अंकित सिकरवार। तेजी से फैलते कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए दुनिया अप्रत्याशित चुनौतियों का सामना कर रही है। भारत में शुरुआती लॉकडाउन के बावजूद कोरोना संक्रमण की वृद्धि दर दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। प्रारंभ में भारत में संक्रमण के पांच हजार मामलों तक पहुंचने में लगभग सत्तर दिन लगे, लेकिन पिछले करीब एक सप्ताह से रोजाना औसतन पांच हजार नए मामले सामने आ रहे हैं। यह देश के लिए चिंता का विषय है। हमारे देश में कोरोना मामलों में तेजी से वृद्धि के प्रमुख कारणों में से एक है बड़े शहरों खासकर महानगरों में संक्रमित मामलों का अधिक अनुपात।

देश में इससे सबसे ज्यादा प्रभावित शहर मुंबई है। इसके अलावा दिल्ली, अहमदाबाद, पुणे, चेन्नई, इंदौर, ठाणे, जोधपुर और कोलकाता में सबसे ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं। भारतीय शहरों में कोरोना संक्रमण की उच्च संख्या और वृद्धि के पीछे कई कारण हैं। वास्तव में कोरोना ने देश में संक्रमण की शुरुआत ही महानगरों से की। इसके बढ़ते जाने का एक प्रमुख कारण यह भी है कि अधिकांश अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे महानगरों में ही हैं जहां विदेशी या विदेश से आने वाले यात्रियों की नियमित आमद है। मुंबई और दिल्ली के एयरपोर्ट दुनिया के विभिन्न हिस्सों से बड़ी संख्या में अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए जाने जाते हैं। बड़े शहरों में विदेश यात्रा इतिहास वाले लोगों की संख्या भी अधिक होती है। शहरों में संक्रमण के मामलों की अधिक संख्या के पीछे एक अन्य प्रमुख कारक परीक्षण की अधिक संख्या भी है। जाहिर है महानगरों में संक्रमण की संख्या तुरंत सामने आ गई।

भारत के बड़े शहर बड़ी-बडी झुग्गियों के केंद्र हैं। शहर की आबादी का एक बड़ा हिस्सा भीड़-भाड़ वाली झुग्गियों में रहता है। कोरोना संक्रमण फैलाने में स्लम की भूमिका को मुंबई के धारावी के उदाहरण से समझा जा सकता है। मुंबई में करीब 90 लाख लोग स्लम इलाकों में रहते हैं। धारावी में एक वर्ग किमी क्षेत्र में ढाई लाख से अधिक लोग रहते हैं। यह आंकड़ा कोरोना संक्रमण के प्रसार के लिए बेहद अनुकूल स्थितियों को दर्शाता है। अधिक लोगों का कम जगह पर रहने के अलावा झुग्गियों की स्थिति भी उच्च संक्रमण के लिए जिम्मेदार है। ये बस्तियां अस्वच्छ परिस्थितियों के बीच विकसित होती हैं। मुंबई और दिल्ली की मलिन बस्तियों में जहां पानी की कमी है, वहां अपने हाथ धोना और शारीरिक दूरी कायम कर पाना ऐसी विलासिता है जिसे हर कोई वहन नहीं कर सकता। जब सरकार बार-बार हाथ धोने की सलाह दे रही है तब इन मलिन बस्तियों में नल के पानी की सुविधा तक नहीं है।

हाल के वर्षों में भारतीय शहरों में आबादी के बढ़ते घनत्व के साथ वायु की गुणवत्ता का स्तर भी कम होता गया है। विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के अनुसार सबसे खराब वायु प्रदूषण वाले दुनिया के 30 शहरों में से 21 शहर भारत में हैं। इन प्रदूषित शहरों में रहने वाले लोगों में विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं हैं। जिन मेट्रो शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर सबसे खराब है उन शहरों में सबसे कमजोर इम्युनिटी है। जहां कोरोना का सीधा संबंध हमारी इम्युनिटी से है, इस निष्कर्ष पर पहुंचना गलत नहीं कि वायु प्रदूषण के कारण कोरोनो वायरस से होने वाली मौतों का खतरा बढ़ सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार वायु प्रदूषण के लगातार संपर्क में आने से न केवल कोरोना वायरस की आशंका बढ़ती है, बल्कि अन्य प्रकार की बीमारी भी घातक हो जाती है।

शहरों में संक्रमण की उच्च दर के साथ एक उल्लेखनीय मुद्दा लॉकडाउन के प्रति लोगों के रवैये के बारे में है। बड़े शहरों में, अन्य स्थानों की तुलना में लोगों का अस्तित्व मुश्किल है। शहरों में काम और आय के बिना जीवन अधिक कठिन है। इस प्रकार लोगों को महामारी के दुष्प्रभावों से समझौता करके घर से बाहर निकलना पड़ता है। लाखों गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों का जीवन दिन-प्रतिदिन के काम और आय पर निर्भर करता है। इन स्थितियों में लोगों के लिए घर में रहना और बिना किसी आय के अपना जीवन निर्वाह करना असंभव है। इस कारण से शहरों में लॉकडाउन का पूर्ण रूप से पालन होना मुश्किल है जो संक्रमण के फैलाव को बढ़ावा देता है।

भारत में जब कोरोना के मामले काफी कम थे, तब सरकार द्वारा बहुत ही सख्त नियमों के साथ लॉकडाउन लगाया गया था, लेकिन अर्थव्यवस्था पर बढ़ते दबाव के कारण सरकार को शहरों में लॉकडाउन में थोड़ी ढील देनी पड़ी, जबकि वायरस के बढ़ते संक्रमण को और तीव्रता मिली। अब जब कोरोना संक्रमण के मामले सवा लाख से ऊपर पहुंच गए हैं, तब केंद्र और राज्य सरकारों ने ‘जान भी जहान भी’ के उद्देश्य से विभिन्न प्रकार की छूट दी है। इससे देश की आर्थिक स्थिति में कुछ हद तक सुधार जरूर आ सकता है, लेकिन शहरों में बढ़ते संक्रमण में सुधार कैसे लाया जाएगा, यह एक बड़ा सवाल है। वैसे महानगरों में कोरोना संक्रमण और मौतों की संख्या अधिक है, फिर भी वे इस महामारी से लड़ने के लिए तैयार भी दिख रहे हैं। अस्पताल, एंबुलेंस और वेंटिलेटर जैसे स्वास्थ्य और मेडिकल ढांचे के साथ स्वास्थ्यकर्मियों की अधिक संख्या शहर में संक्रमित मामलों की रिकवरी दर में सुधार करने में मदद कर रही है। फिर भी इन क्षेत्रों के लिए अधिक गंभीर और प्रभावी योजना बनाने की आवश्यकता है।

[सीनियर रिसर्च स्कॉलर, इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज, मुंबई]