संतोष त्रिवेदी (नई दिल्ली)। बहुत दिनों बाद ऐसा संयोग आया, जब पक्ष-विपक्ष दोनों खुश दिखे। सत्ता-पक्ष के चार साल बीत गए तो वह इसे 48 महीने समझकर खुश है। उसके लिए विकास की यह लंबी यात्रा काफी महत्वपूर्ण है। उसके पास अगले 12 महीने तो हैं ही। विपक्ष इसलिए प्रसन्न है कि उसके दुर्दिन समाप्त होने में केवल एक साल बचा है। लगातार कई हारों के बाद उसे कहीं-कहीं जीत नसीब होने लगी है। चार साल घोड़े बेचकर सोने के बाद आखिरकार उसे गठबंधन की ‘पवित्रता’ पर भरोसा हुआ। सत्ता की गठरी खुलने के लिए उसने आपस की सारी गांठें खोल दी हैं। इसलिए वह भी गदगद है।

कुल मिलाकर सभी सुखी और प्रसन्न हैं। यह इसलिए मुमकिन हुआ, क्योंकि हमारे सभी रहनुमा खुश हैं। कुछ नासमझ नागरिक जरूर हैं, जो इस ऐतिहासिक जश्न पर ‘पेट्रोल’ छिड़कना चाहते हैं। जो पढ़े-लिखे और समझदार लोग हैं वे तेल के शतक लगाने की बाट जोह रहे हैं। वे तभी जश्न मनाएंगे। सरकार के समर्थक तेल से होने वाले नुकसान गिना रहे हैं। इससे होने वाला प्रदूषण सड़क से निकलकर सोशल मीडिया तक फैल गया है। सारा तापमान उसी का है। तेल को इसलिए छुट्टा छोड़ा गया है ताकि जश्न के इस माहौल में तेल कंपनियों के कुएं भी लबालब हो सकें। इस जश्न का जमीनी जायजा लेने के लिए अपुन भी पूरी तरह तैयार हो गए। घर से बाहर निकलकर देखा तो आंखें चौंधियां उठीं। जगह-जगह जश्न की प्रदर्शनी लगी हुई थी। सबसे ज्यादा उल्लास ‘चार साल बेमिसाल’ वाले स्टॉल पर दिखा। जितनी जगह थी उससे ज्यादा बैनर टंगे थे। लग रहा था कि जगह और होती तो विकास और दिखता। स्टॉल के संचालक सामने ही दिख गए। बिल्कुल फिट लग रहे थे। जवाब देने के मूड में थे। हमने कहा, इससे हमारा काम बहुत हल्का हो गया है। अब हम आराम से बात कर सकते हैं। वे पुश-अप करते हुए बोले, ‘तुम्हारा काम भले हल्का हो, हम कभी हल्का काम नहीं करते। जो भी पूछना है, जल्दी पूछिए, हमें जश्न मनाना है।’

‘किस बात का जश्न मना रहे हैं आप?’ हम सीधे मुद्दे पर आ गए। वे ठहाके लगाने लगे और पूरे चार ठहाकों के बाद कहने लगे- ‘जनता पूरी तरह हमारे साथ है। वह पिछले 48 महीनों से हमारे आश्वासन पर जीवित है। इसका भरपूर स्टॉक हमारे पास है। हम तो इतने उदार हैं कि विरोधियों को भी समुचित मात्र में आश्वासन बांट रहे हैं, लेकिन पता नहीं क्यों उन्हें शासन चाहिए। इसलिए वे जनता को बांट रहे हैं। हमें कुछ करने की जरूरत ही नहीं है। हमने जश्न की पुड़िया बनाई है, एकाध तुम भी लेते जाना। सवालों के चक्कर से निकलकर जश्न मनाने लगोगे।’ इतना कहकर उन्होंने एक पुड़िया हमारी ओर बढ़ा दी।

पुड़िया लेने से पहले ही हम सवाल दाग चुके थे-‘सुना है तेल के दामों को लेकर जनता में भारी असंतोष है। दाम इतना बढ़ क्यों रहे हैं?’ हमारा प्रश्न सुनकर अंगुली से ग्राफ बनाते हुए वे समझाने लगे-हम चाहते हैं कि तेल की खपत कम हो। इससे ऊर्जा बचेगी। जनता के पास यह ऊर्जा संचित रहेगी तो अगली बार फिर हमारी सरकार बनेगी। इससे हमें ऊर्जा मिलेगी। हम और अधिक ऊर्जा से काम करेंगे। तेल जनता की पहुंच से जितना दूर होगा, पर्यावरण उतना ही शुद्ध होगा। इसीलिए हम जनता का बचा-खुचा तेल भी निकाल रहे हैं। तुम भी देशहित में सवाल पूछकर अपनी ऊर्जा नष्ट न करो, आगे बढ़ो।

हम उनका मंतव्य समझकर आगे बढ़ गए। सड़क के बीचोंबीच विपक्ष के प्रतिनिधि जश्न मनाने के मूड में तेल छिड़कने में लगे हुए थे। हमने सुलगता हुआ सवाल पूछ लिया, ‘अरे भाई आप किस बात का जश्न मना रहे हैं?’ वे पहले चिंगारी और फिर शोले की तरह भड़क उठे-आप किस मीडिया से हैं? आपको दिखता नहीं कि हम जश्न नहीं ‘विश्वासघात दिवस’ मना रहे हैं। यह सरकार सत्ता से तो पहले ही हमें बेदखल कर चुकी है, अब हम जैसे ‘बंगला-पकड़’ को बेघर करने पर भी तुली है। तेल देखो, तेल की धार देखो। असल आग तो सरकार ने हमारे बंगलों में लगाई है, लेकिन तुम्हें केवल तेल दिख रहा है, उसकी धार नहीं। आम आदमी तो एकबारगी बिना रोटी, कपड़े और मकान के रह लेगा। इसका उसे खासा तजुर्बा भी है, लेकिन उसका सेवक अगर सड़क पर आ जाए तो यह जनतंत्र के साथ विश्वासघात है।’

‘तो क्या वह जश्न आपको सड़क पर लाने के लिए मनाया जा रहा है?’ हमने कमजोर नस धीरे से दबा दी। वह करीब-करीब सुबकते हुए कहने लगे, ‘इस बंगले से हमारी यादें जुड़ी हैं। यह हमारी जश्नगाह है। बहुत सारे जश्न हमने यहीं निपटाए हैं। हमारे वोटर को भी हमारा यही पता मालूम है। सरकार हमें लापता करना चाहती है ताकि हम पूरी तरह मुक्त हो जाएं। यह घोर विश्वासघात नहीं तो और क्या है?’ सवाल के बदले सवाल सुनकर मुझे जश्न वाली पुड़िया की याद आ गई, लेकिन मुझे समझ नहीं आया कि उसे खाऊं या न खाऊं?