भूपेंद्र यादव : समता, समानता और न्याय की भावना भारत की सामाजिक संरचना की परिकल्पना में सदियों से रही है। इसके लिए हजारों साल पहले भगवान बुद्ध ने करुणा की राह दिखाई तो आधुनिक भारत में बाबा साहेब डा. भीमराव आंबेडकर ने इसकी राह में अन्याय, अभाव और अज्ञानता को बाधक बताया। यह ऐसा विषय है, जिस पर संकीर्णता और राजनीतिक हित-अहित से ऊपर उठकर विचार करने की जरूरत है। भगवान बुद्ध के संदेशों और बाबा साहेब आंबेडकर के विचारों को संकीर्णता के मकड़जाल में उलझकर समझना अथवा अमल में लाना संभव नहीं है। दुनिया में अलग-अलग तरह की अनेक चुनौतियां हैं। गहराई से विचार करें तो अन्याय, अभाव और अज्ञानता ये तीन ऐसी समस्याएं हैं, जिन्हें दूर करके न केवल दुनिया की अनेक सामाजिक तथा आर्थिक समस्याओं को दूर किया जा सकता है, बल्कि इससे मानव के लिए एक बेहतर समाज बनाने में भी सफलता मिल सकती है।

अपने कालखंड में जब भगवान बुद्ध समाज में व्याप्त अन्याय और अभाव को देखकर द्रवित हुए तो उन्होंने इस कठिनाई को करुणा की दृष्टि से देखा। वह समाधान की खोज में निकले। उन्हें समझ में आया कि जीवन में अभाव और अन्याय इसलिए उत्पन्न होते हैं, क्योंकि मनुष्य अज्ञान में घिरा रहता है। अज्ञानता से निकलकर यथार्थ को पहचानना भी आवश्यक है। अतः भगवान बुद्ध जीवन-पर्यंत उपदेशों और संदेशों के माध्यम से मनुष्य को भ्रम के अंधकार से दूर कर उसे दुखों से मुक्त करने में लगे रहे।

हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक विषमता की जड़ में अभाव एक अहम कारक है। धन का अभाव हो, ज्ञान का अभाव हो, अवसरों में समानता का अभाव हो अथवा गरिमापूर्ण जीवन स्तर का अभाव हो, इससे समाज और देश दोनों की बुनावट कमजोर होती है। इस अभाव के पीछे ‘न्याय का नहीं मिलना’ एक बड़ा कारण है। अत: इन बाधाओं के विरुद्ध बाबा साहेब आंबेडकर की दृष्टि न्याय और ज्ञानवान समाज बनाने पर जोर देने की रही। उनका मानना था कि अवसरों में समानता तथा न्याय देकर ही समाधान निकल सकता है। विषमता को दूर किया जा सकता है। समतामूलक समाज बनाया जा सकता है। यथार्थ को समझने और आडंबरों से दूर रहने वाला समाज भी इसी राह पर चलकर बनाया जा सकता है। फलत: बाबा साहेब आंबेडकर ने संवैधानिक ढांचे को ऐसा आकार दिया, जिसमें समतामूलक समाज की स्थापना की शक्ति मौजूद है।

यह बाबा साहेब आंबेडकर की दूरदर्शिता का ही असर है कि वर्तमान समय के सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों के मूल में भी अभाव, अन्याय और अज्ञान को दूर करने का ही आग्रह होता है। अगर गहराई में समझें तो इसका आशय एक ऐसे समाज की रचना से है, जिसमें सबके पास जीवन के लिए आवश्यक सुविधाएं समान रूप से उपलब्ध हों-अर्थात अवसरों में समानता हो। समाज में गरीबी ऐसी न हो कि सबल लोग निर्बल का शोषण करने लगें। समान अवसर उपलब्ध कराकर ही हमारे मनीषियों द्वारा की गई समाज निर्माण की परिकल्पना को वास्तविक अर्थों में जमीन पर उतारा जा सकता है। अगर राज्य समान अवसर नहीं दे सकता तो वह अपने नागरिकों से न्याय नहीं कर सकता। इसलिए हमारे संविधान निर्माताओं द्वारा भी संविधान के माध्यम से ऐसी ही व्यवस्था सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है।

प्रश्न उठता है कि अभाव से मुक्ति का सही मार्ग क्या है? इसके लिए सबसे बड़ी आवश्यकता है कि हम समाज को स्वावलंबी और स्वनिर्भर बनाएं। समाज का प्रत्येक कमजोर वर्ग जैसे-जैसे स्वावलंबन और स्वनिर्भरता की राह पर चलेगा, उसके जीवन से अभाव का अंधकार छंटता जाएगा। इससे समाज और देश दोनों सशक्त होंगे। हालांकि केवल इतना ही पर्याप्त नहीं है। इसके लिए ज्ञान और जागरूकता का होना भी उतना ही आवश्यक है, क्योंकि यही शेष दोनों विसंगतियों के भी मूल में है। अज्ञान को एक तरह से ‘भ्रामक ज्ञान’ भी माना जा सकता है, जिसमें पड़कर मनुष्य अपने जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश में और बदतर बना लेता है।

आज जाति-वर्ग के आधार पर ऊंच-नीच के भेद से लेकर जीवन के भिन्न-भिन्न स्तरों तक जितने प्रकार के भेदभाव हमें दिखाई देते हैं, यह सब इस अज्ञान के फेर में पड़कर मनुष्य ने ही बनाए हैं। इन्हें बनाते वक्त मनुष्य को इनमें अपना हित ही नजर आया होगा, लेकिन आज हम देख सकते हैं कि भेदभाव का सोच देश-समाज के लिए नासूर बन जाता है। हमें गौर करना होगा कि जब से विश्व-समाज में मानवीय स्वतंत्रता के मूल्यों और लोकतांत्रिक व्यवस्था का प्रभाव बढ़ा है, तब से अज्ञान को दूर करके अभाव और अन्याय को समाप्त करने की दिशा में अधिकाधिक प्रयत्न किए गए हैं और अब भी किए जा रहे हैं।

आज भारत में भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र की भाजपा सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास, सबका विश्वास’ के जिस संकल्प के साथ आगे बढ़ रही है, वह बाबा साहेब आंबेडकर के सर्वस्पर्शी समतामूलक समाज की परिकल्पना से ही प्रेरित है। गरीबों का जीवन स्तर बेहतर बनाना, विभिन्न क्षेत्रों में अवसरों की समानता को सुनिश्चित करना तथा लोकतंत्र में जनभागीदारी को प्रोत्साहित करना मोदी सरकार की नीतियों में प्राथमिकता का विषय है। इसका परिणाम आंकड़ों में भी नजर आता है। लंबे समय तक बाबा साहेब आंबेडकर के नाम पर राजनीतिक हित साधने वालों ने उनके विचारों को कभी भी मूर्त रूप नहीं दिया, लेकिन आज मोदी सरकार में बाबा साहेब के जीवन से जुड़े प्रमुख स्थलों को पंचतीर्थ का रूप दिया गया है, जिससे सामाजिक न्याय की दिशा में काम करने की प्रेरणा लंबे समय तक मिलती रहेगी।

(लेखक केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन तथा श्रम एवं रोजगार मंत्री हैं)