[डॉ. जयंतीलाल भंडारी]। अर्थव्यवस्था को पुन: तीव्र विकास के पथ पर अग्रसर करना और युवाओं के लिए रोजगार सृजन करना प्रचंड बहुमत से सत्ता में लौटी नरेंद्र मोदी सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। उद्योग-कारोबार को गतिशील करने के लिए मोदी सरकार को आम जनता की उपभोग और क्रयशक्ति बढ़ाने की रणनीति पर आगे बढ़ना होगा। अर्थव्यवस्था के लिए आर्थिक तथा वित्तीय नीतियों में निरंतरता जरूरी होगी। ऐसे में ऋण बाजार के दबाव को दूर करना मोदी सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के एजेंडे में शामिल होना चाहिए। सरकार को ऐसी नीति भी बनानी होगी और उसे सुचारु तरीके से कार्यान्वित करना होगा ताकि अधिक से अधिक लोगों को रोजगार मुहैया कराया जा सके...

आम चुनाव में प्रचंड जनादेश हासिल करने के बाद मोदी सरकार अपनी दूसरी पारी में तेजी से विकास एजेंडे पर काम करने में जुट गई है। वैसे इस वक्त देश की अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाना सरकार के एजेंडे में सबसे ऊपर दिखाई दे रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि कुछ दिन पूर्व केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) द्वारा जारी आंकड़ों से देश की अर्थव्यवस्था में सुस्ती की झलक मिली। सीएसओ के आंकड़ों के मुताबिक बीते वित्त वर्ष (2018-19) की चौथी तिमाही में देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) महज 5.8 फीसद दर से बढ़ा। इससे पूर्व की तिमाही में जीडीपी विकास दर 6.6 फीसद रही थी। इस सुस्ती से वार्षिक विकास दर पर भी असर पड़ा और यह 2018-19 की अवधि में 7.2 फीसद के अनुमानित लक्ष्य से घटकर 6.8 फीसद रह गई, जो पिछले पांच वर्षो में सबसे कम है। इससे जाहिर है कि आर्थिक चुनौतियां काफी बड़ी हैं।

रोजगार के मोर्चे पर भी चिंताजनक तस्वीर है। श्रम मंत्रलय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक देश में 2017-18 में बेरोजगारी दर कुल उपलब्ध कार्यबल का 6.1 फीसद रही, जो 45 साल में सर्वाधिक है। अर्थव्यवस्था के समक्ष इन्हीं स्थितियों से निपटने के लिए प्रधानमंत्री ने पांच जून को दो कैबिनेट समितियों का गठन किया। इन समितियों को रोजगार सृजन व निवेश बढ़ाने के उपाय तलाशने का जिम्मा सौंपा गया है। पहली समिति विकास दर व निवेश बढ़ाने पर काम करेगी और दूसरी समिति रोजगार तथा कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करेगी।

निवेश, कारोबार, रोजगार आदि के मामलों को केवल मौद्रिक नीति के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। इन क्षेत्रों को तेजी से आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी सरकार को ही लेना होगी। यह सही है कि अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के इरादे से रिजर्व बैंक ने छह जून को लगातार तीसरी बार ब्याज दरों में चौथाई फीसद कटौती करने की तत्परता दिखाई है और कहा है कि बैंकों की ओर से सस्ते कर्ज का फायदा निवेशकों व ग्राहकों को मिले, इसका फायदा बैंक खुद ही न उठाते रहें।

निश्चित रूप से वैश्विक सुस्ती के बीच देश की आर्थिक तस्वीर संवारने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा जिन दो नई मंत्रिमंडलीय समितियों का गठन किया गया है, उन्हें देश की विकास दर और रोजगार बढ़ाने जैसे अहम मुद्दों पर रणनीतिपूर्वक आगे बढ़ना होगा। नई मोदी सरकार के सामने पहली प्रमुख चुनौती अर्थव्यवस्था को गति देने की है, जिसकी चाल पिछले कुछ महीनों से सुस्त-सी पड़ गई है। इसके लिए कुछ ठोस उपाय जरूरी हैं। मोदी सरकार अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए यह कर सकती है कि बुनियादी ढांचे पर खर्च बढ़ाए। वैश्विक कारोबार में वृद्धि के उपाय तलाशे। सरकार को टैक्स संबंधी नियम-कायदों को और सरल करना होगा। भूमि एवं श्रम सुधार और डिजिटलीकरण जैसे नीतिगत प्रयासों को तेजी से आगे बढ़ाना होगा। ग्रामीण विकास, सड़क निर्माण, आवास निर्माण एवं स्मार्ट सिटी जैसी परियोजनाओं को गतिशील करना होगा। इन तमाम उपायों को अमलीजामा पहनाने के लिए मोदी सरकार को अधिक संसाधन भी जुटाने होंगे। इस दिशा में एक ओर विनिवेश की राह पकड़ी जा सकती है तो दूसरी ओर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की परिसंपत्तियों को भी भुनाया जा सकता है।

