उत्तराखंड, कुशल कोठियाल। MP govt crisis मध्य प्रदेश में कांग्रेस टूटने के संकट से जूझ रही है। पार्टी के विधायकों को जयपुर में रखा गया तो पार्टी हाईकमान ने समस्या का हल निकालने का जिम्मा जिन पार्टी दिग्गजों को सौंपा उनमें उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के राष्ट्रीय महामंत्री हरीश रावत भी शामिल हैं। हरीश रावत को अपने मुख्यमंत्रित्व काल में उत्तराखंड में इसी स्थिति से दो-चार होना पड़ा था। पार्टी के दस विधायक सतपाल महाराज, विजय बहुगुणा और हरक सिंह रावत जैसे नेताओं के साथ भाजपा के साथ जा मिले थे। उस समय हरीश रावत इस विकट स्थिति में भी अपनी सरकार बचा ले गए थे।

भाजपा में गए विधायकों की सदन से छुट्टी कराकर वह विधानसभा में अपना बहुमत साबित करने में कामयाब रहे। हालांकि इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में प्रदेश में कांग्रेस को भारी पराजय का सामना करना पड़ा और खुद हरदा दो विधानसभा सीटों से हार गए। इसके बाद लोकसभा चुनाव में भी मनपंसद नैनीताल सीट से लड़े तथा भारी अंतर से हार गए। अब उत्तराखंड की राजनीति में सवाल यह उठ रहा है कि मध्य प्रदेश की उठापटक में कांग्रेस हाईकमान उन किस अनुभव का लाभ लेना चाह रही है। कांग्रेस के ही प्रदेश के नेता मीडिया को समझा रहे हैं कि पार्टी हाईकमान उनके बार-बार चुनाव हारने का अनुभव का लाभ तो लेगी नहीं, अलबत्ता उत्तराखंड में आधी कांग्रेस के भाजपा में चले जाने के बावजूद सरकार बचा लेने के अनुभव का लाभ जरूर लेना चाहेगी।

कोरोना की दस्तक : उत्तराखंड सरकार मौजूदा दौर में दोहरे संकट से जूझ रही है। एक तरफ कोरोना और दूसरी तरफ कर्मचारियों की हड़ताल सरकार के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है। अगले माह से यात्रा सीजन भी शुरू होने वाला है, इन हालात में इस बार यात्रा का संचालन प्रदेश के लिए अग्निपरीक्षा जैसा ही होगा। प्रदेश में सरकार ने सभी एहतियाती कदम उठाएं हैं, लेकिन तंत्र को अभी सक्रिय करना बाकी है। देहरादून में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी के प्रशिक्षु आइएफएस की जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आने के साथ ही प्रदेश में कोरोना की खतरनाक दस्तक हो गई है। प्रशिक्षु अधिकारियों का यह दल हाल ही में स्पेन से लौटा था। विदेश से लौटे चार अन्य प्रशिक्षुओं की भी जांच की जा रही है और उनके संपर्क में आने वाले सभी लोगों को निगरानी में रखा गया है। प्रदेश में अभी तक पच्चीस सैंपल लिए गए हैं, इनमें से एक रिपोर्ट ही पॉजिटिव आई है। प्रदेश सरकार ने कोरोना को महामारी घोषित कर रखा है। राज्य में हालांकि अभी तक एक ही सैंपल पॉजिटिव आया है, लेकिन राज्य के लिए यह संकट काफी गंभीर है।

पिछले पंद्रह दिनों से प्रदेश सरकार कर्मचारियों की हड़ताल से जूझ रही है। महामारी से जूझ रहे प्रदेश में सरकार और कर्मचारी दोनों अड़ियल रुख अपनाए हुए हैं। इस बीच हड़ताली कर्मचारियों ने स्वास्थ्य सेवाओं को हड़ताल से बाहर रख कर कुछ राहत तो दी है, लेकिन इन हालात में राजकाज ठप होना दुश्वारियां बढ़ा रहा है। कोरोना संक्रमण के लिहाज से उत्तराखंड की स्थिति ज्यादा संवेदनशील है। तमाम पर्यटन और धार्मिक स्थलों पर विदेशों से आने वालों की भी खासी तादाद रहती है। सरकार के पास इन्हें चिन्हित करने और रोकने का कोई मजबूत तंत्र भी नहीं है। तमाम निगरानी के बावजूद विदेशी पर्यटकों की आवाजाही बनी हुई है। चारधाम यात्रा शुरू होने के बाद तो स्थिति और मुश्किल हो सकती है। अभी तक इससे निबटने के लिए पुख्ता तैयारी नहीं दिख रही है।

बारिश का मार्च : मार्च के माह में सामान्य तौर पर उत्तराखंड में ठीक-ठाक धूप होती है, लेकिन इस बार मौसम के तेवर बिगड़े हुए हैं। बारिश और ओलावृष्टि फसलों के लिए नासूर बन गई है। प्रदेश में गेंहू खेतों में बिछ गया है और गन्ना बुआई में पिछड़ रहा है। भारी बारिश और ओलावृष्टि से गेंहू की बालियां तो टूटी ही हैं, गन्ने की मिठास पर भी पानी फिरता दिख रहा है। हरिद्वार और देहरादून में गन्ने का अच्छा खासा रकबा है, 15 फववरी से 15 मार्च तक का समय गन्ने की बुआई के लिए मुफीद होता है। लगातार हो रही बारिश से खेत लबालब हैं और किसान गन्ने की बुआई के लिए खेत सूखने का इंताजर कर रहे हैं।

[उत्तराखंड, स्थानीय संपादक]