सद्गुरु शरण। MP Politics भाजपा नेताओं को क्या कहा जाए। कमल नाथ की जुबान से देश के लिए चंद अपमानजनक शब्द क्या निकल गए, भाजपाइयों ने आसमान सर पर उठा लिया। हद तो तब हो गई, जब खुद शिवराज सिंह ने गुस्से में उन्हें ‘मानसिक बीमार’ बता दिया। न भाई न! यह कमल नाथ के साथ ज्यादती है। क्या उन्होंने पहली बार ऐसा कुछ बोला है जिस पर भाजपाई इतना बवाल कर रहे? अब तो मान लेना चाहिए कि कमल नाथ इतने मासूम हैं कि वह अपने शब्दों के प्रभाव का आकलन नहीं कर पाते। उन्हें कौन समझाए कि यदि वह और उनकी पार्टी नरेंद्र मोदी और भारत को एक-दूसरे का पर्याय मान रही है तो भी भारत को ‘बदनाम देश’ कहने में हिचकना चाहिए।

कमल नाथ कोई छोटे-मोटे नेता नहीं हैं। वह मुख्यमंत्री रह चुके हैं। अब भी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं। प्रदेश में वह अपनी पार्टी के सबसे बड़े नेता हैं, यद्यपि उनकी गिनती कांग्रेस के शीर्षस्थ राष्ट्रीय नेताओं में होती है। ऐसे नेता को सोच-समझकर बोलना चाहिए, पर कमल नाथ हर महीने दो महीने में अपनी जुबान से बम फोड़ने के अभ्यस्त हैं तो इसे उनकी मासूमियत या गंदी आदत मानकर नजरअंदाज किया जा सकता है। वरिष्ठता के साथ नेता परिपक्व हो जाते हैं कि जुबान से क्या उगलना है और क्या पचा लेना है, पर कमल नाथ सचमुच मासूम ठहरे। वह इतनी बात नहीं समझ पाए कि भारत को ‘बदनाम देश’ कहने से आम देशवासियों को कितनी तकलीफ होगी। भाजपाई तो फिराक में रहते ही हैं सो तुरंत ले उड़े। भाजपा पहले ही आरोप लगा रही है कि जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, कांग्रेस विदेशी शक्तियों के एजेंडे पर काम कर रही है। अधिकतर लोग इसे राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप मानकर नजरअंदाज करते रहते हैं, पर जब कमल नाथ जैसा कद्दावर नेता कैमरे पर कहे कि भारत महान नहीं, बदनाम देश है तो फिर आम आदमी भाजपा के आरोप में सच्चाई सूंघने लगता है।

दरअसल, जब कोई कद्दावर नेता कुछ बोलता है तो उसे पार्टी लाइन मान लिया जाता है। यह बात तब और असरदार हो जाती है जब पार्टी अपने नेता के विवादास्पद बयान पर मौन हो जाए। कहावत है कि मौन स्वीकृति का संकेत होता है। जब कमल नाथ ने कहा कि भारत महान नहीं, बदनाम देश है। न्यूयॉर्क में लोग हिंदुस्तानी ड्राइवर की टैक्सी में नहीं बैठते तो यह संभावना जताई जा रही थी कि कांग्रेस इसे कमल नाथ का निजी विचार ठहराकर इससे अपना पल्ला झाड़ लेगी, पर ऐसा हुआ नहीं। कमल नाथ के इस मासूम बयान का वीडियो कई दिन से वायरल है। इसके लिए भाजपाई चरणबद्ध शैली में उन्हें ‘मानसिक रोगी’ से लेकर ‘सोनिया गांधी का चाटुकार’ तक ठहरा रहे, पर पार्टी इस पर मौन है।

जाहिर है, लोग इसका भी अपने-अपने ढंग से मतलब निकाल रहे। कमल नाथ की एक और अच्छी या बुरी आदत है कि वह कदम आगे बढ़ाने के बाद आसानी से पीछे नहीं खींचते। कुछ महीने पहले 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के बीच का वाकया याद करिए, जब उन्होंने सार्वजनिक सभा मंच पर भाजपा की महिला उम्मीदवार, जो दलबदल से पहले खुद उनकी सरकार में मंत्री थीं, को ‘आइटम’ कह दिया था। जुबान फिसलने के हादसे अन्य नेताओं से भी हो जाते हैं, पर चतुर नेता तुरंत शब्द वापस लेकर और माफी मांगकर मामला रफा-दफा कर देते हैं, पर कमल नाथ तो मासूम ठहरे। अड़ गए कि माफी नहीं मांगेंगे।

बहरहाल, चुनाव के बीच जब मामला राष्ट्रीय स्तर पर तूल पकड़ने लगा और महिला आयोग जैसे संगठन मैदान में उतरने लगे तो उन्होंने घोर मजबूरी में बस खानार्पूित के लिए कुछ शब्द कहे जिन्हें माफी मांगना नहीं कहा जा सकता। शायद उनकी वरिष्ठता का लिहाज करके किसी ने मामले को आगे तूल नहीं दिया। बहरहाल, लगता नहीं कि उस वाकये से उन्होंने कोई सबक लिया। बोलने में उनकी मासूमियत इस हद तक जारी है कि उन्होंने भारत को बदनाम देश ठहरा दिया। याद नहीं पड़ता कि भारत के बारे में ऐसी निम्नस्तरीय टिप्पणी कभी पाकिस्तान या चीन ने भी की हो, पर कमल नाथ तो मासूम ठहरे। उनके दिल की बात बिना सोचे-समझे उनकी जुबान से बाहर निकल गई। इसके कई दिन बाद भी उन्हें यह अहसास नहीं हुआ कि देश का राजनीतिक और सामाजिक इतिहास उनके इस बयान के आधार पर उन्हें किस तरह याद करेगा।

वर्तमान उन्हें मासूम मानकर भले ही इस विवाद को ठंडा कर दे, पर इतिहास शायद इतनी उदारता न दिखा पाए। इतिहास सिर्फ यह देखेगा कि जिस कालखंड में देश अपने वैश्विक शत्रुओं की गंभीर साजिशों से जूझ रहा था और इसका मुकाबला करने के लिए देश के आम-ओ-खास लोग एक संकल्प-सूत्र में बंधकर एकजुटता का प्रदर्शन कर रहे थे, उस वक्त कांग्रेस के एक बड़े नेता कमल नाथ ने भारत को महान नहीं, बदनाम देश की संज्ञा देकर सभी राष्ट्रभक्त देशवासियों को अपमानित और हतोत्साहित करने का प्रयास किया था। इतिहास इसे सिर्फ कमल नाथ के बजाय कांग्रेस पार्टी की रीति-नीति से जोड़कर भी देखेगा। तब इस बयान की कड़ियां कांग्रेस के हिंदू आतंकवाद वाले जुमले, बाटला कांड में आतंकवादियों के एनकाउंटर पर शोक, र्सिजकल स्ट्राइक के बाद सेना की सत्यनिष्ठा पर संदेह, पुलवामा हादसे के बाद आतंकवादियों के प्रति हमदर्दी और देश के संसाधनों पर अल्पसंख्यकों के पहले हक जैसे शब्द-आयोजनों से भी संबद्ध होंगी।

[संपादक, नई दुनिया, मध्य प्रदेश छत्तीसगढ]