे वाले दूसरे खण्ड निर्मोही अखाड़े को और तीसरा खण्ड सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने का निर्णय था। तीनों ने इस निर्णय को नहीं माना। अब मामला सर्वोच्च न्यायालय में है। न्यायालय ने अंतिम सुनवाई के लिए आठ फरवरी, 2018 की तारीख तय की थी, लेकिन अभिलेखों के अंग्रेजी अनुवाद पूरे न होने के कारण सुनवाई अब 14 मार्च से होगी। मामले में 524 साक्ष्य पत्रक हैं। इन्हें उच्च न्यायालय में प्रस्तुत किया जा चुका है। 504 के अंग्रेजी अनुवाद सुप्रीम कोर्ट को प्राप्त हो चुके हैं। रामचरितमानस जैसे ग्रंथों का अनुवाद शेष है। आश्चर्य है कि भारत के राष्ट्रजीवन को प्रभावित करने वाली रामकथा आदि चर्चित पुस्तकों के भी विदेशी भाषा अंग्रेजी में अनुवाद की आवश्यकता है। ये पुस्तकें भारत की राजभाषा हिंदी में ही हैं। बेशक संविधान (अनुच्छेद 348) के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय की भाषा अंग्रेजी ही है, लेकिन संविधान (अनुच्छेद 350) में ‘व्यथा निवारण के लिए संघ या राज्य में प्रयोग होने वाली किसी भी भाषा में अभ्यावेदन के अधिकार हैं।’

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश

सर्वोच्च न्यायालय में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की रिपोर्ट भी एक साक्ष्य के रूप में पेश की गई है। एएसआइ 1904 में बनी थी। इसी ने हड़प्पा और मोहनजोदड़ो खोजे थे। कुषाण कालीन सभ्यता और अशोक के अभिलेख भी इसी की खोज हैं। एएसआइ के खोजे शिलालेखों में गुप्त राजाओं के अभिलेख, समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति और जहांगीर के विवरण हैं। भारत की मंदिर संस्कृति के साक्ष्य भी एएसआइ के परिश्रम से मिले। अयोध्या खोदाई की एएसआइ रिपोर्ट में ईसा के 3500 वर्ष पहले के विवरण हैं। ईसा पूर्व 3500 वर्ष से 1000 ई. तक अयोध्या एक नगरी है। शुंगकाल, कुषाणकाल और गुप्तकाल तक यहां नगर है। सिक्के हैं, कलाकृतियां हैं। एएसआइ के अनुसार ‘यहां एक गोलाकार मंदिर 10वीं सदी में बना था। एक दूसरे मंदिर का भी उल्लेख है। यहां कमल है। वल्लरी है। 50 खंभों के आधार हैं।’ यह मंदिर 1500 ई. तक रहा। इसके बाद का इतिहास बाबर का। बाबर के सहयोगी मीरबाकी ने मंदिर की जगह मस्जिद बनवाई। बाद का इतिहास सुस्पष्ट है। मंदिर वापसी के तमाम संघर्ष भी इतिहास हैं। मिथ या कल्पना नहीं।

सारी दुनिया की निगाहें अयोध्या की ओर हैं

आंतरिक संघर्ष राष्ट्रजीवन को कमजोर करते हैं। श्रीराम जन्मभूमि विवाद को परस्पर सौजन्य से सुलझाने की सलाह सुप्रीम कोर्ट ने भी दी थी। इस परामर्श को अगंभीर बताने वाले गलती पर थे। अब कोर्ट ने भावनात्मक विषयों को अलग रखकर स्वयं को भूमि विवाद तक सीमित रखने की घोषणा की है। कोर्ट की सुस्थापित कार्यव्यवस्था है, लेकिन परस्पर संवाद के रास्ते हमेशा खुले हैं। संघर्ष संवाद का विकल्प नहीं होता। दुनिया के कई देश युद्ध में फंसते हैं। अंतत: वार्ता ही करते हैं। हरेक विवाद का सही समाधान परस्पर संवाद में ही होता है। संवाद ही हरेक विवाद का समाधान है। वार्ता के माध्यम से समाधान में जुटे महानुभाव सही रास्ते पर हैं। वार्ता होनी चाहिए। निष्कर्ष न निकले तो भी वार्ता। संवाद की कोशिशों पर पूर्ण विराम लगाने की कोई आवश्यकता नहीं। संप्रति सारी दुनिया की निगाहें अयोध्या की ओर हैं।

आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अयोध्या विवाद पर वार्ता के लिए तैयार

आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस विवाद पर विचार कर रहा है। बोर्ड ने 26वीं वार्षिक बैठक में बीते शनिवार को दूसरे पक्ष से बातचीत के लिए सहमति व्यक्त की है। बोर्ड के अनुसार ‘वह निष्पक्ष न्याय और समान सम्मान के आधार पर वार्ता के लिए तैयार है। हालांकि बोर्ड के महासचिव मौलाना वली रहमानी ने बोर्ड के दृष्टिकोण से अपनी असहमति व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि ‘एक बार जो मस्जिद बन गई तो वह हमेशा मस्जिद ही रहेगी।’ उनका वक्तव्य उचित नहीं है, क्योंकि मंदिर की जगह मस्जिद बनाने के तथ्य इतिहास हैं। कई मुस्लिम विद्वानों ने भी यही तथ्य लिखे हैं। मिर्जाजान ने हदीकाए शहदा (1856) में लिखा ‘अवध राम के पिता की राजधानी था। जिस जगह मंदिर था वहां बाबर ने एक सरबलंद मस्जिद बनाई।’ हाजी मोहम्मद हसन व शेख मोहम्मद अजमत अली काकोरवी आदि विद्वानों ने भी यही बातें लिखी हैं। बहरहाल बोर्ड में अयोध्या को लेकर बगावत की स्थिति है, मौलाना सलमान नदवी अयोध्या मसले को बातचीत से सुलझाने के अपने दृष्टिकोण पर अडिग हैं।

मुस्लिम पक्ष आगे आएं और बाबर के इतिहास की गलती का सुधार करें

भारत में सभी पंथों का सहअस्तित्व है। पंथ अनेक, आस्था और विश्वास उपासनाएं भी अनेक, लेकिन समूचे भारत की संस्कृति एक ही है। भारतीय मुसलमान शुद्ध भारतीय हैं। वे यहां राष्ट्रजीवन के विविध क्षेत्रों में प्रतिष्ठित और सम्मानित हैं। उन्हें सारी दुनिया को संदेश देना चाहिए कि वे भारतीय आस्था को सम्मान देते हैं। श्रीराम भारत और भारत के बाहर के भी करोड़ों लोगों की प्रीति हैं। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर असाधारण विवेकजनित आस्था है। यह भूमि मालिकाना का साधारण मसला नहीं है। मध्यकाल से लेकर आधुनिक इतिहास तक भूमि का वास्तविक मालिक राजसत्ता ही रही है। इसीलिए भूराजस्व की वसूली होती रही है। श्रीराम जन्मभूमि स्थल की भूमि का वास्तविक स्वामी खोजना मुश्किल काम है। यहां पहले मंदिर ही था। यह साक्ष्य एएसआइ ने दिया है। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर को मस्जिद में बदलने का तथ्य भी सही है। भूस्वामित्व कैसे खोजेंगे। कोर्ट विधि अनुसार अपना काम कर रहा है, लेकिन हमारे अपने दायित्व भी हैं। मुस्लिम पक्ष आगे आए। बाबर के इतिहास की गलती का सुधार करे।

[ लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं ]