[ विजय क्रांति ]: पिछले दिनों रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा लद्दाख और भारत-तिब्बत सीमा के कुछ अन्य क्षेत्रों में 44 नए सड़क पुलों का उद्घाटन किए जाने पर टिप्पणी करते हुए चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, ‘मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि चीन सरकार न तो भारत सरकार द्वारा गठित किए गए केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख को मान्यता देती है और न अरुणाचल को। हम भारत द्वारा अपने इलाके में सैनिक उपयोग के लिए विकसित की जा रही ढांचागत सुविधाओं का विरोध करते हैं।’ इस टिप्पणी ने उन लोगों को बुरी तरह मायूस किया, जो यह उम्मीद लगाए थे कि भारत-चीन के बीच सीमा विवाद को वार्ता से हल किया जा सकता है। गलवन घाटी में भारतीय सैनिकों पर अचानक किए गए हमले के बाद भारत-चीन सीमा विवाद को लेकर चीन की ओर से जितने भी बयान आए हैं, उनमें यह सबसे ज्यादा अक्खड़, आक्रामक और उकसाने वाला है।

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के बीच चल रही खींचतान से चिनफिंग का हताशा भरा बयान

वर्ष 1951 में तिब्बत पर जबरन कब्जा जमाने के बाद चीन ने वहां जितने बड़े पैमाने पर सैनिक ठिकानों का विकास किया है और खासतौर से भारत-तिब्बत सीमा पर सेना की तैनाती तथा सामरिक सड़कों का जैसा जाल बिछाया है, उसे देखते हुए चीन के इस बयान को हास्यास्पद ही कहा जा सकता है। चीन के सत्तातंत्र खासकर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के बीच चल रही नवीनतम खींचतान पर नजर रखने वालों को चीनी विदेश मंत्रालय के इस बयान में चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की हताशा भी दिख रही है। इस हताशा को उन्होंने फिर से तब जगजाहिर किया, जब उन्होंने गुआंगडोंग में चीनी नौसेना की एक विशेष यूनिट का मुआयना करते समय चीनी सेना को बड़े पैमाने पर युद्ध के लिए तैयार रहने का आह्वान किया। उनका यह बयान इस मायने में गंभीर है कि वह चीन के राष्ट्रपति और कम्युनिस्ट पार्टी के सर्वशक्ति संपन्न जनरल सेक्रेटरी होने के अलावा चीनी सेनाओं के सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के चेयरमैन भी हैं।

पार्टी और सेना में पनप रहे विद्रोह को ठंडा करने के लिए शी आक्रामक कार्रवाइयां करने को मजबूर

आजीवन चीन के सर्वोच्च पद पर बने रहने के आकांक्षी शी पिछले एक साल में कम्युनिस्ट पार्टी और सेना के दो सौ से ज्यादा वरिष्ठ नेताओं और सैनिक अधिकारियों को इस इरादे से पदों से हटाकर जेल में डाल चुके हैं कि वे उनकी राह में रोड़ा न बन जाएं। कई प्रेक्षकों का आकलन है कि भारत के साथ हिमालयी सीमा और दक्षिणी चीन सागर में कई देशों के विरुद्ध आक्रामक और उकसाने वाली सैनिक कार्रवाइयां करके शी चीनी नेतृत्व और चीनी जनता के बीच युद्ध का भय पैदा कर रहे हैं, ताकि पार्टी और सेना में उनके प्रति पनप रहे विद्रोह को ठंडा किया जा सके।

भारत के जवानों ने बहादुरी से गलवन घाटी की रक्षा करके चिनफिंग के सपने को ध्वस्त कर दिया

गलवन में चीनी हमले के पीछे शी चिनफिंग का इरादा अक्साई चिन और शक्सगाम के बीच सियाचिन क्षेत्र पर कब्जा जमाकर राष्ट्रीय हीरो बनकर खुद को चीन का स्थायी नेता बना लेना था। गलवन की सामरिक स्थिति ऐसी है कि अगर चीनी सेना उस पर कब्जा कर लेती तो भारतीय सेना का दौलत बेग ओल्डी हवाई पट्टी से संपर्क टूट जाता, कराकोरम राजमार्ग पर भारतीय सेना का दबदबा समाप्त हो जाता और सियाचिन क्षेत्र में मौजूद भारतीय सेना की चौकियां पाक और चीन के निशाने पर आ जातीं, लेकिन भारत के जवानों ने जिस बहादुरी से गलवन घाटी की रक्षा की, उसने शी चिनफिंग के सपने को ध्वस्त कर दिया है। इस घटना के बाद भारत ने पूरी लद्दाख सीमा पर इतने बड़े पैमाने पर सैनिकों और हथियारों की तैनाती कर ली है कि चीनी सेना बर्फ में बैठे रहने पर मजबूर हो गई है।

