भोपाल, संजय मिश्र। आरक्षण चाहे किसी भी तरह का क्यों न हो, जब भी उसकी चर्चा छिडती है तो विवाद खड़ा होना स्वा‍भाविक है। कोई इसके पक्ष में होता है तो कोई अपने तर्कों के साथ विपक्ष में। हाल के दिनों में मध्य प्रदेश में भी आरक्षण जैसी ही एक व्यवस्था सुर्खियों में है। राज्य की सरकारी नौकरियों में केवल यहां के युवाओं को ही मौका देने का फैसला करके शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने भले ही राजनीतिक रूप से बढत हासिल की है, लेकिन इसे लागू करना इतना असान भी नहीं है, जितना समझा जा रहा है।

सरकार के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या उसके पास इतनी सरकारी नौकरियां हैं कि राज्य के युवाओं को अन्यत्र जाना ही न पडे। यदि ऐसा नहीं है तो उन युवाओं के लिए सरकार क्या करेगी जो अपने राज्य में भी सरकारी नौकरी पाने से वंचित हो जाएंगे। निश्चित रूप से सरकार के सामने बडा संकट खड़ा होगा। संभव है कि अब तक ऐसे कानूनी प्रविधान न करने वाली दूसरे राज्यों की सरकारें भी इस बारे में सोचें। ऐसी स्थिति में क्या दूसरे राज्यों में मध्य प्रदेश के युवाओं की योग्यता पर प्रतिबंध नहीं लगेगा। देश की उस संघीय व्यवस्था का क्या होगा, जो अपने नागरिकों को समान अधिकार देने की गारंटी देती है। यदि सभी राज्य इसी तरह की पहल करने लगें तो राष्ट्रीय पैमाने पर कई तरह की समस्याएं खडी हो जाएंगी।

माना जा रहा है कि साढे पांच महीने की शिवराज सरकार के सामने उपचुनावों का कठिन समय आने वाला है। निश्चित रूप से 27 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में अधिकतर सीटें जीतकर अपनी सरकार को मजबूत बनाना उनकी प्राथमिकता है। संभवत: यही कारण है कि सरकार एक के बाद एक लोकलुभावन वादे और घोषणाएं कर रही है। सरकारी नौकरियों में मध्य प्रदेश के युवाओं को ही अवसर देने का निर्णय भी इसी से प्रेरित लगता है। इस निर्णय के जरिये मुख्यमंत्री शिवराज ने एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है। युवाओं का विश्वास जीतने के साथ सरकार को घेरने की कांग्रेस योजना को भी चुनौती दे दी है। कांग्रेस अभी तक राज्य के विकास की अनदेखी एवं बेरोजगारी के लिए लगभग पंद्रह साल तक सत्ता में रहे शिवराज सरकार को ही कसूरवार ठहरा रही है। वह भाजपा पर कांग्रेस सरकार को गिराने के मुद्दे पर भी जनता से सहानुभूति लेने की कोशिश कर रही है। सरकार में अनुसूचित जाति के लोगों की समुचित भागीदारी न देने का मुद्दा भी उठा रखा है। इसका सामना किसी बडे राजनीतिक अस्त्र के बिना करना कठिन है।

यद्यपि राज्य की राजनीति में सरकारी नौकरियों में मूल निवासियों को ही मौका दिए जाने का मुद्दा पहली बार नहीं उठा है। खुद अपने पिछले कार्यकाल में भी शिवराज सिंह चौहान इस पर चर्चा कर चुके हैं। उस समय इस मुद्दे को उठाने का तरीका थोडा अलग था। तब उन्होंने बेरोजगारी की स्थिति को देखते हुए कौशल विकास पर जोर दिया था। युवाओं को अपने राज्य में ही समायोजित करने के लिए मुख्यमंत्री युवा उद्यमी, मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना शुरू की थी। सहकारिता के माध्यम से नई समितियां बनाकर भी रोजगार दिलाने के प्रयास किए थे।

सरकारी नौकरियों में प्रदेश के युवाओं को ही मौका दिलाने के लिए अधिकतम आयु सीमा 28 साल कर दी गई। इसके साथ ही प्रदेश के युवाओं को मौका देने के लिए विभिन्न श्रेणियों में अधिकतम आयु सीमा में 12 से लेकर 15 साल तक की छूट दी गई। मकसद यह था कि अन्य प्रांतों के युवा यहां की नौकरियों के लिए आयोजित होने वाली परीक्षाओं में हिस्सा न ले सकें। हालांकि सरकार की इस व्यवस्था का राज्य लोकसेवा आयोग द्वारा आयोजित सहायक प्राध्यापकों की परीक्षा को लेकर विरोध हुआ। इस प्रविधान को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। मार्च 2018 में हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस तरह का प्रविधान संविधान की अनुच्छेद 16 की भावना के खिलाफ है। इसको लेकर सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका भी दायर की गई, लेकिन बाद में विधि विशेषज्ञों की सलाह पर इसे वापस ले लिया गया।

कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद कमल नाथ की सरकार ने भी अधिकतम आयु सीमा को लेकर कई बार बदलाव किए। अभी भी प्रदेश के युवाओं के लिए भर्तियों में अधिकतम आयु सीमा 40 वर्ष है। अनुसूचित जाति-जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और महिलाओं को आयुसीमा में पांच साल की छूट मिली हुई है। कमल नाथ ने मुख्यमंत्री रहते हुए राज्य में स्थापित उद्योगों में स्थानीय लोगों को नौकरी नहीं मिलने का मुद्दा भी उठाया था। उन्होंने कहा था कि प्रदेश में बहुत सारे ऐसे उद्योग हैं, जहां दूसरे प्रदेशों के लोग आ जाते हैं। खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश से। मैं उनकी आलोचना नहीं करता हूं, पर हमारे प्रदेश के नौजवान रोजगार पाने से वंचित रह जाते हैं। इसलिए अब उन्हीं उद्योगों को प्रोत्साहन दिया जाएगा जो 70 फीसद रोजगार स्थानीय लोगों को देंगे। इसके लिए उद्योग प्रोत्साहन नीति में भी संशोधन किया गया। कमल नाथ की इस घोषणा का देशभर में विरोध हुआ था।

बड़ा सवाल यह भी है कि सरकार ने घोषणा तो कर दी, लेकिन बडी संख्या में बेरोजगार युवाओं के लिए इतनी नौकरियां लाएगी कहां से। प्रदेश के विभिन्न विभागों में सीधी भर्ती और पदोन्नति के कुल 8,18,183 पद स्वीकृत हैं। इनमें से फिलहाल ढाई लाख से ज्यादा पद खाली हैं। अनुसूचित जाति-जनजाति के लिए आरक्षित रिक्त पदों की संख्या लगभग एक लाख से अधिक है। उपलब्ध नौकरियों की तुलना में देखें तो राज्य में बेरोजगारों की संख्या काफी अधिक है। लगभग 29 लाख युवा रोजगार के लिए पंजीयन कराकर बैठे हुए हैं। इनमें उन लाखों युवाओं की संख्या नहीं है, जिन्होंने रोजगार कार्यालयों में पंजीयन नहीं कराया है। इसके अलावा राज्य के वे 7़ 3 लाख से अधिक श्रमिक भी सरकार की जिम्मेदारी हैं, जिनकी नौकरियां कोरोना संकट के कारण चली गईं और उन्हें दूसरे राज्यों से वापस मध्य प्रदेश लौटना पडा।

[स्थानीय संपादक, नवदुनिया, भोपाल]