मोदी सरकार को ऐसी रणनीति अपनानी होगी, जिससे भारतीय उपभोक्ताओं की खपत की आकांक्षाओं और वित्तीय बचतों के बीच संतुलन बना रहे। आरबीआइ द्वारा ब्याज दरों में और कटौती करने तथा अर्थव्यवस्था में और अधिक नकदी का प्रवाह बढ़ाने की जरूरत है। रोजगार सृजन के मोर्चे पर जहां मनरेगा जैसी योजनाएं प्रभावी होंगी, वहीं स्वरोजगार और उद्यमिता के लिए मुद्रा योजना को और गतिशील करना होगा। सरकारी क्षेत्र में रिक्त पदों की पूर्ति हेतु शीघ्रतापूर्वक कदम उठाने होंगे। साथ ही कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से कार्यान्वित करना होगा।

किसानों की खराब हालत भी स्पष्ट दिखाई दे रही है, लिहाजा सरकार को कृषि तथा किसानों के कल्याण के लिए नए रणनीतिक कदम उठाने होंगे। जरूरी होगा कि सरकार निजी क्षेत्र को कृषि के साथ जोड़ने की कार्ययोजना बनाए। साथ ही खाद्य प्रसंस्करण का दायरा भी बढ़ाया जाए। मोदी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में कई अहम सुधार किए हैं, जिन्हें अब तेजी से आगे बढ़ाया जा सकता है। अब वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के दायरे में पेट्रोलियम उत्पादों को लाना जरूरी दिखाई दे रहा है। जीएसटी के तहत चार की जगह तीन स्लैब किया जाना उपयुक्त होगा।

भले ही इस वक्त विभिन्न आर्थिक चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं, लेकिन देश और दुनिया के अर्थविशेषज्ञों का मत है कि नई मोदी सरकार के लिए इन चुनौतियों का सामना करना आसान इसलिए होगा, क्योंकि आम चुनाव में मिली प्रचंड जीत के बाद इस सरकार में समयानुकूल और साहसिक फैसले लेने की बहुत गुंजाइश है। अर्थविशेषज्ञों का कहना है कि भले ही वर्ष 2018-19 में भारत की विकास दर कुछ गिरी है, लेकिन नई सरकार द्वारा आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए उठाए जा रहे कदमों से भारत विकास की डगर पर तेजी से आगे बढ़ता नजर आ सकता है। अर्थविशषज्ञों का यह भी कहना है कि बेहतर निवेश व निजी खपत के दम पर अगले तीन साल तक भारत 2018-19 की घटी हुई विकास दर की दशा को बदलते हुए दुनिया की सबसे तेजी से वृद्धि करने वाली वैश्विक अर्थव्यवस्था बनने की संभावना रखता है।

हम उम्मीद करें कि नई मोदी सरकार के प्रयासों से निवेश व रोजगार के मोर्चे पर तस्वीर बदलेगी और अर्थव्यवस्था में सुस्ती का आलम जल्द ही दूर होगा। गौरतलब है कि हाल ही में विश्व बैंक द्वारा भारत को आगामी तीन वर्षो तक दुनिया की सबसे तेज बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था वाले देश के रूप में बने रहने का अनुमान प्रस्तुत किया गया है। यह बताता है कि वैश्विक आर्थिक संस्थाओं का भारतीय अर्थव्यवस्था में यकीन पहले की तरह पुख्ता है।

डॉ. जयंतीलाल भंडारी

(वरिष्ठ अर्थशास्त्री)

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