भारत ने सीमा से सटी हुई दौलत बेग ओल्डी हवाई पट्टी को लेह से जोड़ दिया, चीन हुआ हताश

पिछले एक साल में भारत ने सीमा से सटी हुई दौलत बेग ओल्डी हवाई पट्टी को फिर से विकसित कर डाला है और बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन (बीआरओ) ने अप्रत्याशित फुर्ती के साथ 37 नए प्रीफैब्रिकेटिड पुल बनाकर इस पट्टी को साल भर काम करने वाले 255 किमी लंबे श्योक-दारबुक मार्ग के रास्ते लेह से जोड़ दिया है। भारत ने ऐसा करके चीन के इरादों को ध्वस्त कर डाला है। चीनी प्रवक्ता का ताजा प्रलाप इसी हताशा को दर्शाता है।

चीन ने तिब्बत के एक तिहाई हिस्से में सड़कें, हवाई अड्डे, रेलवे नेटवर्क विकसित कर लिए

पिछले सात दशक में चीन ने भारतीय सीमा से लगने वाले तिब्बत के एक तिहाई हिस्से में, जिसे वह टिबेट ऑटोनॉमस रीजन (टार) कहता है, 58 हजार किमी से भी ज्यादा लंबी सड़कों, दर्जन भर हवाई अड्डों, लगभग दो हजार किमी लंबे रेलवे नेटवर्क और बड़ी संख्या में सैनिक अड्डे तथा मिसाइल ठिकाने विकसित कर लिए हैं। उसने गिलगित-बाल्टिस्तान के लद्दाखी कोने से लेकर पूरी सीमा के साथ-साथ अरुणाचल तक चार हजार किमी लंबी सड़कों का नेटवर्क भी बना लिया है, जो लगभग हर चीनी सैन्य चौकी को ल्हासा और बीजिंग से सीधे जोड़ती हैं, लेकिन भारत ने सिक्किम में नाथु-ला दर्रे को छोड़कर एक भी चौकी को इस अजीबोगरीब तर्क के आधार पर सड़कों से नहीं जोड़ा कि अगर वहां सड़क बना दी गई तो चीनी सेना उसका इस्तेमाल करके भारत की मुख्य भूमि तक घुस आएगी। इस नीति के कारण जहां एक ओर भारत की सेनाओं को रसद और मेडिकल सहायता पहुंचाने का नाजुक काम भी हेलीकॉप्टर और मौसम की मेहरबानी पर टिका रहा, वहीं दूसरी ओर विकास और संपर्क के अभाव में हिमालयी सीमा के तीन चौथाई से ज्यादा गांवों के लोगों के पलायन ने भारत की पहली नागरिक सुरक्षा पंक्ति को लगभग तबाह कर डाला।

भारत की हर सीमा चौकी को सड़क से जोड़ने का अभियान शुरू करने से चीन बौरा गया

हालांकि पिछले पांच साल से मोदी सरकार ने भारत की हर सीमा चौकी को सड़क से जोड़ने का जो अभियान शुरू किया है, उससे चीन बौरा गया है। बीआरओ ने एकदम दुर्गम और असाध्य माने जाने वाले इलाकों में 76 से ज्यादा सड़कें बनाकर भारतीय हिमालय की अधिकांश सैनिक चौकियों को देश से जोड़ दिया है। दिसंबर 2018 में प्रधानमंत्री मोदी ने असम में ब्रह्मपुत्र पर लगभग 5 किमी लंबे जिस बोगीबील पुल का उद्घाटन किया था, चीन उससे भी बहुत परेशान है। रक्षा मंत्री ने जिन 44 पुलों का उद्घाटन किया, उनमें से 30 सीमा की आखिरी चौकी तक सड़क को जोड़ते हैं।

पुल और सड़कें बनने से भारतीय सेनाओं को नई शक्ति मिलेगी

बीआरओ इस समय ऐसे 102 और पुलों पर काम कर रहा है, जो हर मौसम में अग्रिम चौकियों और सीमावर्ती गांवों को देश से जोड़े रखेंगे। यह कदम भारत की रक्षा सेनाओं को नई शक्ति भी देगा और पलायन कर चुके लोगों को वापस अपने गांव लौटने की सुविधा देकर भारतीय सीमाओं की लगभग खत्म हो चुकी नागरिक रक्षा पंक्ति को भी फिर से जीवित कर देगा।

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं सेंटर फॉर हिमालयन एशिया स्टडीज एंड एंगेजमेंट के चेयरमैन हैं )