नई दिल्ली, जेएनएन। Modi Jinping Meet: अनुच्छेद 370 और 35 ए को समाप्त करके जम्मू कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा बनाने के कदम से पाकिस्तान की बौखलाहट और सनकपन कम होने का नाम नहीं ले रही है। पश्चिमी ताकतों और संयुक्त राष्ट्र में रोने कलपने का कोई असर नहीं होने के बाद उसने परमाणु ब्लैकमेल की धमकी दी। उसके भी फुस्स पटाखा साबित होने के बाद वह अपने हर मौसम के दोस्त चीन की तरफ निहारने लगा है। इसी क्रम में 14 महीने पहले प्रधानमंत्री बने इमरान खान चीन के तीसरे दौरे पर गए। इमरान की चीन यात्रा से पहले चीनी अधिकारियों के यह बयान आते रहे कि कश्मीर भारत- पाकिस्तान का द्विपक्षीय मामला है। उन दोनों को मिल बैठकर इसे सुलझाना होगा। यह उसकी नीति में एक दशक का सबसे बड़ा यू-टर्न रहा।

इमरान के वहां पहुंचते ही दोनों देशों के संयुक्त बयान में कश्मीर मसले को संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों और द्विपक्षीय संबंधों के आधार पर सुलझाने की बात कही गई। चीन की दक्षिण एशियाई नीति में आई इस हिचक और कश्मकश के पीछे क्या वजह है? दरअसल, चीनी राष्ट्रपति के भारत दौरे के मद्देनजर चीन की कहीं न कहीं यह हिचक रही है कि अगर कश्मीर पर उसने भारत की नीति से उलट बोला, तो हांगकांग, ताईवान और उईगर जैसी उसकी दुखती नसें भारत किसी भी वैश्विक मंच पर दबा सकता है।

भारत जैसे बाजार को खोने का जोखिम वह नहीं उठा सकता चीन

ट्रेड वार से पिछड़ती अर्थव्यवस्था में भारत जैसे बाजार को खोने का जोखिम वह नहीं उठा सकता। पाकिस्तान में अब कोई रस नहीं रहा। हालांकि, अपने भारी भरकम निवेश को सुरक्षित रखने के लिए चीन अपने इस पुराने दोस्त को भी नहीं नाराज कर सकता है। तभी शी चिनफिंग और पीएम मोदी के बीच 12 अक्टूबर की संपन्न अनौपचारिक वार्ता में कश्मीर मसला नहीं उठा। दोनों देश संबंधों के लिहाज से इस बैठक को ऐतिहासिक बता रहे हैं और एक नए युग की शुरुआत को आशान्वित हैं। ऐसे में भारत-पाकिस्तान से अपने संबंधों की विवशता में फंसे चीन की कश्मकश की पड़ताल आज बड़ा मुद्दा है। 

कारोबार की कवायद

10 आसियान देश और चीन, जापान, भारत, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच आरसीईपी (रीजनल कंप्रहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप) नामक व्यापक मुक्त व्यापार समझौता प्रस्तावित है। हाल ही में इन देशों के वाणिज्य मंत्रियों की हांगकांग में बैठक संपन्न हुई। इसी नवंबर तक इस समझौते के होने की उम्मीद है।

भारत के टेक्सटाइल और स्टील उद्योग को नुकसान 

इस समझौते को लेकर भारत की सबसे बड़ी चिंता उसका कारोबारी घाटा (निर्यात से ज्यादा आयात) है। कम से कम 11 आरसीईपी देशों के साथ उसके कारोबार में यह प्रवृत्ति दिखती है। 2017 में सिर्फ चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 53 अरब डॉलर रहा। ये उसकी बड़ी चिंता है। भारत के टेक्सटाइल और स्टील उद्योग को चीन से व्यापक स्तर पर आयात से नुकसान पहुंच रहा है। हालांकि फार्मा उद्योग बड़े स्तर पर चीनी बाजार हथियाने को लेकर आशान्वित है। 

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